हेट स्पीच पर सत्ताधारी दल न केवल खामोश, बल्‍कि समर्थन में भीः जस्टिस रोहिंटन नरीमन

LiveLaw News Network

20 Jan 2022 3:16 PM IST

  • हेट स्पीच पर सत्ताधारी दल न केवल खामोश, बल्‍कि समर्थन में भीः जस्टिस रोहिंटन नरीमन

    सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस रोहिंटन फली नरीमन ने हाल के दिनों में देश में बढ़ी हेट स्पीच पर चिंता व्यक्त की है। एक वेब‌िनार में उन्होंने कहा, "दुर्भाग्य से, सत्तारूढ़ दल में उच्‍च पदों पर आसीन लोग न केवल हेट स्पीच पर चुप हैं, बल्कि उन्हें अन्यथा समर्थन भी दिया है।"

    उन्होंने कहा कि ऐसे लोग भी हैं, जिन्होंने "वास्तव में पूरी कम्यूनिटी के नरसंहार का आह्वान किया है" और "इनके खिलाफ मुकदमा चलाने में अधिकारी भी तत्पर नही दिखते हैं।"

    जस्टिस नरीमन ने डीएम हरीश स्कूल ऑफ लॉ, मुंबई के उद्घाटन समारोह में "कानून के शासन के संवैधानिक आधार" विषय पर बोलते हुए ये बातें कही।

    जस्टिस नरीमन ने अपने भाषण में कहा ‌कि सत्ताधारी पार्टी नफरत भरे भाषणों का समर्थन कर रही है।

    उन्होंने कहा, "यह जानकर खुशी हुई कि कम से कम देश के उपराष्ट्रपति ने एक भाषण में कहा कि हेट स्पीच असंवैधानिक है। न केवल यह असंवैधानिक है, बल्कि आपराधिक कृत्य भीहै। इसे धारा 153 ए और 505 (सी) आईपीसी में अपराधीकृत किया गया है।

    हालांकि, दुर्भाग्य से, ऐसे दोष पर व्यावहारिक रूप से एक व्यक्ति को 3 साल तक की कैद की सजा दी जा सकती है, लेकिन ऐसा कभी नहीं होता है क्योंकि ऐसे मामलों में कोई न्यूनतम सजा निर्धारित नहीं है। यदि आप वास्तव में कानून के शासन को मजबूत करना चाहते हैं जैसा कि हमारे संविधान में निहित है, मैं दृढ़ता से सुझाव दूंगा कि संसद इन प्रावधानों में संशोधन करे और न्यूनतम सजा प्रदान करे ताकि नफरत भरे भाषणों के खिलाफ यह एक निवारक हो।"

    उन्होंने अपने भाषण में देशद्रोह कानूनों को खत्म करने की जरूरत पर भी बल दिया।

    ज‌स्टिस नरीमन ने कहा, "हमारे जैसे लोकतंत्रों और लोकतंत्रों की आड़ में छिपी तानाशाही के बीच अंतर अनुच्छेद 19 है। 19 (1) (ए) एकमात्र महत्वपूर्ण और पोषित मानव अधिकार है, जो भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार है।

    उन्होंने कहा, दुर्भाग्य से, हाल के दिनों में इस देश में, युवाओं, छात्रों, स्टैंड-अप कॉमेडियनों आदि पर सरकारों की स्वतंत्र आलोचना करने के कारण राजद्रोह कानूनों के तहत मुकदमा किया गया है। यह वास्तव में औपनिवेशिक प्रकृति है और हमारा संविधान में इनकी कोई जगह नहीं है।

    जस्टिस नरीमन का पूरा भाषण यहां सुने


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