S. 411 IPC | सुप्रीम कोर्ट ने चोरी की सोने की छड़ें रखने के आरोपी जौहरी को बरी किया, कहा- उसे नहीं पता था कि संपत्ति चोरी की है

Shahadat

26 Feb 2025 4:49 AM

  • S. 411 IPC | सुप्रीम कोर्ट ने चोरी की सोने की छड़ें रखने के आरोपी जौहरी को बरी किया, कहा- उसे नहीं पता था कि संपत्ति चोरी की है

    सुप्रीम कोर्ट ने जौहरी को बरी किया, जिसे भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 411 के तहत हाई-प्रोफाइल ₹6.7 करोड़ के विजया बैंक धोखाधड़ी मामले में चोरी की संपत्ति प्राप्त करने के लिए दोषी ठहराया गया।

    न्यायालय ने कहा कि केवल चोरी की संपत्ति पर आरोपी का कब्जा होना IPC की धारा 411 के तहत दोषसिद्धि उचित नहीं ठहराएगा, जब तक कि यह साबित न हो जाए कि आरोपी को पता था या यह मानने का कारण था कि संपत्ति चोरी की गई।

    चूंकि अभियोजन पक्ष यह साबित नहीं कर पाया कि अपीलकर्ता/आरोपी के कब्जे से जब्त और बरामद सोने की छड़ें धोखाधड़ी से जुड़ी थीं, इसलिए न्यायालय ने अपीलकर्ता-जौहरी को संदेह का लाभ दिया और प्रतिवादियों को उसकी आभूषण फर्म से जब्त की गई सोने की छड़ें वापस करने का आदेश दिया।

    जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा और जस्टिस केवी विश्वनाथन की पीठ ने इस मामले की सुनवाई की, जो 1997 में नासिक के विजया बैंक में 6.7 करोड़ रुपये के फर्जी टेलीग्राफिक ट्रांसफर (टीटी) से जुड़े वित्तीय धोखाधड़ी से जुड़ा था।

    बैंक में मेसर्स ग्लोब इंटरनेशनल के नाम से फर्जी बैंक अकाउंट खोला गया। इस खाते में 6.7 करोड़ रुपये की राशि के जाली टीटी जमा किए गए और फर्जी डिमांड ड्राफ्ट के जरिए व्यवस्थित तरीके से धन निकाला गया। निकाले गए पैसे का कथित तौर पर सोने की छड़ें खरीदने के लिए इस्तेमाल किया गया, जो बाद में अपीलकर्ता सहित कई व्यक्तियों के पास पाए गए।

    CBI के नेतृत्व वाली जांच के परिणामस्वरूप कई गिरफ्तारियां हुईं, जिसमें अपीलकर्ता भी शामिल था- जो एक आभूषण फर्म का मालिक था, जहां कथित तौर पर सोने की छड़ें बेची गईं।

    ट्रायल कोर्ट ने अपीलकर्ता को चोरी की संपत्ति प्राप्त करने के आरोप में धारा 411 IPC के तहत दोषी ठहराया और जब्त की गई सोने की छड़ें उसे वापस करने का आदेश दिया। हालांकि, हाईकोर्ट ने सोना लौटाने के आदेश को पलटते हुए उसकी दोषसिद्धि बरकरार रखी और निर्देश दिया कि राज्य इसे जब्त कर ले।

    इसके बाद सुप्रीम कोर्ट में अपील की गई।

    हाईकोर्ट का फैसला पलटते हुए जस्टिस मिश्रा द्वारा लिखे गए फैसले में कहा गया कि जब्त किए गए सोने की छड़ों को धोखाधड़ी से अर्जित संपत्ति से जोड़ने वाले निर्णायक सबूतों के अभाव के कारण अपीलकर्ता की दोषसिद्धि बरकरार नहीं रखा जा सकती।

    त्रिम्बक बनाम मध्य प्रदेश राज्य एआईआर 1954 एससी 39 के मामले पर भरोसा करते हुए न्यायालय ने स्पष्ट किया,

    “आईपीसी की धारा 411 के तहत आरोप को साबित करने के लिए अभियोजन पक्ष का यह कर्तव्य है कि वह साबित करे कि (i) चोरी की गई संपत्ति आरोपी के कब्जे में थी; (ii) आरोपी के कब्जे में आने से पहले आरोपी के अलावा कुछ अन्य लोगों के पास संपत्ति थी और (iii) आरोपी को पता था कि संपत्ति चोरी की गई संपत्ति थी।”

    यह देखते हुए कि अभियोजन पक्ष यह साबित करने में विफल रहा कि उसे यह विश्वास करने का ज्ञान या कारण था कि सोना चोरी हो गया, अदालत ने कहा कि सोने की पहचान स्थापित नहीं की गई, इसलिए इसे चोरी की संपत्ति नहीं माना जा सकता।

    अदालत ने कहा,

    “जब वर्तमान मामले में आईपीसी की धारा 411 के तहत आरोप को साबित करने के लिए आवश्यक साक्ष्य पर विचार किया जाता है, भले ही यह साबित हो जाए कि अपीलकर्ता को मिस्टर मुकेश शाह द्वारा डिमांड ड्राफ्ट सौंपे गए और अपीलकर्ता द्वारा मेसर्स सीएन और मेसर्स वी.बी. ज्वैलर्स से सोने की छड़ें खरीदी गईं, तब भी अभियोजन पक्ष के लिए यह साबित करना आवश्यक था कि अपीलकर्ता को या तो यह ज्ञान था या यह विश्वास करने का कारण है कि डिमांड ड्राफ्ट धोखाधड़ी प्रक्रिया के माध्यम से प्राप्त किए गए ताकि सोने की छड़ें अपीलकर्ता के हाथों में चोरी की संपत्ति बन जाएं या अपीलकर्ता साजिश का हिस्सा था।”

    अदालत ने आगे कहा,

    “अभियोजन पक्ष को अपीलकर्ता के खिलाफ परिस्थितियों की श्रृंखला को सकारात्मक रूप से पूरा करके सभी उचित संदेहों से परे अपना मामला साबित करना होगा, जिसमें अभियोजन पक्ष वर्तमान मामले में पूरी तरह विफल रहा है। सभी पूर्वोक्त कारणों से हम अपीलकर्ता/आरोपी नंबर 3 (नंदकुमार बाबूलाल सोनी) द्वारा प्रस्तुत अपील स्वीकार करने के लिए इच्छुक हैं। तदनुसार, अपीलकर्ता-नंदकुमार बाबूलाल सोनी द्वारा प्रस्तुत आपराधिक अपील नंबर 581-583/2012 को स्वीकार किया जाता है। आईपीसी की धारा 120बी और 411 के तहत उनकी दोषसिद्धि और सजा रद्द की जाती है। चूंकि जब्त सोने की छड़ें अपीलकर्ता-नंदकुमार बाबूलाल सोनी से बरामद की गईं, इसलिए वह उन पर कब्जा करने का हकदार है। इसलिए हम निर्देश देते हैं कि जब्त सोने की छड़ें- नंबर 205 (अनुच्छेद 2) अपीलकर्ता-नंदकुमार बाबूलाल सोनी को सौंप दी जाएं।”

    उपरोक्त के संदर्भ में अदालत ने अपील स्वीकार की।

    केस टाइटल: नंदकुमार बाबूलाल सोनी बनाम महाराष्ट्र राज्य और अन्य।

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