अनुशासनात्मक कार्यवाही में वकील या अपनी पसंद के एजेंट द्वारा प्रतिनिधित्व कराने का अधिकार पूर्ण नहीं है: सुप्रीम कोर्ट
LiveLaw News Network
17 Nov 2021 10:22 AM IST
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अनुशासनात्मक कार्यवाही में किसी वकील या अपनी पसंद के एजेंट द्वारा प्रतिनिधित्व कराने का अधिकार 'पूर्ण अधिकार' नहीं है।
कोर्ट ने कहा कि कानूनी रूप से प्रतिनिधित्व करने का ऐसा अधिकार इस बात पर निर्भर करता है कि नियम इस तरह के प्रतिनिधित्व को कैसे नियंत्रित करते हैं। बेंच ने कहा, हालांकि, यदि आरोप गंभीर और जटिल प्रकृति का है, तो वकील या एजेंट के माध्यम से प्रतिनिधित्व करने के अनुरोध पर विचार किया जाना चाहिए (मामला: अध्यक्ष, भारतीय स्टेट बैंक एवं अन्य बनाम एमजे जेम्स)।
इस मामले में, बैंक ऑफ कोचीन की क्विलोन शाखा के एक बैंक प्रबंधक के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही शुरू की गई थी। उसके खिलाफ आरोप था कि उसने प्रधान कार्यालय के निर्देशों का उल्लंघन करते हुए अग्रिम मंजूर करके गंभीर कदाचार किया था। इस कार्य से बैंक को काफी वित्तीय नुकसान हुआ। उनका अनुरोध था कि उनकी ओर से ऑल इंडिया कंफेडरेशन ऑफ बैंक ऑफिसर्स आर्गेनाइजेशन की केरल राज्य इकाई के आयोजन सचिव श्री एफ.बी. क्राइसोस्टॉम (सिंडिकेट बैंक, मट्टनचेरी, कोचीन) प्रतिनिधित्व करें, लेकिन इस अनुरोध को ठुकरा दिया गया था।
यह व्यवस्था दी गयी कि सेवा संहिता के संदर्भ में, एक चार्ज-शीटेड अधिकारी का बचाव किसी भी एसोसिएशन या यूनियन के पदाधिकारी द्वारा नहीं किया जा सकता है, सिवाय संबंधित कर्मचारी के बैंक कर्मचारियों की यूनियन या एसोसिएशन के पदाधिकारी के, अर्थात इस मामले में 'बैंक ऑफ कोचीन लिमिटेड'।
उसके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही जारी रही और यह पाया गया कि उसके खिलाफ सभी आरोप सही पाए गये थे। बैंक ऑफ कोचीन के अध्यक्ष ने दिनांक 18.04.1985 के एक आदेश द्वारा उसे सेवा से बर्खास्त कर दिया। मुख्य महाप्रबंधक ने दिनांक 23.01.1999 के आदेश द्वारा अपील खारिज कर दी थी।
बाद में, हाईकोर्ट ने इस कार्यवाही को चुनौती देने वाली उसकी रिट याचिका को मुख्य रूप से इस आधार पर स्वीकार कर लिया कि जांच अधिकारी ने ऑल इंडिया कंफेडरेशन ऑफ बैंक ऑफिसर्स आर्गेनाइजेशन की केरल राज्य इकाई के आयोजन सचिव द्वारा बचाव/प्रतिनिधित्व के उसके अनुरोध को गलत तरीके से खारिज कर दिया था। हाईकोर्ट ने अपने आदेश में इसे जांच में प्रतिवादी की भागीदारी के बावजूद, उचित अवसर से वंचित किया जाना करार दिया था।
प्रासंगिक सेवा संहिता के प्रावधानों ने अपराधी को एक पंजीकृत संघ/बैंक कर्मचारियों के संघ के प्रतिनिधि द्वारा या बैंक की अनुमति से, एक वकील द्वारा बचाव करने की अनुमति दी।
क्लॉज की व्याख्या करते हुए, हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने कहा कि उक्त क्लॉज में बैंक कर्मचारियों के सामने आर्टिकल "द" गायब था, जो इंगित करता है कि उसमें संदर्भित यूनियन/एसोसिएशन केवल बैंक के कर्मचारियों के बारे में ही नहीं था, अर्थात् 'द बैंक ऑफ कोचीन', और इसलिए, इसमें अन्य बैंकों की कर्मचारी यूनियन/संघ भी शामिल होंगे।
अपील में, सुप्रीम कोर्ट की खंडपीठ ने हाईकोर्ट के इस तर्क से असहमति जताई।
कोर्ट ने कहा,
"सेवा संहिता के क्लॉज 22 (ix) (ए) में 'बैंक' से पहले आर्टिकल 'द' की गैर-मौजूदगी पर पूरी तरह से आधारित तर्क, सेवा संहिता के क्लॉज 22 (ix) (ए) के पीछे के इरादे सहित विषय वस्तु के संदर्भ में प्रतिकूलता के अनुमान को उचित नहीं ठहराता है।''
'क्रिसेंट डाईज एंड केमिकल्स लिमिटेड बनाम राम नरेश त्रिपाठी' और 'नेशनल सीड्स कॉर्पोरेशन लिमिटेड बनाम के.वी. रामा रेड्डी' मामले में दिये गये फैसले का उल्लेख करते हुए कोर्ट ने कहा:
घरेलू जांच/न्यायाधिकरणों में किसी तीसरे व्यक्ति द्वारा प्रतिनिधित्व का अधिकार इस सिद्धांत पर आधारित है कि किसी वकील या अपनी पसंद के एजेंट द्वारा प्रतिनिधित्व के अधिकार को प्रतिबंधित करना वांछनीय नहीं है। अनुपात इस प्रस्ताव की स्वीकृति के समान नहीं है कि ऐसा अधिकार प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का एक तत्व है, और इसका इनकार तुरंत जांच को अमान्य कर देगा। प्रतिनिधित्व अक्सर एक कानून द्वारा प्रतिबंधित होते हैं, जैसे कि औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947 की धारा 36 के तहत, साथ ही प्रमाणित स्थायी आदेश द्वारा भी। उपरोक्त दो निर्णय इस विषय पर अंग्रेजी केस कानून सहित निर्णयों की श्रेणी में आते हैं, जो स्वीकार करते हैं कि कानूनी रूप से प्रतिनिधित्व करने का अधिकार इस बात पर निर्भर करता है कि नियम इस तरह के प्रतिनिधित्व को कैसे नियंत्रित करते हैं। इसके अलावा, यदि नियम मौन हैं, तो पार्टी को कानूनी रूप से प्रतिनिधित्व करने का कोई पूर्ण अधिकार नहीं है। हालांकि, निष्पक्ष सुनवाई के अधिकार से वंचित नहीं किया जाना चाहिए। निष्पक्षता की जो आवश्यकता है, वह जांच की प्रकृति और इससे प्रभावित व्यक्तियों पर पड़ने वाले परिणामों पर निर्भर करेगा।
इस प्रकार, किसी की पसंद के वकील या एजेंट द्वारा प्रतिनिधित्व करने का अधिकार पूर्ण अधिकार नहीं है, बल्कि कानून, नियमों या विनियमों द्वारा नियंत्रित, प्रतिबंधित या विनियमित किया जा सकता है। हालांकि, अगर आरोप गंभीर और जटिल प्रकृति का है, तो वकील या एजेंट के माध्यम से प्रतिनिधित्व करने के अनुरोध पर विचार किया जाना चाहिए। उपरोक्त प्रस्ताव निष्पक्ष सुनवाई के अधिकार से आता है, जो न्यायिक और अर्ध-न्यायिक निर्णयों में लागू होता है।
सुप्रीम कोर्ट ने अपील की अनुमति दी और हाईकोर्ट के फैसले को रद्द कर दिया।
अदालत ने निष्कर्ष में कहा,
"हम बर्खास्तगी के आदेश को बरकरार रखते हैं और इसके परिणामस्वरूप प्रतिवादी द्वारा दायर रिट याचिका को खारिज माना जाएगा।"
मामले का विवरण
केस शीर्षक: अध्यक्ष, भारतीय स्टेट बैंक एवं अन्य बनाम एमजे जेम्स
साइटेशन : एलएल 2021 एससी 654
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