धारा 293 सीआरपीसी - लैब निदेशक या उप/सहायक निदेशक के मुहर के तहत अग्रेषित बैलिस्टिक रिपोर्ट साक्ष्य में स्वीकार्य: सुप्रीम कोर्ट

Avanish Pathak

6 Nov 2022 3:46 PM IST

  • सुप्रीम कोर्ट, दिल्ली

    सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने देखा कि एक प्रयोगशाला के निदेशक / उप निदेशक / सहायक निदेशक के मुहर के तहत अग्रेषित एक बैलिस्टिक रिपोर्ट को धारा 293 सीआरपीसी के तहत वैधानिक आवश्यकता के अनुपालन में कहा जा सकता है।

    दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 293 इस प्रकार है,

    कोई दस्तावेज, जो किसी सरकारी वैज्ञानिक विशेषज्ञ के हाथों बनीं रिपोर्ट हो, जिस पर यह धारा लागू होती है, परीक्षा या विश्लेषण और रिपोर्ट के लिए उसे विधिवत प्रस्तुत किए जाने पर...इस संहिता के तहत किसी भी जांच, परीक्षण या अन्य कार्यवाही में साक्ष्य के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।

    इस मामले में, ट्रायल कोर्ट द्वारा बरी किए जाने के आदेश को पलटते हुए, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सभी अभियुक्तों को भारतीय दंड संहिता की धारा 148, 302 सहपठित 149, 307 सहपठित 149 के तहत अपराधों के लिए दोषी ठहराया और उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई।

    ट्रायल कोर्ट ने हत्या के एक मामले में आरोपी को बरी करते हुए इस आधार पर बैलेस्टिक रिपोर्ट को स्वीकार करने से इनकार कर दिया था कि यह एक सहायक निदेशक द्वारा स्वयं हस्ताक्षरित रिपोर्ट नहीं है, बल्कि किसी वैज्ञानिक अधिकारी की है, जिसे केवल सहायक निदेशक द्वारा अग्रेषित किया गया है।

    हाईकोर्ट ने अपील की अनुमति देते हुए कहा कि रिपोर्ट को खारिज नहीं किया जा सकता था।

    इस पहलू पर, हाईकोर्ट के विचारों की पुष्टि करते हुए, सुप्रीम कोर्ट की खंडपीठ ने कहा कि धारा 293 के तहत आवश्यकता का वास्तव में अनुपालन किया जाता है क्योंकि रिपोर्ट को सरकारी वैज्ञानिक विशेषज्ञ के हाथ से माना जाना चाहिए...।

    हिमाचल प्रदेश राज्य बनाम मस्त राम (2004) 8 SCC 660 में की गई टिप्पणियों का उल्लेख करते हुए, पीठ ने कहा,

    "इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि बैलिस्टिक रिपोर्ट सहायक निदेशक के कार्यालय से उनकी मुहर वाले और धारा 293 (4) सीआरपीसी के संदर्भ में विचार करने के बाद आई है, जैसा कि हिमाचल प्रदेश राज्य बनाम मस्त राम, में इस न्यायालय द्वारा समझाया गया है।

    हमारी राय है कि ट्रायल कोर्ट ने बैलिस्टिक रिपोर्ट को खारिज करने में एक गंभीर त्रुटि की है और हाईकोर्ट के लिए इस मामले में भी ट्रायल कोर्ट के निष्कर्ष को उलटना आवश्यक था।

    केस डिटेलः अशोक कुमार चंदेल बनाम यूपी राज्य | 2022 लाइव लॉ (SC) 915 | CrA 946-947 OF 2019| 4 नवंबर 2022 | सीजेआई यूयू ललित, जस्टिस एस रवींद्र भट और जस्टिस पीएस नरसिम्हा

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