'गैर-ज़िम्मेदार और अपरिपक्व': SCBA अध्यक्ष विकास सिंह ने न्यायपालिका को विकसित भारत की राह में सबसे बड़ी बाधा बताने पर संजीव सान्याल की आलोचना की

Shahadat

30 Sept 2025 1:43 PM IST

  • गैर-ज़िम्मेदार और अपरिपक्व: SCBA अध्यक्ष विकास सिंह ने न्यायपालिका को विकसित भारत की राह में सबसे बड़ी बाधा बताने पर संजीव सान्याल की आलोचना की

    सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (SCBA) के अध्यक्ष और सीनियर एडवोकेट विकास सिंह ने अर्थशास्त्री और प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के सदस्य संजीव सान्याल की न्यायपालिका को भारत के विकसित भारत बनने की राह में "सबसे बड़ी बाधा" बताने पर कड़ी आलोचना की। सिंह ने इस टिप्पणी को "गैर-ज़िम्मेदार" और "गलत इरादे से की गई टिप्पणी" बताया और कहा कि इस तरह की टिप्पणियां अदालतों के कामकाज की समझ की कमी को दर्शाती हैं।

    सान्याल की टिप्पणी पर प्रतिक्रिया देते हुए सिंह ने कहा कि जटिल संरचनात्मक मुद्दों को न्यायपालिका पर दोष मढ़ना भ्रामक है।

    न्यायिक अवकाशों की आलोचना पर सिंह ने स्पष्ट किया कि सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट जजों के लिए अवकाश अवकाश नहीं, बल्कि न्याय के "कठिन" कार्यभार को बनाए रखने के लिए आवश्यक हैं। उन्होंने बताया कि जज सप्ताहांत में केस फाइलें पढ़ने और फैसले लिखने में बिताते हैं। अगर उन्हें समय-समय पर ब्रेक न मिले तो यह "बर्नआउट का एक विशिष्ट उदाहरण" होगा। उन्होंने आगे कहा कि छुट्टियों की आलोचना करने वाले नौकरशाहों को अक्सर न्यायिक कार्य की गंभीरता का एहसास तब होता है, जब वे स्वयं ट्रिब्यूनल्स में काम करते हैं।

    न्यायपालिका द्वारा विकास में बाधा डालने के सान्याल का दावा खारिज करते हुए सिंह ने कहा:

    "यह कहना कि न्यायपालिका भारत की विकासात्मक बाधाओं के लिए ज़िम्मेदार है, बहुत अपरिपक्व है। व्यवस्था की ज़्यादातर कमियां वास्तव में सरकार के कारण हैं।"

    उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि न्याय प्रदान करने में देरी अक्सर अपर्याप्त बुनियादी ढांचे, कम न्यायिक वेतन और गुणवत्तापूर्ण नियुक्तियों की कमी से जुड़ी होती है - ऐसे क्षेत्र जहां सरकार निर्णायक भूमिका निभाती है। सिंह ने कहा कि सरकार अक्सर कॉलेजियम की सिफारिशों को रोक लेती है या चुनिंदा रूप से मंज़ूर कर देती है, जिसके परिणामस्वरूप उच्च न्यायपालिका में "खराब नियुक्तियां" होती हैं।

    यह स्वीकार करते हुए कि त्वरित विवाद समाधान के माध्यम से निवेशकों का विश्वास बढ़ाने के लिए न्यायपालिका में सुधार की आवश्यकता है, सिंह ने कहा कि इससे इसे भारत के विकास में सबसे बड़ी बाधा बताने का औचित्य नहीं बनता।

    सिंह ने ज़ोर देकर कहा,

    “अगर सरकार वाकई न्यायपालिका को मज़बूत करना चाहती है तो उसे पर्याप्त बुनियादी ढांचा, जजों के लिए बेहतर वेतन और एक विश्वसनीय नियुक्ति प्रक्रिया प्रदान करनी होगी। अन्यथा, सिर्फ़ न्यायपालिका को दोष देना न तो उचित है और न ही ज़िम्मेदाराना है।”

    न्यायाल द्वारा जजों को "माई लॉर्ड्स", "योर लॉर्डशिप्स" आदि कहकर संबोधित करने की आलोचना के बारे में सिंह ने कहा कि इस तरह के संबोधन सिर्फ़ विरासत का हिस्सा हैं और इनका कोई ख़ास मतलब नहीं है। यह वकीलों की वर्षों से बनी एक आदत है और वह इस बात से सहमत हैं कि इसे खत्म किया जा सकता है।

    सुधारों का आह्वान करते हुए सिंह ने सुझाव दिया कि न्यायिक स्वतंत्रता को कम किए बिना और अदालतों पर ज़िम्मेदारी डालने के बजाय सरकार कॉलेजियम प्रणाली को विनियमित करने और न्यायिक नियुक्तियों में पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए एक कानून ला सकती है। उन्होंने बताया कि NJAC को केवल इस आधार पर रद्द कर दिया गया कि नियुक्तियों के फ़ैसले में कार्यपालिका का दबदबा था। उन्होंने पूछा कि सरकार ऐसा कानून क्यों नहीं ला सकती, जो न्यायपालिका की सर्वोच्चता से समझौता किए बिना नियुक्तियों की पारदर्शी पद्धति सुनिश्चित करे।

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