सुप्रीम कोर्ट ने रद्द की दिल्ली हाईकोर्ट के पदोन्नति मानदंडों के खिलाफ दायर याचिका

LiveLaw News Network

25 April 2020 1:50 PM GMT

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    Supreme Court of India

    सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को दिल्ली हाईकोर्ट के उन प्रस्तावों और नियमों की संवैधानिक वैधता को दी गई चुनौती को खारिज कर दिया, जिनके तहत न्यायिक अधिकारी को जिला और सत्र न्यायाधीश के पद पर नियुक्त किए जाने के मानदंडों को रेखांकित किया गया था।

    जस्टिस एएम खानविलकर और दिनेश माहेश्वरी की खंडपीठ ने अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश सुजाता कोहली की याचिका को खारिज कर दिया। याचिका में कहा गया था कि पदोन्नति के लिए उन पर न्यायपूर्ण और उचित तरीके से विचार नहीं किया गया। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि दिल्ली हाईकोर्ट ने दिल्ली हाइयर ज्यूड‌िस‌ियल सर्विसेज़ (डीएचजेएस) के जर‌िए पदोन्नति के लिए संशोधित मानदंडों को लागू करने के लिए उचित और संतुलित दृष्टिकोण अपनाया है।

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एक अधिकारी की ग्रेडिंग अधिकारी और संस्‍थान के बीच का मामला होता है। कोई अन्य अधिकारी किसी अन्य अधिकारी की ग्रेडिंग के बारे में जानकारी नहां मांग सकता है। पीठ ने कहा, ग्रेडिंग के मामले में अपीलकर्ता के प्रति हाईकोर्ट ने कोई पूर्वाग्रह प्रदर्श‌ित नहीं किया था।

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा,

    "हमारा स्पष्ट मत है कि विचारणीय की श्रेणी में शामिल उम्मीदवारों के तुलनात्मक गुणों के आकलन के लिए मानदंड तय करना हाईकोर्ट का अधिकार क्षेत्र है; और विचार के अधिकार के उल्लंघन का सुझाव तभी दिया जा सकता है, जब समान परिस्थितिजन्य व्यक्तियों के आकलन के लिए अलग-अलग मानदंड या अलग-अलग आदर्श लागू किए जाएं। हालांकि, अपीलकर्ता का यह मामला नहीं है और न ही ऐसा हो सकता है क्योंकि हाईकोर्ट ने स्पष्ट रूप से विचार क्षेत्र में शामिल सभी व्यक्तियों पर उचित समय पर चर्चा की है और उम्मीदवारों की तुलनात्मक योग्यता के आधार पर उन्हें पदोन्नति दी है।

    अपीलकर्ता प्रतिस्पर्धी योग्यता में सफल नहीं हो पाई तो वह वह कानूनी अधिकार के उल्लंघन की शिकायत नहीं कर सकती है। अपीलकर्ता का मामला यह नहीं है कि उनसे जूनियर या मेरिट में उनके बराबर या कोई ऐसा व्यक्ति जो हाईकोर्ट द्वारा निर्धारित मानदंडों को पूरा नहीं करता हो, और पदोन्नत किया गया हो।"

    अप्रैल 2009 में, दिल्ली हाईकोर्ट ने एक प्रस्ताव पारित किया ‌था, जिसके तहत जिला और सत्र न्यायाधीश के रूप में चयनित या पदोन्नत होने के लिए

    डीएचजेएस से एक उम्मीदवार को 5 वर्ष के विचार क्षेत्र के दरमियान न्यूनतम 'एसीआर (वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट)' में दो 'ए' (बहुत अच्छा ') और 3' बी '(' अच्छा ') की ग्रेडिंग की आवश्यकता ‌होती है। जनवरी 2010 में उक्त प्रस्ताव को संशोधित किया गया और 5 वर्षों के विचार क्षेत्र के दर‌मियान आवश्यकता को न्यूनतम 5 'ए' कर दिया गया, यह भारतीय प्रशासनिक सेवाओं की संशोधित पदोन्नति मानदंडों के बराबर थी। इस संशोधन के संबंध में विभिन्न अभ्यावेदनों पर विचार करने के बाद 2009 से 2012 तक 4 वर्षों की अवधि में संशोधित मानदंडों को चरणबद्ध तरीके से लागू करने का निर्णय लिया गया।

    अपीलकर्ता की शिकायत थी कि उसके अभ्यावेदनों के बावजूद, उसके जूनियर बैच के कई उम्मीदवारों को प्र‌िंसिपल जज, फैमिली कोर्ट के पद पर नियुक्ति किया गया, वे सभी उनसे रैंक में भी जूनियर थे।

    कोहली ने अपनी अपील में मुख्य रूप से दलील दी कि उन्हें नए मानदंडों के बारे में सूचित या अवगत नहीं कराया गया था। कोर्ट ने कई कमियों के कारण इस तर्क को खारिज कर दिया। यह नोट किया गया कि वह 2002 में डीएचजेएस में शामिल हुई ‌थीं, अपने बैच में 2 वीं रैंक हासिल की थीं, जहां एंट्री लेवल प्रमोशन मेरिट-कम-सीनियारिटी या मेरिट के आधार पर तय होती है, और यह दलील नहीं दी जा सकती कि है कि एक उम्मीदवार ऊर्ध्वगमन के लिए एंट्री लेवल से कम की आवश्यकताओं की उम्मीद कर सकता है।

    फैसले में आगे कहा गया कि हाईकोर्ट 2009 से डीएचजेएस में प्रमोशन के लिए मानदंडों में संशोधन कर रहा है, और उक्त प्रस्ताव को चरणबद्ध तरीके से लागू करने से पहले कई अभ्यावेदनों पर विचार किया ‌था।

    अपीलकर्ता ने दावा किया था कि दिल्ली उच्च न्यायालय ने गैरकानूनी और अनुचित तरीके नए मानदंडों को पूर्वव्यापी प्रभाव के साथ लागू किया था, जिसके चलते उनके प्रति गंभीर पूर्वाग्रह पैदा हुआ।हालांकि पीठ ने क्रियान्वयन के तरीके को ध्यान में रखते हुए न केवल इस दलील को खारिज किया बल्कि हाईकोर्ट सराहना भी की।

    मानदंड के संचालन का निस्तारण करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि, "एसीआर ग्रेडिंग के प्रभावों के संबंध में शिकायतें करते समय अपीलकर्ता ने लगता है मूलभूत कारक पर ध्यान नहीं दिया कि पदोन्नति के लिए एक व्यक्ति की न्यूनतम योग्यता, अपने आप में निर्णायक नहीं होती बल्‍कि विचार क्षेत्र में शामिल व्यक्तियों की तुलनात्मक योग्यता महत्वपूर्ण होती है।"

    पीठ ने कहा, ग्रेडिंग अधिकारी और संस्‍थान के बीच ही रहनी चाहिए। कोई अधिकारी किसी अन्य ‌अधिकारी की ग्रेडिंग के बारे में जानकारी नहीं मांग सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी लेकिन कहा कि कोहली एक मेहनती अधिकारी हैं, जिन्हें करियर में कोई प्रतिकूल टिप्पणी नहीं मिली।

    केस का विवरण

    टाइटल: सुजाता कोहली बनाम रजिस्ट्रार जनरल, दिल्ली हाईकोर्ट

    केस नंबर: सिविल अपील नंबर 2374/2020

    कोरम: जस्टिस एएम खानविलकर और दिनेश माहेश्वरी

    निर्णय डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें



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