सिविल यूनियन, गोद लेने का अधिकार, ट्रांसजेंडर्स के विवाह का अधिकार: विवाह समानता के मामले में सुप्रीम कोर्ट कौन से मुद्दों पर सहमत था, कौन से मुद्दों पर असहमत

Avanish Pathak

18 Oct 2023 1:11 PM IST

  • सिविल यूनियन, गोद लेने का अधिकार, ट्रांसजेंडर्स के विवाह का अधिकार: विवाह समानता के मामले में सुप्रीम कोर्ट कौन से मुद्दों पर सहमत था, कौन से मुद्दों पर असहमत

    सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की पीठ ने मंगलवार को विवाह समानता के मुद्दे पर ऐतिहासिक फैसला दिया। कोर्ट ने समलैंगिक विवाह को मान्यता देने से इनकार कर दिया, हालांकि समलैंगिको के हितों के संरक्षण के मुद्दे पर महत्वपूर्ण टिप्पण‌ियां की। सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा, "हमें कितनी दूर तक जाना है, इस पर कुछ हद तक सहमति और कुछ हद तक असहमति है।"

    सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस एसके कौल, जस्टिस रवींद्र भट और जस्टिस पीएस नरसिम्हा ने चार अलग-अलग फैसले लिखे, जिनमें कानून के महत्वपूर्ण सवालों पर पीठ ने "सहमतियों और असहमतियों" पर बहुत कुछ स्पष्ट किया।

    उल्लेखनीय है कि यह फैसला समलैंगिक जोड़ों, ट्रांसजेंडर्स और LGBTQIA+ एक्टिविस्ट की ओर से दायर बीस याचिकाओं के एक बैच पर सुनाया गया। सुनवाई के दरमियान, पीठ ने स्पष्ट किया था कि वह चुनौती को केवल विशेष विवाह अधिनियम तक ही सीमित रखेगी और व्यक्तिगत कानूनों पर विचार नहीं करेगी। इस प्रकार, हिंदू विवाह अधिनियम से संबंधित चुनौती पर विचार नहीं किया गया।

    1. विवाह करना मौलिक अधिकार

    सुप्रीम कोर्ट ने सर्वसम्मति से माना कि भारत में विवाह करना मौलिक, स्पष्ट अधिकार नहीं है। सीजेआई ने अपने फैसले में, याचिकाकर्ताओं की ओर से विवाह के अधिकार का दावा करने के लिए अपनी दलीलों में पेश किए गए निर्णयों का जिक्र करते हुए कहा कि बहुमत के किसी भी फैसले में (जस्टिस केएस पुट्टास्वामी बनाम यूनियन ऑफ इंडिया और नवतेज सिंह जौहर और अन्य बनाम यूनियन ऑफ इंडिया) यह नहीं माना गया है कि संविधान विवाह करने के अधिकार की गारंटी देता है।

    उन्होंने कहा कि विवाह अपने आप में मौलिक अधिकार नहीं हो सकता, लेकिन विवाह संस्था से मिलने वाले भौतिक लाभों के कारण इसे महत्व प्राप्त हो सकता है। जस्टिस कौल ने विवाह के अधिकार पर कोई विशेष टिप्पणी नहीं की, लेकिन कहा कि वह मोटे तौर पर सीजेआई के फैसले से सहमत हैं।

    जस्टिस भट ने अपनी और जस्टिस कोहली की ओर से बोलते हुए कहा कि कानून की मान्यता प्राप्त होने के अलावा विवाह का कोई अनक्वालिफाइड अधिकार नहीं है। उन्होंने जोर देकर कहा कि विवाह एक सामाजिक संस्था है, जो राज्य से पहले है। जस्टिस नरसिम्हा भी जस्टिस भट से सहमत थे। उन्होंने कहा कि एक संस्था के रूप में विवाह संस्कृति, धर्म, रीति-रिवाजों और प्रथाओं से निर्धारित होता है।

    2. विशेष विवाह अधिनियम और संबद्ध कानूनों को ख़त्म करने पर

    एक अन्य बिंदु जिस पर पूरी पीठ सहमत थी, वह था विशेष विवाह अधिनियम और उसके संबद्ध कानूनों को खत्म नहीं करना या रद्द नहीं करना था।

    सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की ओर से लिखे गए फैसले के अनुसार, एसएमए की धारा 21ए ने अधिनियम को उत्तराधिकार के व्यक्तिगत और गैर-व्यक्तिगत कानूनों से जोड़ा है, जिससे यह मुद्दा प्रकृति में बेहद जटिल हो गया। जस्टिस कौल ने अपने फैसले में कहा कि विवाह से प्राप्त अधिकार विधानों और विनियमों की ज‌टिलताओं तक विस्तारित हैं, और इस प्रकार, एसएमए के तहत विवाह के दायरे के साथ छेड़छाड़ विभिन्न कानूनों पर "व्यापक प्रभाव" डाल सकती है।

    सीजेआई और जस्टिस कौल दोनों ने माना कि एसएमए और अन्य संबद्ध कानूनों के प्रावधानों को पढ़ने का मतलब विधायिका के दायरे में प्रवेश करना होगा, जो अदालत अपनी "संस्थागत सीमाओं" के कारण करने में सक्षम नहीं है।

    जस्टिस भट और जस्टिस कोहली के फैसले ने इस दृष्टिकोण से सहमति व्यक्त की, साथ ही यह भी माना कि एसएमए अनुच्छेद 14 और 15 का उल्‍लंघन करने के कारण असंवैधानिक नहीं है, क्योंकि एसएमए का एकमात्र उद्देश्य विभिन्न धर्मों के व्यक्तियों के विवाह को सक्षम बनाना था, जैसा कि 1954 अधिनियम के समय समझा गया था।

    3. ट्रांसजेंडर पर्सन के विवाह के अधिकार पर

    सभी जजों ने सर्वसम्मति से माना कि विषमलैंगिक संबंधों में ट्रांसजेंडर पर्सन को व्यक्तिगत कानूनों सहित मौजूदा कानूनों के तहत विवाह करने का अधिकार है।

    सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने अपने फैसले में मौजूदा विवाह कानूनों और ट्रांसजेंडर व्यक्ति अधिनियम की सामंजस्यपूर्ण व्याख्या के महत्व पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि भारत में विवाह कानून मुख्य रूप से विषमलैंगिक संबंधों से पैदा विवाहों की अनुमति देते हैं, जिन्हें एक "पुरुष" और एक "महिला" को "पति" और "पत्नी," या "दूल्हा और दुल्हन" के रूप में वर्णित किया गया है।

    ऐसी व्याख्याओं को प्रतिबंधित करना ट्रांसजेंडर व्यक्ति अधिनियम का खंडन होगा, जो स्पष्ट रूप से ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के खिलाफ भेदभाव को प्रतिबंधित करता है। उन्होंने इस बात पर भी ज़ोर दिया कि किसी व्यक्ति की ट्रांसजेंडर पहचान उनकी लिंग पहचान से निर्धारित होती है, न कि उनके यौन रुझान से।

    उन्होंने यह भी कहा कि पुरुष या महिला के रूप में पहचाने जाने वाले इंटरसेक्स व्यक्तियों को भी व्यक्तिगत कानूनों सहित मौजूदा कानून के तहत विवाह करने का अधिकार है।

    इस पर अन्य सभी चार जजों ने सहमति जताई।

    4. 'सिविल यूनियन' पर

    समलैंगिक जोड़ों के लिए 'सिविल यूनियन' की मान्यता एक ऐसा मुद्दा था जिस पर पीठ के भीतर कई असहमतियां उठीं। सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस एसके कौल ने समलैंगिक सिविल यूनियन को मान्यता देने का आह्वान किया ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि समलैंगिक जोड़ों को विवाह से भौतिक लाभ मिल सके, पीठ में अन्य तीन जजों ने अलग दृष्टिकोण अपनाया।

    5. समलैंगिक जोड़ों के गोद लेने के अधिकार पर

    पीठ के भीतर एक और मतभेद इस सवाल पर पैदा हुआ कि क्या समलैंगिक जोड़ों को बच्चे गोद लेने का अधिकार है। 3:2 के फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिक जोड़ों को बच्चे गोद लेने के अधिकार से वंचित कर दिया। सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस एसके कौल अल्पमत में थे, जबकि जस्टिस भट्ट, जस्टिस कोहली और जस्टिस नरसिम्हा बहुमत में थे।

    6. कमेटी के गठन और कार्यक्षेत्र पर

    सीजेआई और जस्टिस कौल ने यह मानते हुए कि समलैंगिक जोड़ों को राज्य द्वारा मान्यता प्राप्त यूनियन का अधिकार है, सॉलिसिटर जनरल के आश्वासन को दर्ज किया कि केंद्र सरकार यूनियन में शामिल समलैंगिक जोड़ों के अधिकारों के बारे में दायरे को परिभाषित करने और स्पष्ट करने के उद्देश्य से कैबिनेट सचिव की अध्यक्षता में एक समिति का गठन करेगी।

    सीजेआई ने अपने फैसले में कहा कि समिति में समलैंगिक समुदाय के व्यक्तियों के साथ-साथ समलैंगिक समुदाय के सदस्यों की सामाजिक, मनोवैज्ञानिक और भावनात्मक जरूरतों से निपटने में उस क्षेत्र के जानकार और अनुभव वाले विशेषज्ञों को शामिल किया जाएगा।

    इसके अलावा, उन्होंने कहा कि समिति, अपने निर्णयों को अंतिम रूप देने से पहले, समलैंगिक समुदाय से संबंधित व्यक्तियों के बीच व्यापक हितधारक परामर्श आयोजित करेगी, जिसमें हाशिए पर रहने वाले समूहों से संबंधित लोग और राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की सरकारें शामिल ‌होंगी।

    केस टाइटल: सुप्रियो बनाम यूनियन ऑफ इं‌डिया| रिट याचिका (सिविल) संख्या 1011/2022 और संबंधित मामले

    साइटेशन: 2023 लाइव लॉ (एससी) 900

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