हाइब्रिड सुनवाई के लिए एसओपी के खिलाफ SCBA की याचिका: सुप्रीम कोर्ट ने एससी रजिस्ट्री से मिनट्स ऑफ मीटिंग (विवरण) मांगे

LiveLaw News Network

12 March 2021 2:03 PM

  • हाइब्रिड सुनवाई के लिए एसओपी के खिलाफ SCBA की याचिका: सुप्रीम कोर्ट ने एससी रजिस्ट्री से मिनट्स ऑफ मीटिंग (विवरण) मांगे

    सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट रजिस्ट्री द्वारा जारी स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर (एसओपी) के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (एससीबीए) द्वारा याचिका पर सुप्रीम कोर्ट रजिस्ट्री से मिनट्स ऑफ मीटिंग (विवरण) मांगा है। एससीबीए द्वारा दायर इस याचिका में सुप्रीम कोर्ट में 15 मार्च से हाइब्रिड फिजिकल हियरिंग शुरू करने के लिए जारी एसओपी रद्द करने की मांंग की गई है।

    न्यायमूर्ति एसके कौल की अध्यक्षता वाली खंडपीठ के सामने पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता और एससीबीए के अध्यक्ष विकास सिंह ने कहा कि हाइब्रिड सुनवाई शुरू करने का निर्णय लेने से पहले बार के साथ परामर्श नहीं हुआ था।

    सुप्रीम कोर्ट ने तदनुसार रजिस्ट्री को निर्देश दिया कि वह उन उन बैठकों से संबंधित विवरण दे, जो फिजिकल सुनवाई के लिए एसओपी के लिए की गई थीं।

    शुक्रवार की सुनवाई में एडवोकेट सिंह ने न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किया कि मामले के दो पहलू है।

    एडवोकेट सिंह ने कहा,

    "यह ऐसी स्थिति है, जहां आपदा प्रबंधन अधिनियम (डीएमए एक्ट) के तहत अधिसूचना लागू है। जब तक यह मौजूद है, तब तक इसे ओवरराइड नहीं किया जा सकता। डीएमए एक्ट के तहत अवधि समाप्त होने के बाद बार और बेंच के बीच परामर्श से निर्णय लिया जाना चाहिए, क्योंकि कोई भी फैसला बेंच द्वारा एकतरफा नहीं लिया जा सकता।"

    एडवोकेट सिंह ने कहा,

    "बार के कुछ सदस्यों को यह सुविधाजनक लग सकता है, लेकिन एक पूरे निर्णय के रूप में बार की आवश्यकता होती है। न्यायाधीश एक निष्फल अदालत में आते हैं। कांच शील्ड आदि के कारण वे 99% संरक्षित हैं। हाल की रिपोर्ट से पता चलता है कि लोग गैर-जिम्मेदार बन रहे हैं, मैं उम्मीद नहीं करता कि बार ऐसा व्यवहार करेगा।"

    सिंह ने यह भी कहा कि वरिष्ठ वकीलों और लॉ फर्मों ने इसे सुविधाजनक पाया है, लेकिन औसत वकील या औसत क्लाइंंट को समान रूप से नहीं रखा जाएगा।

    एडवोकेट सिंह ने जारी रखते हुए कहा,

    "आज, COVID-19 से लोगों की मौत नहीं हो रही है। यदि विशेषज्ञों की राय पर ध्यान दिया जाए तो विशेषज्ञों ने यह भी कहा है कि बंद स्थानों में 200 लोग इकट्ठा हो सकते हैं, जैसे कि शादियों के दौरान। हम सुनवाई के दौरान एक ब्रेक ले सकते हैं।"

    न्यायमूर्ति कौल ने इस पर कहा कि वर्चुअल सुनवाई शुरू होने से पहले सभी को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से पेश होने के बारे में संदेह था। हालाँकि, अब राज्य वकील और युवा वकील भी वर्चुअल सुनवाई के दौरान दिखाई देने लगे हैं और लोगों ने इसकी आदत डाल ली है।

    एडवोकेट सिंह ने तब अपनी अधीनता दोहराई कि चूंकि रिपोर्ट बार के परामर्श के बिना बनाई गई है, इसलिए इसे वापस लेना ही होगा।

    एडवोकेट सिंह ने निष्कर्ष निकालते हुए कहा,

    "तब तक हम हाइब्रिड हो सकते हैं। लेकिन, इस एसओपी के साथ तालमेल बैठाना असंभव है। कोई चर्चा नहीं हुई है। मैंने इसको लेकर एफिडेविट पर भी डाल दिया है। हमने सीजेआई के साथ 1 मार्च को चर्चा की थी और 2 तारीख को मैंने एक पत्र लिखा था। लेकिन, उस पत्र का भी उल्लेख नहीं किया गया है।"

    अब इस मामले की अगली सुनवाई मंगलवार को होगी।

    अधिवक्ता राहुल कौशिक के माध्यम से दायर याचिका में कहा गया है कि रजिस्ट्री द्वारा 5 मार्च को लगाए गए एसओपी को बार के साथ बिना किसी परामर्श के जारी किया गया है।

    याचिका में कहा गया है,

    "बार न्याय वितरण प्रणाली के वितरण में एक समान हितधारक है और बार द्वारा दिए गए सुझावों पर ध्यान दिया जाना चाहिए।"

    याचिका में कहा गया है कि 1 मार्च को आयोजित सीजेआई के साथ SCBA की कार्यकारी समिति की बैठक में फिजिकल सुनवाई के संबंध में यह आश्वासन दिया गया था कि रजिस्ट्री SCBA द्वारा दिए गए सुझावों को ध्यान में रखते हुए एसओपी जारी करेगा।

    अब याचिका में यह दावा किया गया कि रजिस्ट्री द्वारा जारी किए गए एसओपी को "एकतरफा" जारी किया गया है।

    याचिका में आगे कहा गया कि बार में आम राय है कि पिछले कुछ सालों से सुप्रीम कोर्ट रजिस्ट्री बार को विश्वास में लिए बिना सर्कुलर जारी कर रही है, हालांकि ऐसे सर्कुलर सीधे तौर पर वकीलों की प्रैक्टिस को प्रभावित करते हैं।

    भारत के सुप्रीम कोर्ट ने 15 मार्च से हाइब्रिड फिजिकल कोर्ट की सुनवाई फिर से शुरू करने का निर्देश देते हुए 5 मार्च को अपना स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर (एसओपी) जारी किया था। अब अदालत ने COVID-19 महामारी और बार एसोसिएशनों द्वारा दिए गए सुझावों को ध्यान में रखते हुए अपने कामकाज के बारे में कई दिशा-निर्देश जारी किए।

    कोर्ट ने प्रायोगिक आधार पर हाइब्रिड मोड में मामलों की सुनवाई के लिए एक पायलट योजना तैयार की। योजना के अनुसार, मंगलवार और बुधवार को सूचीबद्ध अंतिम सुनवाई और एक मामले में पार्टियों की संख्या और कोर्ट रूम की सीमित क्षमता पर विचार करने के बाद नियमित मामलों को हाइब्रिड मोड में सुना जाएगा। हालाँकि सोमवार और शुक्रवार को सूचीबद्ध किए गए अन्य सभी मामलों को वीडियो-कॉन्फ्रेंसिंग मोड के माध्यम से सुना जाना जारी रहेगा।

    शनिवार, 1 मार्च 2021 को हुई बैठक में सीजेआई बोबड़े द्वारा दिए गए आश्वासन के बावजूद SCBA ने उक्त एसओपी को स्वीकार नहीं करने का फैसला किया, क्योंकि यह बार को विश्वास में लिए बिना तैयार किया गया है। अपनी याचिका में एसोसिएशन ने जोर देकर कहा कि फिजिकल सुनवाई सभी दिनों के लिए होनी चाहिए यानी सोमवार से शुक्रवार तक।

    हालांकि, प्रभावी एसओपी में कहा गया कि,

    "सोमवार और शुक्रवार को सूचीबद्ध मामलों के लिए हाइब्रिड सुनवाई के लिए कोई प्रावधान नहीं है, अर्थात् विभिन्न दिन जब मुख्य रूप से ताजा मामले सूचीबद्ध होते हैं।"

    याचिका में सुप्रीम कोर्ट के समक्ष मौखिक उल्लेख का मुद्दा भी उठाया गया है, जो COVID-19 महामारी से पहले के दिनों के दौरान प्रचलन में था।

    याचिका में आगे कहा गया,

    "पिछले एक साल से यह माननीय न्यायालय वर्चुअल सुनवाई के माध्यम से काम कर रहा है और मानक संचालन प्रक्रिया दिनांक 05.03.2021 में मौखिक उल्लेख करने का कोई प्रावधान नहीं है, जिसके परिणामस्वरूप वकील अभी भी मौखिक उल्लेख नहीं कर पाएंगे।"

    उसने कहा कि लिस्टिंग की अजीबो-गरीब प्रणाली की वजह से बड़ी संख्या में जरूरी मामले अनसुने होते जा रहे हैं, यानी मेंशनिंग रजिस्ट्रार को ईमेल भेजकर आग्रह करने की वजह बताई जा रही है।

    एसोसिएशन ने कहा कि दिल्ली हाईकोर्ट सहित अधिकांश हाईकोर्ट ने या तो फिजिकल न्यायालयों को शुरू कर दिया है या वे फिजिकल न्यायालय शुरू करने की प्रक्रिया में हैं। फिर यह सही समय है कि हर दूसरे संस्थान की तरह सुप्रीम कोर्ट भी सामान्य स्थिति बहाल करे।

    इसके लिए प्रवेश द्वार पर तापमान की जांच, मास्क पहनना और सोशल डिस्टेंसिंग बनाए रखने जैसी पर्याप्त सावधानियों के साथ फिजिकल सुनवाई को फिर से शुरू कर सकता है।

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