प्रवासियों की मुंबई से यूपी की यात्रा के खर्च के लिए वकील की 25 लाख रुपए जमा करने की पेशकश सुप्रीम कोर्ट ने स्वीकार की

LiveLaw News Network

5 Jun 2020 4:42 AM GMT

  • प्रवासियों की मुंबई से यूपी की यात्रा के खर्च के लिए वकील की 25 लाख रुपए जमा करने की पेशकश सुप्रीम कोर्ट ने स्वीकार की

    सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को मुंबई के एक वकील का प्रवासी मज़दूरों की यात्रा के लिए 25 लाख रुपये देने के अनुरोध स्वीकार कर लिया। अदालत ने एक सप्ताह की अवधि में ऐसा करने का निर्देश दिया।

    न्यायमूर्ति अशोक भूषण, न्यायमूर्ति एसके कौल और न्यायमूर्ति एमआर शाह की पीठ ने अधिवक्ता सगीर अहमद को निर्देश दिया कि वे प्रवासी श्रमिकों के लिए मुंबई से उत्तर प्रदेश के संत कबीर नगर तक रेल खर्च का भुगतान करने की पेशकश के बाद सुप्रीम कोर्ट रजिस्ट्री में सेक्रेटरी जनरल के नाम से उक्त राशि जमा करें।

    वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से पेश होकर, याचिकाकर्ता ने प्रवासी कर्मचारियों के लिए अपनी चिंता के बारे में खंडपीठ को अवगत कराया।

    यह पूछे जाने पर कि उन्होंने PM CARES Fund में पैसा क्यों नहीं दिया, याचिकाकर्ता ने कहा कि उन्होंने यह पसंद किया कि उनके पैसे का इस्तेमाल प्रवासियों को घर भेजने के लिए रेल किराया के लिए किया जाए।

    न्यायमूर्ति भूषण ने कहा, "अगर आप चाहें तो इस न्यायालय की रजिस्ट्री में राशि का भुगतान कर सकते हैं।"

    न्यायमूर्ति भूषण ने कहा,

    "याचिकाकर्ता रजिस्ट्री में 25 लाख रुपये जमा करने के लिए तैयार है। इस राशि का उपयोग इन प्रवासी मजदूरों के लिए किया जा सकता है, जो यूपी जाने की इच्छा रखते हैं।"

    मामले को अब 12 जून को आगे की सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया गया है।

    इस मामले में पिछली सुनवाई के दौरान, 15 मई को, शीर्ष अदालत ने केंद्र से यूपी और महाराष्ट्र के साथ अपनी प्रतिक्रियाएं दर्ज करने को कहा था।

    याचिकाकर्ता ने अपने अच्छे इरादे को जाहिर करने के लिए सुप्रीम कोर्ट की रजिस्ट्री में 25 लाख रुपये की राशि जमा करने के लिए सहमति व्यक्त की थी।

    ये राशि बस्ती और संत कबीर नगर जिलों के प्रवासियों की यात्रा की लागत के तौर पर जमा की जाएगी। वकील सगीर अहमद खान की ओर से एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड एजाज मकबूल द्वारा दायर याचिका में कहा गया कि याचिकाकर्ता खुद संत कबीर नगर से हैं और उन प्रवासियों की दुर्दशा से भली-भांति वाकिफ हैं जिन्हें COVID-19 महामारी के मद्देनज़र लगाए गए देशव्यापी लॉकडाउन के बीच छोड़ दिया गया है।

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