सुप्रीम कोर्ट ने एनआई एक्ट, 1881 की धारा 138 के तहत ईमेल और व्हाट्सएप के जर‌िए डिमांड नोटिस की सेवा की व्यवहार्यता पर अटॉर्नी जनरल का जवाब मांगा

LiveLaw News Network

9 Jun 2020 1:16 AM GMT

  • सुप्रीम कोर्ट ने एनआई एक्ट, 1881 की धारा 138 के तहत ईमेल और व्हाट्सएप के जर‌िए डिमांड नोटिस की सेवा की व्यवहार्यता पर अटॉर्नी जनरल का जवाब मांगा

    सुप्रीम कोर्ट ने निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट, 1881 की धारा 138 के तहत ईमेल और व्हाट्सएप के जर‌िए "चेक के अनादर" मामलों में डिमांड नोटिस की सेवा की मांग वाले एक आवेदन में सोमवार को अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल की प्रतिक्रिया मांगी।

    मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे की अगुवाई वाली एक पीठ ने सेवा के वैकल्पिक साधनों की व्यवहार्यता पर अटॉर्नी जनरल की प्रतिक्रिया मांगी और यह सुनिश्चित करने के तरीके कि इन वैकल्पिक साधनों के माध्यम से उक्त सेवा का दुरुपयोग नहीं किया जाता है।

    COVID -19 के मद्देनजर मामलों को दायर करने की सीमा अवधि बढ़ाने के लिए सुप्रीम कोर्ट की ओर से उठाए गए सूओ मोटो मामले में इंटरलोक्युटरी आवेदन दायर किया गया था।

    आवेदक की ओर से एडवोकेट मयंक खिरसागर और साहिल मोंगा पेश हुए थे।

    सीजेआई बोबडे ने कहा, "हमें कुछ विशेषज्ञों ने बताया है कि लोग ईमेल और व्हाट्सएप के माध्यम से सेवा का दुरुपयोग करने की कोशिश करते हैं। इसलिए एजी इसका जवाब दे सकते हैं कि इस तरह की स्वतंत्रता का दुरुपयोग किए बिना यह कैसे किया जा सकता है। हमें बताएं कि उनकी सलाह क्या है, इसलिए इस पर विचार किया जा सकता है। हम इस पर विशेषज्ञ नहीं हैं।"

    एडवोकेट बिंटू थॉमस ने कहा कि सीमा का विस्तार ‌री-फाइलिंग के लिए भी लागू किया जाना चाहिए।

    इस पर सीजेआई बोबडे ने स्पष्ट किया, "चाहे फाइलिंग हो या फिर री-फाइलिंग, एक ही सिद्धांत लागू होंगे। यदि लॉकडाउन की अवधि के दौरान समय समाप्त हो जाता है, तो एक ही सिद्धांत लागू होगा। जब भी हम उस आदेश को पारित करेंगे, हम ऐसा कहेंगे।"

    इससे पहले, 23 मार्च को, सीजेआई के नेतृत्व वाली पीठ ने 15 मार्चा से सीमा अवधि बढ़ाने का एक सामान्य आदेश पारित किया था, जिसमें भारत के संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत विशेष शक्तियों को शामिल किया गया था।

    23 मार्च के आदेश को COVID-19 महामारी के दौरान देश भर की अदालतों और न्यायाधिकरणों में फिजिकल फाइलिंग को कम करने के मकसद से पारित किया गया था।

    सुप्रीम कोर्ट ने आदेश में कहा था,

    "इस तरह की कठिनाइयों को कम करने के लिए और यह सुनिश्चित करने के लिए कि इस न्यायालय सहित देश भर के संबंधित न्यायालयों / न्यायाधिकरणों में ऐसी कार्यवाही दायर करने के लिए वकीलों / वादियों को शारीरिक रूप से नहीं आना है, इसके लिए यह आदेश दिया गया है कि ऐसी सभी कार्यवाहियों में सीमा की अवधि, सामान्य कानून या विशेष कानूनों के तहत निर्धारित सीमा के बावजूद, चाहे वह क्षम्य हो या नहीं, विस्तारित रहेगी। आदेश 15 मार्च 2020 से/वर्तमान कार्यवाही में इस न्यायालय द्वारा पारित अगले आदेश तक प्रभावी रहेगा।"

    पीठ ने आगे कहा था कि अनुच्छेद 141 के अनुसार यह सभी अदालतों/ न्यायाधिकरणों के लिए बाध्यकारी होगा,

    "हम भारत के संविधान के अनुच्छेद अनुच्छेद 142, अनुच्छेद 141 के साथ पढ़ें, के तहत इस शक्ति का उपयोग कर रहे हैं और घोषणा करते हैं कि यह आदेश सभी न्यायालयों / न्यायाधिकरणों और अधिकारियों पर अनुच्छेद 141 के आशयों के भीतर बाध्यकारी आदेश है।"

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