SCBA में तनातनी, सचिव अशोक अरोड़ा ने बुलाई बैठक, अध्यक्ष दुष्यंत दवे को पद से हटाने का एजेंडा
LiveLaw News Network
7 May 2020 6:04 PM IST
सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (SCBA) के आंतरिक समीकरण तनावपूर्ण हो गए हैं। एसोसिएशन के सचिव अशोक अरोड़ा ने सीनियर एडवोकेट दुष्यंत दवे को SCBA अध्यक्ष से हटाने और उनकी एसोसिएशन की प्राथमिक सदस्यता समाप्त करने के लिए एक एक 'असाधारण बैठक' बुलाई है।
अरोड़ा ने SCBA रूल्स के रूल 22 को उपयोग करते हुए निम्नलिखित मुद्दों पर चर्चा करने के लिए 11 मई को बैठक बुलाई:
-25 फरवरी 2020 को कार्यकारिणी समिति द्वारा (संचलन के माध्यम से) पारित किए गए अनधिकृत संकल्प की निंदा और उसे तुरंत वापस लेना।
-SCBA कार्यालय का उपयोग राजनीतिक उद्देश्यों के लिए नहीं करना।
-दुष्यंत दवे को SCBA अध्यक्ष पद से हटाना।
-बार के हितों के खिलाफ काम करने के कारण श्री दुष्यंत दवे को SCBA की प्राथमिक सदस्यता से हटाना।
25 फरवरी 2020 को SCBA की कार्यकारी समिति द्वारा पारित किए गए संकल्प में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रशंसा में जस्टिस अरुण मिश्रा द्वारा की गई सार्वजनिक टिप्पणी की निंदा की गई थी।
जस्टिस मिश्रा ने 22 फरवरी को इंटरनेशनल जजेज कॉन्फ्रेंस के उद्घाटन समारोह में दिए अपने वोट ऑफ थैंक्स में प्रधानमंत्री मोदी की तारीफ की थी और उन्हें "बहुमुखी प्रतिभा वाला व्यक्ति बताया था, वैश्विक स्तर पर सोचते हैं और स्थानीय स्तर पर कार्य करते हैं।"
दवे ने कहा, अवैध और अनुचित कदम
दवे ने अरोड़ा के कदम को "अवैध और अनुचित" कहा है। उन्होंने सदस्यों को निम्नलिखित संदेश भेजा है-
"सेवा ,
गणमान्य सदस्य,
SCBA, नई दिल्ली,
प्रिय मित्रों !
नमस्कार ! मैं आप सभी का ध्यान माननीय सचिव अशोक अरोड़ा के प्रयासों की ओर लाने के लिए यह पत्र लिख रहा हूं, जो आपको उनके मंसूबे के बारे में बताएगा। पूरी कवायद अवैध और अनुचित है। EC ने ऐसी किसी भी बैठक को बुलाने का फैसला नहीं किया है। इसलिए पूरी कवायद दुर्भाग्यपूर्ण और गलत है। इसका कोई उद्देश्य नहीं होगा और न ही यह कोई और लक्ष्य हासिल कर सकती है, सिवाय इस बात के कि SCBA की प्रतिष्ठा को धूमिल किया जाए। मैं विधिपूर्वक निर्वाचित अध्यक्ष हूं और कार्यकाल पूरा होने तक आपकी सेवा करता रहूंगा। यह प्रयास सभी प्रक्रिया का उल्लंघन करता है और इसका कोई आधार नहीं है।
मुझे आपने चुना है और इसकी वजह से मैं अपनी क्षमताओं के अनुसार आपकी सेवा कर रहा हूं। केवल आपके पास कार्रवाई की शक्ति और अधिकार है, न कि व्यक्तिगत एजेंडे को चला रहे किसी कोई व्यक्ति के पास।
इस महान संस्थान की गरिमा और सम्मान, दांव पर है।
इसलिए आपको सूचित कर रहा हूं कि मैं अपना कार्यकाल पूरा करना जारी रखूंगा और मुझे कोई व्यक्ति रोका नहीं पाएगा।
नमस्कार ,
दुष्यंत दवे "
25 फरवरी को पारित प्रस्ताव में, जो वर्तमान विवाद का कारण है, SCBA ने जस्टिस मिश्रा की टिप्पणी के खिलाफ इस आधार पर कड़ी प्रतिक्रिया दी थी कि ऐसा आचरण न्यायिक स्वतंत्रता को प्रभावित करता है।
"SCBA का मानना है कि न्यायपालिका की स्वतंत्रता भारत के संविधान की मूल संरचना है और इस स्वतंत्रता को संरक्षित किया जाना चाहिए। SCBA का मानना है कि इस तरह का कोई भी बयान न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर दुष्प्रभाव डालता है और इसलिए माननीय न्यायाधीशों से निवेदन है कि भविष्य में वे ऐसे बयान न दें और न ही कार्यपालिका से कोई निकटता दिखाएं।"
SCBA की कार्यकारी समिति ने कहा कि ऐसी निकटता और परिचय माननीय न्यायाधीशों की निर्णय लेने की प्रक्रिया को प्रभावित कर सकती है और वादकारियों के मन में संदेह को पैदा कर सकती है।"
तब अशोक अरोड़ा ने प्रस्ताव पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया था।
अरोड़ा द्वारा बुलाए गए SCBA मीटिंग के एजेंडा को डाउनलोड करने के लिए क्लिक करें