राजस्व अधिकारियों को अचल संपत्तियों का 'स्वामित्व विवाद' तय करने का अधिकार नहीं हैः कर्नाटक हाईकोर्ट
LiveLaw News Network
27 Jan 2020 4:25 PM IST

कर्नाटक हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसला दिया है, जिससे एक ही मामले में कई मुकदमे दर्ज करने की मुश्किल खत्म हो जाएगी।
"राजस्व अधिकारियों अर्थात, तहसीलदार, सहायक आयुक्त और उपायुक्त के पास अचल संपत्ति/संपत्तियों के संबंध में पक्षकारों के बीच 'स्वामित्व विवाद' पर फैसला करने का अधिकार क्षेत्र नहीं है। यह फैसला करना सक्षम सिविल कोर्ट का अनन्य अधिकार है, यदि कोर्ट द्वारा कोई आदेश पास किया जाता है तो वह पक्षों और राजस्व अधिकारियों दोनों पर बाध्यकारी होगा।"
जस्टिस एसएन सत्यनारायण, जस्टिस बी वीरप्पा और जस्टिस के नटराजन की पूर्ण पीठ ने सिंगल जज बेंच द्वारा 2 अप्रैल, 2019 को दिए एक आदेश में दिए गए एक संदर्भ पर फैसला करते हुए कहा,
"जब कई पक्ष अदालत का दरवाज़ा खटखटाकर अपील और पुनरीक्षण दायर करने की कठोर प्रक्रिया की ओर ध्यान दिलाते हैं, तब अदालत या प्राधिकरण 'बैठे रहो-इंतजार करो' जैसा रवैया अख्तियार नहीं कर सकते और नागरिकों से ये अपेक्षा नहीं कर सकते कि वो राजस्व अधिकारियों के चक्कर लगाते रहें। मामले में सिविल कोर्ट को, जो कि सक्षम प्राधिकारी है, पार्टियों बीच में स्वामित्व तय करना है। अधिकारियों को प्रक्रिया का अनुपालन करने के उद्देश्य मात्र से नागरिकों को कमोडिटी या ग़ुलाम के रूप में उपयोग करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है।
पीठ ने निम्नलिखित घोषणाएं कीं:
* कर्नाटक भू-राजस्व अधिनियम की धारा 129 के प्रावधानों के तहत संबंधित क्षेत्र के तहसीलदार द्वारा पारित कोई भी आदेश अचल संपत्तियों के संबंध में स्वामित्व को हाथ लगाता है तो पीड़ित पक्ष को सहायक आयुक्त/उप आयुक्त के समक्ष अपील या पुनरीक्षण दायर करने की कोई आवश्यकता नहीं है, क्योंकि यह निरर्थक कवायद है। इसलिए, पीड़ित पक्ष स्वामित्व की घोषणा के लिए सीधे सक्षम सिविल कोर्ट में पहुंच सकती है, और परिणामस्वरूप प्राप्त राहत, पारित निर्णय और आदेश सभी पक्षों समेत राजस्व अधिकारियों के लिए भी बाध्यकारी होगा।
## संबंधित क्षेत्र के तहसीलदार द्वारा कर्नाटक लैंड रेवेन्यू एक्ट के सेक्शन 129 के प्रावधानों के तहत स्वामित्व की प्रविष्टियों के संबंध में पारित आदेश से पीड़ित कोई भी व्यक्ति, यदि स्वामित्व के संबंध में कोई विवाद न हो तो, कर्नाटक लैंड रेवेन्यू एक्ट के सेक्शन 136(2) और 136(3) के प्रावधानों के तहत सहायक आयुक्त/उपायुक्त के समक्ष मात्र एक अपील/पुनरीक्षण दायर किया जा सकता है।
बेंच ने कहा-
"समय और परिस्थिति अब यह कहती हैं कि अदालत को धर्म की रक्षा के लिए एक अभिभावक के रूप में कार्य करना है। भागवदगीता के अध्याय 4 के श्लोक 7-8 में कहा गया है, 'जब-जब धर्म का क्षरण होता है, अधर्म का विस्तार होता, हे भरत, तब सत्य की रक्षा और दुष्टों के विनाश के लिए मैं स्वयं अवतार लेता हूं, धर्म की स्थापना के लिए मैं हर युग में प्रकट होता हूं।"
बेंच ने स्वामित्व से जुड़े मामलों का समयबद्घ निपटारा करने के लिए राज्य को उचित नियम बनाने के निर्देश दिए और सिफारिशें कीं-
i)यदि किसी विवाद के बिना, स्वामित्व के स्रोत के आधार पर म्यूटेशन या खाता या आरटीसी के हस्तांतरण के लिए आवेदन दायर किया जाता है तो उक्त आवेदन को दूसरे पक्ष द्वारा नोटिस प्राप्त होने की तारीख से तीन माह की अवधि के भीतर म्यूटेशन या खाता या आरटीसी के हस्तांतरण के लिए विचार किया जाएगा।
ii)जैसे ही खाता या म्यूटेशन में प्रविष्टियों के परिवर्तन के लिए आवेदन किया जाता है, तहसीलदार को यह सत्यापित करना होगा कि क्या उक्त संपत्ति के स्वामित्व के संबंध में कोई विवाद है और फिर शामिल पक्षों को सक्षम सिविल कोर्ट से संपर्क करने के लिए निर्देशित कर सकता है।
iii)तहसीलदार द्वारा पारित आदेशों से पीड़ित यदि सहायक आयुक्त या उपायुक्त के समक्ष अपील/ संशोधन दायर करता है, तो सहायक आयुक्त/उपायुक्त को दूसरे पक्ष को नोटिस सर्व करने के बाद और अपील/संशोधन दायर करने की तारीख से छह महीने के भीतर अपील/ संशोधन के निपटारे के लिए आवश्यक कदम उठाने होंगे।
iv)यदि अधिकारी तय समय सीमा का पालन करने में सक्षम न हो तो और यदि खाता और प्रविष्टियों के हस्तांतरण में तीन महीने से अधिक विलंब हो रहा हो तो संबंधित अधिकारी द्वारा विलंब का ठोस कारण बता दिया जाना चाहिए। तहसीलदार विलंब के कारणों को रिकॉर्ड करेगा और उच्च अधिकारियों को प्रस्तुत करेगा।
v)कर्नाटक लैंड रेवन्यू एक्ट के तहत खाता में बदलाव या म्यूटेशन/एंट्रीज़ और अपील / संशोधन से संबंधित आवेदनों को कर्नाटक गारंटी ऑफ सर्विसेज़ टू सीटिजंस एक्ट 2011 की अनुसूची में शामिल किया जाएगा;
वह मामला, जिसका संदर्भ सिंगल जज बेंच ने दिया:
याचिकाकर्ता, जयम्मा और अन्य ने अदालत से 18 अप्रैल 2012 और 2 मई 2012 को तीसरे प्रतिवादी/ विशेष तहसीलदार द्वारा पारित आदेश
को रद्द करने की अपील की थी, और तहसीलदार को अनुलग्नक-जे के आधार पर की गई सभी प्रविष्टियों को रद्द करने को आदेश देने को कहा था; आरटीसी में प्रविष्टियों को 12 दिसंबर 2008 से पहले की स्थिति में बहाल करने के लिए कहा था।
पूर्ण पीठ के समक्ष संदर्भ बिंदु थे:
(1) क्या कर्नाटक राज्य, जो सूची IIमें प्रविष्टियों के तहत कानून बनाने के लिए अधिकृत है, अनुच्छेद 246 (3) में संवैधानिक जनादेश की पृष्ठभूमि में, संविधान की एंट्री 45 और एंट्री 65 में निर्धारित कानून के अधिकृत क्षेत्र से आगे निकल सकता है?
(2) केएलआर एक्ट की धारा 135 की शर्त, दो समानांतर कार्यवाहियों के कारण, जिनमें एक राजस्व अधिकार क्षेत्र के तहत और दूसरी नागरिक संहिता की धारा 9 के तहत केएलआर एक्ट की धारा 135 की शर्त के कारण, सीमा अवधि बढ़ाएगा?
(3) क्या एक पीड़ित व्यक्ति को उपलब्ध कार्रवाई के कारणों को विभाजित करने, पहले उसे केएलआर एक्ट के चैप्टर इलेवन के तहत उपचारों को समाप्त करने और फिर डि नोवो सिविल प्रोसिडिंग्स शुरु करने की, जैसे सेक्शन 135 में विचार किया गया है, की अनुमति है?
मामले में एमिकस क्यूरी, वरिष्ठ अधिवक्ता एसपी शंकर ने दलील दी, "यदि अचल संपत्ति के लिए एक पार्टी द्वारा निर्धारित स्वामित्व या अधिकार दूसरी पार्टी द्वारा विवादित करार दिया गया है, तो ऐसे स्वामित्व या संपत्ति को लेकर राजस्व न्यायालयों द्वारा पूछताछ नहीं की जा सकती है। अधिनियम के तहत गठित राजस्व अदालत केवल मूल्यांकन, भू राजस्व की वसूली और भूमि राजस्व प्रशासन की जिम्मेदार हो सकती है, किसी अचल संपत्ति के स्वामित्व पर फैसला करना उसका अधिकार क्षेत्र नहीं है, जो कि विशेष रूप से सिविल कोर्ट में निहित है।
बार की ओर से पेश वकील एमआर राजगोपाल ने दलील दी कि "राजस्व अधिकारी कृषि भूमि सहित संपत्तियों के अधिकारों के अधिग्रहण या विलोपन को विनियमित नहीं करते। राजस्व अधिकारियों को मुख्य रूप से व्यक्तियों के नामों का रिकॉर्ड रखना होता है।"
याचिकाकर्ताओं के लिए वकील- सुनील एस राव,
एमिकस क्यूरी: वरिष्ठ वकील, एसपी शंकर, के सुमन
बार की ओर से कोर्ट की सहायता करने वाले वकील: वरिष्ठ वकील वी लक्ष्मीनारायण, एडवोकेट एमआर राजगोपाल, एडवोकेट बसवराज
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