सुप्रीम कोर्ट ने आपराधिक पृष्ठभूमि वाले व्यक्तियों के चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध संबंधी याचिका की सुनवाई से इनकार किया, सेपरेशन ऑफ पावर का हवाला दिया
LiveLaw News Network
17 Nov 2020 1:20 PM IST

Supreme Court of India
सुप्रीम कोर्ट ने आपराधिक पृष्ठभूमि वाले व्यक्तियों को चुनाव लड़ने से रोकने संबंधी याचिका की सुनवाई से सोमवार को इनकार कर दिया।
न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव, न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता और न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी की खंडपीठ ने कहा कि इस याचिका में उठाया गया मुद्दा संसद के कार्यक्षेत्र में आता है और याचिकाकर्ता इस संबंध में शीर्ष अदालत के पूर्व के दिशानिर्देशों पर अमल के लिए उपलब्ध उपाय के इस्तेमाल के लिए स्वतंत्र है।
याचिकाकर्ता लोक प्रहरी ने अपने महासचिव एडवोकेट एस एन शुक्ला के जरिये कोर्ट को बताया कि इस मामले में कोर्ट के समक्ष उठाया गया मुद्दा उन व्यक्तियों की उम्मीदवारी को अवैध घोषित करने से संबंधित है, जिन्हें अदालतों द्वारा एक वर्ष से अधिक समय से आरोपित किया गया हो और पांच साल से अधिक की जेल की सजा के साथ दोषी ठहराया गया हो।
एस एन शुक्ला ने कोर्ट से कहा,
"ऐसे व्यक्तियों का निर्वाचन जन प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 100 के तहत अवैध घोषित किया जाना चाहिए।"
न्यायालय ने इस बाबत 2014 के फैसले का भी जिक्र किया और कहा कि इस याचिका में जो सवाल उठाये गये हैं उसका जवाब तत्कालीन न्यायाधीश आर एम लोढा की एक खंडपीठ ने 2014 में जारी आदेश के तहत दे दिया था, जिसे बाद में विधि आयोग को भेज दिया गया था।
श्री शुक्ला ने उसके बाद 2018 के फैसले का उल्लेख किया, जिसमें कोर्ट ने चुनाव कराने से संबंधित 1961 की नियमावली के नियम 4ए के फॉर्म 26 में आवश्यक संशोधन का दिशानिर्देश दिया था, ताकि उम्मीदवार अपने और उनके एसोसिएट्स के आय के स्रोतों के संबंध में हलफनामा के जरिये घोषणा कर सके।
इस संदर्भ में श्री शुक्ला ने कोर्ट से कहा कि आपराधिक पृष्ठभूमि के व्यक्तियों को चुनाव लड़ने से वंचित करने के प्रयास सुनिश्चित करने के लिए 'पब्लिक इंटेरेस्ट फाउंडेशन ऑफ इंडिया बनाम भारत सरकार' के मामले में शीर्ष अदालत के फैसले को लेकर कोई कदम नहीं उठाये गये हैं और संसद में आपराधिक पृष्ठभूमि वाले व्यक्तियों की संख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है।
उन्होंने कि इस संबंध में पूर्व की सिफारिशों और अनुशंसाओं के बावजूद संसद द्वारा इस बारे में अभी तक कोई कानून प्रभावी नहीं किया जा सका है।
जब बेंच ने अंतत: याचिका सुनने से इनकार कर दिया तो याचिकाकर्ता ने टिप्पणी की कि संसद कभी भी नहीं चाहेगी कि ऐसा कोई कानून पारित हो। श्री शुक्ला ने कहा, "संसद में अपराधियों की बहुतायत है। ऐसा कानून कभी भी पारित नहीं हो पाएगा, क्योंकि संसद में अपराधियों की संख्या 33 प्रतिशत से अधिक हो चुकी है।"
वर्ष 2018 में, सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने चुनावी अयोग्यता मामले में अपना फैसला सुनाया था। कोर्ट को तय करना था कि यदि किसी व्यक्ति के खिलाफ आपराधिक आरोप तय किये जाते हैं तो क्या विधायी निकायों की उनकी सदस्यता समाप्त कर दी जानी चाहिए?
कोर्ट ने एकमत से निर्णय दिया था कि वह उन उम्मीदवारों को चुनाव लड़ने से अयोग्य नहीं ठहरा सकता, जिनके खिलाफ आपराधिक आरोप तय किये जा चुके हैं, क्योंकि वह चुनाव लड़ रहे उम्मीदवारों को अयोग्य ठहराये जाने के संबंध में नये नियम लागू नहीं कर सकता।
बेंच ने सरकार को ऐसे कानून बनाने के दिशानिर्देश जारी किये थे, जिसके तहत गम्भीर आपराधिक पृष्ठभूमि के लोगों को राजनीति में प्रवेश करने से रोका जा सके।