प्रेग्नेंसी के कारण अटेंडेंस कम होने से लाॅ की छात्रा का रिजल्ट रोक दिया था, सुप्रीम कोर्ट ने दिया डीयू को परिणाम घोषित करने का निर्देश

LiveLaw News Network

31 July 2020 8:25 AM GMT

  • प्रेग्नेंसी के कारण अटेंडेंस कम होने से लाॅ की छात्रा का रिजल्ट रोक दिया था, सुप्रीम कोर्ट ने दिया डीयू को परिणाम घोषित करने का निर्देश

    सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) को निर्देश दिया है कि वह एक लाॅ की छात्रा का रिजल्ट घोषित करे। इस छात्रा के चौथे व छठे सेमेस्टर का परिणाम रोक दिया गया था जबकि विश्वविद्यालय ने अन्य सभी बैचमेट्स का परिणाम घोषित कर दिया था।

    मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे, जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस वी रामसुब्रमण्यन की पीठ ने कहा, '

    'हम निर्देश देते हैं कि वर्तमान आवेदक/याचिकाकर्ता अर्थात अंकिता मीणा के चौथे व छठे सेमेस्टर का परिणाम प्रतिवादी (एस) के द्वारा घोषित कर दिया जाए। इस प्रकार याचिकाकर्ता की तरफ से दायर आवेदन का निपटारा किया जा रहा है।''

    विधि संकाय के एलएलबी पाठ्यक्रम की अंतिम वर्ष की छात्रा की तरफ से यह आवेदन दायर किया गया था। वह गर्भावस्था के कारण अपनी लाॅ डिग्री के दूसरे वर्ष में कालेज नहीं आ पाई थी। इसी आवेदन पर पीठ ने यह निर्देश जारी किया हैै।

    याचिकाकर्ता अंकिता मीणा ने वर्ष 2018 में भी दिल्ली हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। उसने मांग की थी कि डीयू को निर्देश दिया जाए कि उसे चतुर्थ सेमेस्टर की एलएलबी की परीक्षा में बैठने की अनुमति दी जाए। वह अपनी गर्भावस्था के कारण सेमेस्टर के लगभग 2 महीने कालेज नहीं आ पाई थी,जिस कारण वह आवश्यक 70 प्रतिशत उपस्थिति के मानदंडों को पूरा नहीं कर पाई थी।

    हाईकोर्ट ने नोट किया था कि 'दिल्ली विश्वविद्यालय व अन्य बनाम वंदना कंडारी व अन्य' के मामले में न्यायालय की डिवीजन बेंच के एक फैसले में इस स्थिति को सुलझा दिया गया था। जिसमें अदालत ने कहा था कि उपस्थिति से छूट के मामले में मातृत्व अवकाश को एक अलग कक्ष या उपखंड में नहीं रखा जा सकता है।

    इस आदेश के खिलाफ दायर अपील को भी खारिज कर दिया गया था। जिसमें अदालत की एक खंडपीठ ने कहा था कि

    '' इस तथ्य पर कोई विवाद नहीं है कि बार काउंसिल ऑफ इंडिया देश में कानूनी शिक्षा के मानक को नियंत्रित करती है और विश्वविद्यालय उन नियमों को मानने के लिए बाध्य है,जो बार काउंसिल ऑफ इंडिया द्वारा तय किए जाते हैं या बनाए जाते हैं। इसलिए सिंगल जज ने याचिका को खारिज करके कुछ गलत नहीं किया है।''

    सर्वोच्च न्यायालय ने भी उपस्थिति में छूट देने की इस छात्रा की याचिका को स्वीकार करने से इनकार कर दिया था,हालांकि, अक्टूबर 2018 में दिए गए एक आदेश के तहत उसे अगले सेमेस्टर की कक्षाओं में भाग लेने की अनुमति दे दी गई थी।

    वर्तमान याचिका में याचिकाकर्ता मीणा की तरफ से वरिष्ठ अधिवक्ता मेनका गुरुस्वामी पेश हुई और तर्क दिया कि विश्वविद्यालय ने उसके परिणाम को रोक दिया है,जबकि उसने सभी सेमेस्टर की सभी कक्षाओं में भाग लिया था। वहीं अपने सभी अन्य बैचमेट्स के समान परीक्षाएं भी दी थी।

    दलील दी गई थी कि

    ''याचिकाकर्ता के बैचमेट्स को पहले से ही उनकी प्रोविजनल डिग्री दी जा चुकी है और वह प्रतिवादी विश्वविद्यालय से स्नातक की उपाधि प्राप्त कर चुके हैं। हालांकि, समानता के सिद्धांतों का उल्लंघन करते हुए, याचिकाकर्ता के परिणाम को अभी भी प्रतिवादी विश्वविद्यालय ने रोक कर रखा है और कानून के अनुसार याचिकाकर्ता को एलएलबी पाठ्यक्रम में डिग्री प्रदान नहीं की जा रही है। जिसके परिणामस्वरूप याचिकाकर्ता को अपने करियर में काफी नुकसान हुआ है।''

    मामले का विवरण-

    केस का शीर्षक-धनंजय कुमार व अन्य बनाम दिल्ली विश्वविद्यालय व अन्य

    केस नंबर-एसएलपी नंबर 23898/2018

    कोरम- मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे, न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना और न्यायमूर्ति वी रामसुब्रमण्यन

    आदेश की प्रति डाउनलोड करें



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