सफूरा जरगर की हिरासत अंतरराष्ट्रीय कानूनों के अनूरूप नहींः अमेरिकन बार एसोसिएशन ने तत्काल र‌िहाई की अपील की

LiveLaw News Network

13 Jun 2020 9:46 AM GMT

  • सफूरा जरगर की हिरासत अंतरराष्ट्रीय कानूनों के अनूरूप नहींः अमेरिकन बार एसोसिएशन ने तत्काल र‌िहाई की अपील की

    सेंटर फॉर ह्यूमन राइट्स, अमेरिकन बार एसोसिएशन ने कहा है कि सफूरा जरगर का प्री-ट्रायल डिटेंशन अंतरराष्ट्रीय कानून, जिनमें वो संधियां भी शामिल है, भारत जिनमें स्टेट-पार्टी है, के मानकों के अनुरूप प्रतीत नहीं होता है।

    सेंटर ने कहा है, "अंतरराष्ट्रीय कानून, जिनमें वो संधियां भी शामिल हैं, भारत जिनमें स्टेट पार्टी है, केवल संकीर्ण परिस्थितियों में प्री-ट्रायल कस्टडी की अनुमति देता है, सुश्री जरगर का मामला ऐसा है नहीं। इंटरनेशनल कोवनंट ऑफ सिविल एंड पॉलिटिकल राइट (ICCPR) कहता है कि "यह सामान्य नियम नहीं होना चाहिए कि ट्रायल का इंतजार कर रहे व्यक्तियों को हिरासत में रखा जाएगा।"

    उल्लेखनीय है कि 27 वर्षीय सफूरा जरगर 10 अप्रैल से हिरासत में है। वहा जामिया मिल्ल‌िया इस्लामिया की पीएचडी स्‍कॉलर हैं और सीएए विरोधी आंदोलन में सक्रिय रही थीं। उन्हें गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम 1967 (UAPA) के तहत दर्ज एक मामले में हिरासत में लिया गया है, उन पर दिल्ली दंगों की साजिश में शामिल होने का आरोप है।

    पिछले हफ्ते, नई दिल्ली स्‍थ‌ित अतिरिक्त सत्र न्यायालय, पटियाला हाउस ने सफूरा को जमानत देने से इनकार कर दिया था। सेंटर फॉर ह्यूमन राइट्स, एबीए, ने उल्लेख किया है कि जरगर दिसंबर 2019 से नागरिकता संशोधन अधिनियम 2019 के विरोध में सबसे आगे रही हैं। उन्हें विरोध प्रदर्शन के तहत कथ‌ित रूप से एक सड़क को ब्लॉक करने के आरोप 10 अप्रैल को गिरफ्तार किया गया था।

    हालांकि एक मजिस्ट्रेट ने "उनकी गर्भावस्था, स्वास्थ्य की स्थिति, और COVID-19 के कारण जेलों में भीड़ कम करने के सुप्रीम कोर्ट के आदेश" के मद्देनजर उन्हें उस मामले में जमानत दे दी थी। उन्हें दोबारा यूएपीए के तहत दिल्ली दंगों की साजिश में शामिल होने का आरोप लगाकर दोबारा गिरफ्तार कर लिया गया।

    सेंटर ने कहा कि यूएपीए के तहत हिरासत में ली गई सफूरा को जमानत देने से इनकार करना इंटरनेशनल कोवनंट फॉर सिविल एंड पॉलिटिकल राइट्स के प्रावधानों के अनुरूप नहीं है, जिनका मानना है कि प्री-ट्रायल ड‌िटेंशन केवल संकीर्ण उद्देश्यों के लिए होनी चाहिए जैसे "देश छोड़ने से रोकना, सबूत के साथ छेड़खानी से रोकना, या अपराध की पुनरावृत्ति" आदि से रोकना।

    सेंटर ने यह कि कहा कि द यूएन वर्किंग ग्रुप ऑन आर्बिट्ररी डिटेंशन ने ICCPR की व्याख्या की है कि "किसी भी प्रकार की हिरासत असाधारण और कम अवधि की होना चाहिए और न्यायिक कार्यवाही में प्रतिवादी का प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने की व्यवस्‍था के साथ रिहाई हो सकती है"।

    इस पृष्ठभूमि में, केंद्र ने कहा-

    "सुश्री जरगर के खिलाफ दर्ज एफआईआर, जिनमें उन्हें हिंसा के कृत्यों से जोड़ा गया है, में सबूतों की कमी को देखते हुए, यह स्पष्ट नहीं है कि इस मामले में अदालत ने प्री-ट्रायल डिटेंशन के विकल्पों पर विचार क्यों नहीं किया।"

    सेंटर ने सफूरा की गर्भावस्था के कारण उनकी कमजोर स्थिति और जेल में COVID-19 के जोखिम पर विशेष चिंता जताई।

    "भले ही सुश्री जरगर की हिरासत को सामान्य परिस्थितियों में उचित ठहराया गया होता, लेकिन उनकी गर्भावस्था और कोरोनवायरस के जोखिम के कारण मौजूदा हालात में यह अनुचित है। महिला कैदियों से व्यवहार के लिए संयुक्त राष्ट्र नियम और महिलाओं अपराधियों के लिए नॉन-कस्टोडियल उपाय (जिन्हें बैंकॉक नियमों के रूप में भी जाना जाता है) का निष्कर्ष है कि प्री-ट्रायल चरण के दौरान गर्भवती महिलाओं के लिए नॉन-कस्टोडियल साधनों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए, जहां भी संभव हो या उचित हो।"

    सेंटर ने कहा कि तिहाड़ जेल, जहां जरगर को हिरासत में लिया गया है, वहां क्षमता से अधिक कैदी बंद हैं और जेल का सहायक अधीक्षक COVID-19 पॉजिटिव पाया गया है। कई कैदियों को क्वारंटाइन किया गया है। जरगर की बहन ने भी एक साक्षात्कार में कहा है कि उन्हें पॉलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम की शिकायत है, जिसमें उच्च रक्तचाप की परेशानी होती है। उच्च रक्तचाप के मरीजों को COVID-19 संक्रमण होने का अधिक खतरा है।

    इस पृष्ठभूमि में, सेंटर ने कहा:

    "आपराधिक आचरण के संबंध में सबूतों की कमी, उनकी गर्भवस्‍था की स्थिति और अभियोजकों की यह स्पष्ट करने में, कि जरगर को अगर जमानत दी गई तो कैसे ये खतरनाक होगा, विफलता को देखते हुए जरगर को जमानत बांड प्रस्तुत करने का अवसर दिया जाना चाहिए और कानूनी सुनवाई का समय आने तक उन्हें अपने परिवार के साथ घर में होना चाहिए। केंद्र ने अदालत से भारत की नैतिक और कानूनी बाध्यताओं को बनाए रखने की अपील की और सुश्री जरर्र की तत्काल रिहाई का आदेश देने का आग्रह किया।"

    केंद्र ने यह भी कहा कि जरगर के खिलाफ एक निंदनीय ऑनलाइन अभियान शुरू किया गया है, जिस पर दिल्ली महिला आयोग ने कार्रवाई की है।

    अमेरिकन बार एसोसिएशन की स्‍थापना 21 अगस्त, 1878 को हुई थी। यह शिकागो स्‍थ‌ित वकीलों और छात्रों का स्‍वैच्छ‌िक समूह है, जिसमें 40000 से अधिक सदस्य और 3500 से अधिक संस्थाएं शामिल हैं।

    सेंटर फॉर ह्यूमन राइट्स, अमेरिकन बार एसोसिएशन रिपोर्ट पढ़ने के लिए क्लिक करें

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