यदि कथित कृत्य आधिकारिक कर्तव्य से संबंधित तो सरकारी कर्मचारी के खिलाफ मुकदमे के लिए धारा 197 CrPC के तहत मंजूरी जरूरी: सुप्रीम कोर्ट

LiveLaw News Network

24 July 2021 2:31 PM GMT

  • सुप्रीम कोर्ट, दिल्ली

    सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 197 के तहत सार्वजनिक कर्मचारियों पर मुकदमा चलाने के लिए, यदि उनका कथित कृत्य आधिकारिक कर्तव्य से संबंधित है, तो सक्षम प्राधिकरणों की मंजूरी आवश्यक होगी।

    जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस हेमंत गुप्ता की पीठ ने कहा, उक्त कानून के अनुपालन का पैमाना यह होगा कि प्राध‌िकरण का प्रथम दृष्‍टया यह राय कायम करनी होगी कि चूक का कार्य, जिसके लिए कर्मचारी को आरोपित किया गया है, उनके कर्तव्यों के निर्वहन के साथ उचित रूप से जुड़ा था।

    पीठ ने यह टिप्पणी राजस्थान हाईकोर्ट के एक फैसले के खिलाफ दायर अपील को खारिज करते हुए की। हाईकोर्ट ने आरोपी की ओर से दायर एक याचिका को अनुमति दी थी। आरोपी के खिलाफ मामला यह था कि उन्होंने अपने वरिष्ठ अधिकारियों के साथ मिलीभगत कर एक साजिश की थी, जिन्होंने जाली पट्टा जारी की थी। शिकायतकर्ता और राज्य ने उच्च न्यायालय के आदेश का विरोध किया जाली दस्तावेजों की कार्रवाई को कर्मचारी के आधिकारिक कर्तव्यों के तहत किया गया एक कृत्य नहीं माना जाएगा और इस प्रकार CrPC की धारा 197 आरोपी को सुरक्षा नहीं देगी।

    बेंच ने कहा, 'हमने पार्टियों की ओर से पेश ‌विद्वान वकील की प्रस्तुतियों पर विचार किया है। CrPC की धारा 197 का मकसद एक अधिकारी की अनावश्यक उत्पीड़न से रक्षा करना है, जिस पर आधिकारिक कर्तव्यों के निर्वहन में अपराध का आरोप लगा है और इस प्रकार, अदालत को सक्षम प्राधिकारी की पिछली मंजूरी के ब‌िना, ऐसे अपराध का संज्ञान लेने से रोकता है। दुर्भावनापूर्ण या खिजाऊ अभियोजनों से रक्षा के लिए सार्वजनिक कर्मचारियों को विशेष श्रेणी में रखा गया है। उसी समय, यह ढाल भ्रष्ट अधिकारियों की रक्षा नहीं कर सकती है और प्रावधानों को इस प्रकार समझा जाना चाहिए कि ईमानदारी, न्याय और सुशासन के मकसद को आगे बढ़ाने के लिए इसका उपयोग हो। [सुब्रमनियन स्वामी बनाम देखें। मनमोहन सिंह]। धोखाधड़ी, दस्तावेजों की जालसाज़ी या दुरूपयोग में अ‌‌ध‌िकारियों की संलिप्तता आधिकारिक कर्तव्य के निर्वहन का ‌‌ह‌िस्‍सा नहीं कहा जा सकता है। हालांकि, ऐसी मंजूरी आवश्‍यक है, यदि सरकारी अध‌िकारी ने लगे कथित अपराध को, उसी ने "अपने आधिकारिक कर्तव्य का निर्वहन करते हुए या ऐसा करने के मकसद से" किया है।'

    अदालत ने कहा कि सरकारी अधिकारी को को सौंपी गई भूमिका यह है कि उन्होंने दो वरिष्ठ नागरिकों के साथ, जिन्हें धारा 197 CrPC के तहत सुरक्षा प्रदान की गई थी, साजिश की। न तो राज्य और न ही शिकायतकर्ता ने इन दो अधिकारियों को CrPC की धारा 197 के तहत दी गई सुरक्षा के खिलाफ अपील की।

    अदालत ने अपील को खारिज करते हुए कहा, "हम, इस प्रकार, यह सराहना करने में सक्षम नहीं हैं कि क्यों ऐसी ही सुरक्षा को परीक्षण अदालत और उच्च न्यायालय द्वारा प्रतिवादी संख्या दो को दी जाए, जैसाकि अन्य दो दो अधिकारियों को दी गई है। किसी भी अधिकारी के संबंध में संज्ञान लेने के लिए सक्षम प्राधिकारी से स्वीकृति आवश्यक होती है और किसी भी अधिकारी के संबंध में कोई मंजूरी नहीं प्राप्त की गई थी। इसी के मद्देनजर अन्य दो अधिकारियों के खिलाफ कार्यवाही को रद्द कर दिया गया और यही वह है जो उच्च न्यायालय ने वर्तमान मामले में निर्देशित किया है। "

    केस: इंद्रा देवी बनाम राजस्थान राज्य [CrA593 of 2021]

    कोरम: जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस हेमंत गुप्ता

    सिटेशन: LL 2021 SC318

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