इस्तीफा एक बार मंजूर हो जाए तो कर्मचारी रिलीव करने में देरी का हवाला देकर उसे वापस नहीं ले सकता: सुप्रीम कोर्ट

LiveLaw News Network

28 Sep 2021 4:54 AM GMT

  • इस्तीफा एक बार मंजूर हो जाए तो कर्मचारी रिलीव करने में देरी का हवाला देकर उसे वापस नहीं ले सकता: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि किसी कर्मचारी को महज ड्यूटी से मुक्त करने में देरी उसके इस्तीफे की स्वीकृति को प्रभावित नहीं करती है। कोर्ट ने कर्मचारी के इस तर्क को खारिज कर दिया कि वह डयूटी से रिलीव होने में देरी का हवाला देते हुए इस्तीफा वापस लेने का हकदार था।

    जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस एमएम सुंदरेश की पीठ ने मेसर्स न्यू विक्टोरिया मिल्स एवं अन्य बनाम श्रीकांत आर्य मामले में कहा,

    "एक बार इस तरह के इस्तीफे को स्वीकार कर लिया गया, और यहां तक कि उसका विरोधा भी नहीं किया गया, तो प्रतिवादी को इस्तीफे की स्वीकृति के बाद इस्तीफा देने की अनुमति देने का कोई सवाल ही नहीं हो सकता था। यह केवल प्रशासनिक कारणों से कट ऑफ तिथि का स्थगन था, जिसके कारण प्रतिवादी को केवल रिलीव करने में देरी हुई, न कि इस्तीफे की स्वीकृति को स्थगित किया गया।"

    पीठ ने कहा,

    "केवल यह तथ्य कि कुछ कर्मचारी मिल के बंद होने के बाद भी काम करना जारी रखते हैं, या कुछ लोगों को अन्य मिलों में तैनात किया जा सकता है, नौकरी में फिर से रखने के प्रतिवादी के केस में मदद नहीं कर सकता है।"

    तथ्यात्मक पृष्ठभूमि

    श्रीकांत आर्य (वर्तमान मामले में प्रतिवादी) 1991 से नेशनल टेक्सटाइल कॉरपोरेशन लिमिटेड ("एनटीसी" / वर्तमान मामले में अपीलकर्ता नंबर 1) में सुपरवाइजर (रखरखाव) के रूप में काम कर रहे थे और उसके बाद उन्हें नेशनल टेक्सटाइल कॉरपोरेशन (उत्तर प्रदेश) लिमिटेड, कानपुर (अपीलार्थी संख्या 2) द्वारा स्थापित एक अन्य औद्योगिक इकाई में स्थानांतरित कर दिया गया था।

    चूंकि कपड़ा उद्योग सदी परिवर्तन के वक्त कठिन दौर से गुजर रहा था, इसलिए अपीलकर्ता संख्या 3 ने एनटीसी और एनटीसी (यूपी), कानपुर में कर्मचारियों और श्रमिकों की स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति की सुविधा के लिए एक संशोधित स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति योजना ('एमवीआरएस/योजना') का प्रस्ताव रखा।

    एमवीआरएस के तहत अवसर का लाभ उठाने के लिए, जिसके अनुसार सेवा के सभी लाभों के लिए तुरंत भुगतान के एकमात्र अनुरोध के साथ इस्तीफे को तत्काल लागू किया जाना था, आर्य ने 12 जुलाई, 2002 को एक पत्र लिखा। चूंकि अपने भविष्य निधि खाते में जमा राशि को लेकर आर्य और एनटीसी के बीच विवाद चल रहा था, आर्य ने बाद में उनके एमवीआरएस आवेदन को तब तक निलंबित रखने का अनुरोध किया था जब तक कि उनके खाते में भविष्य निधि की राशि जमा नहीं हो जाती।

    28 मई 2003 को एमवीआरएस के तहत इस्तीफे के पत्रों की स्वीकृति के बारे में एक सामान्य सूचना जारी की गई जिसमें आर्य का नाम भी सामने आया, जिसके अनुसार उन्हें 1 जून 2003 को मिल की सेवाओं से सेवानिवृत्त होना पड़ा। 2 जून 2003 को एन.टी.सी. ने आर्य को एक पत्र जारी किया जिसमें उन्हें सलाह दी गई थी कि वे अपनी ड्यूटी पर आएं, क्योंकि पहले की कट ऑफ तिथि रद्द कर दी गई थी और जल्द ही एक नई तारीख लागू होनी थी।

    पूर्वोक्त परिदृश्य में, आर्य ने 1 जुलाई, 2003 को एक पत्र लिखकर 12 जुलाई, 2002 के अपने पत्र को रद्द करने का यह कहते हुए अनुरोध किया कि उन्होंने एमवीआरएस के तहत अपना इस्तीफा सौंपने के बारे में अपना मन बदल लिया था, लेकिन 14 जुलाई, 2003 को एमवीआरएस के तहत आर्य के पत्र को स्वीकार कर लिया गया था और उन्हें 16 जुलाई 2003 को सेवानिवृत्त होना पड़ा।

    व्यथित आर्य ने 14 जुलाई, 2003 के आदेश को रद्द करने और अधिकारियों को उसे पर्यवेक्षक (रखरखाव) के पद पर अपने कर्तव्यों में शामिल होने की अनुमति देने और सभी परिलब्धियों का भुगतान करने के लिए निर्देश देने के लिए एक रिट के माध्यम से इलाहाबाद हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था, जिसका वह कथित हकदार था। आर्य ने 16 जुलाई, 2003 से अपने पिछले वेतन का भुगतान करने और अपनी सेवानिवृत्ति की आयु तक पद पर काम करने की अनुमति देने के निर्देश जारी करने की भी मांग की, जब वह अपने सभी सेवानिवृत्ति लाभों के हकदार होंगे।

    इलाहाबाद हाईकोर्ट के एकल न्यायाधीश के समक्ष मामला

    आर्य के पक्ष में फैसला सुनाते हुए एकल न्यायाधीश ने पाया कि यह "स्पष्ट नहीं" था कि किसी भी समय, आर्य ने एमवीआरएस के तहत बिना शर्त इस्तीफे की पेशकश की थी। एकल न्यायाधीश ने आगे कहा कि आर्य का इस्तीफा सभी बकाया के भुगतान पर सशर्त था, जिसमें भविष्य निधि बकाया शामिल था जिसे पहले साफ किया जाना चाहिए और उसे भुगतान किया जाना चाहिए था।

    इलाहाबाद हाईकोर्ट की खंडपीठ के समक्ष मामला

    एकल न्यायाधीश के आदेश से व्यथित एनटीसी ने हाईकोर्ट की खंडपीठ के समक्ष अपील दायर की। 12 मार्च, 2019 को डिवीजन बेंच ने एकल न्यायाधीश के आदेश को बरकरार रखा।

    एनटीसी ने दीवानी अपील में शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया।

    वकील की प्रस्तुतियाँ

    एनटीसी के वकील ने प्रस्तुत किया कि आर्य ने 28 मई, 2003 और 2 जून, 2003 के पत्रों को चुनौती नहीं दी थी, जिन्होंने एमवीआरएस के तहत आर्य के इस्तीफे के अनुरोध को प्रभावी ढंग से स्वीकार कर लिया था, जिसका अर्थ था कि एनटीसी द्वारा उनकी स्वीकृति पूरी हो गई थी। यह भी तर्क दिया गया था कि आर्य ने केवल 14 जुलाई, 2003 और 16 जुलाई, 2003 के पत्र का विरोध करते हुए संशोधित कट ऑफ तिथि को चुनौती दी थी।

    एनटीसी ने आगे दलील दी थी कि एक बार इस तरह के इस्तीफे को स्वीकार कर लिया गया, और यहां तक कि उसका पहले विरोध नहीं किया गया, तो इस्तीफा स्वीकार करने के बाद आर्य को इस्तीफा देने की अनुमति देने का कोई सवाल ही नहीं था।

    इस दलील का समर्थन करने के लिए कि किसी को अपने कर्तव्यों से मुक्त करने में केवल देरी उसके इस्तीफे की स्वीकृति को प्रभावित नहीं करती है, 'एयर इंडिया एक्सप्रेस लिमिटेड एवं अन्य बनाम कैप्टन गुरदर्शन कौर संधू (2019) 17 एससीसी 129' में शीर्ष न्यायालय के फैसले पर भरोसा जताया गया था।

    'जे.एन. श्रीवास्तव बनाम भारत सरकार एवं अन्य (1998) 9 SCC 559' और 'शंभू मुरारी सिन्हा बनाम प्रोजेक्ट एंड डेवलपमेंट इंडिया एवं अन्य (2000) 5 SCC 621' मामलों में शीर्ष अदालत के फैसले पर भरोसा जताते हुए आर्य के वकील ने दलील दी कि एक कर्मचारी को स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति के लिए अपना आवेदन स्वीकार करने के बाद भी वापस लेने का अधिकार था, अगर ऐसा कर्मचारी की वास्तविक सेवानिवृत्ति की तारीख से पहले किया गया हो। यह भी तर्क दिया गया कि एनटीसी और आर्य के बीच नियोक्ता और कर्मचारी का विधिक संबंध 16 जुलाई, 2003 तक जारी रहा और इस प्रकार, आर्य के पास 1 जुलाई 2003 को अपना इस्तीफा वापस लेने का अधिकार था।

    आर्य के वकील ने यह भी दलील दी कि आर्य द्वारा प्रस्तुत आवेदन एक प्रस्ताव की प्रकृति में था और चूंकि आर्य ने दिनांक 03.03.2003 के अपने पत्र के माध्यम से अपना इस्तीफा निलंबित कर दिया था, जब तक कि एनटीसी ने अपनी भविष्य निधि की बकाया राशि जमा न कर दे और इस प्रकार, प्रस्ताव रद्द कर दिया गया था।

    वकील ने यह प्रस्तुत करने के लिए कि एक सशर्त प्रस्ताव की स्थिति में, प्रस्तावकर्ता प्रस्ताव के एक हिस्से को स्वीकार कर सकता है जिसके परिणामस्वरूप प्रस्तावक अदायगी की जाती है और फिर उस शर्त को अस्वीकार कर दिया जाता है जिसके अधीन प्रस्ताव किया जाता है, 'भारतीय खाद्य निगम एवं अन्य बनाम रामकेश यादव और अन्य (2007) 9 एससीसी 531' मामले में शीर्ष न्यायालय के फैसले का भी उल्लेख किया।

    न्यायालय की टिप्पणियां

    इस पहलू पर कि क्या आर्य का इस्तीफा सशर्त था, पीठ ने 12 जुलाई, 2002 के पत्र पर विचार करने के बाद कहा कि केवल यह दावा कि आवेदक की सेवा अवधि से उत्पन्न होने वाले सभी लाभों का भुगतान किया जाएगा, उनके इस्तीफे का एक स्वाभाविक परिणाम था और आगे कहा गया कि इस तरह के इस्तीफे को शायद ही सशर्त कहा जा सकता है।

    कोर्ट ने कहा,

    "उपरोक्त स्थिति के नाते; यदि हम योजना के तहत इस त्याग पत्र को देखते हैं, तो निस्संदेह एमवीआरएस के खंड 1.6 के संदर्भ में, प्रबंधन के पास कोई कारण बताए बिना आवेदन को अस्वीकार करने का विकल्प है। वह फिर से, हमारे विवेक में, इस्तीफे को सशर्त नहीं बनाएगा। एक संविदात्मक संदर्भ में, यह योजना के तहत एक कर्मचारी द्वारा किया गया एक प्रस्ताव होगा, जिसे अपीलकर्ता-प्रबंधन द्वारा स्वीकार किया जा सकता है या नहीं। एक बार स्वीकृति हो जाने के बाद, अनुबंध समाप्त हो जाता है। इसमें कोई संदेह नहीं कि इस तरह की स्वीकृति योजना के संदर्भ में होनी चाहिए।"

    इस संबंध में कि क्या आर्य के पत्राचार के बाद त्याग पत्र को सशर्त इस्तीफे का रंग दे सकते हैं और क्या इस्तीफे की वापसी इसकी स्वीकृति से पहले थी, पीठ ने कहा कि एक बार इस्तीफा पत्र 28.05.2003 को स्वीकार कर लिया गया था, तो पद समाप्त हो गया था।

    बेंच ने इस संदर्भ में कहा,

    "संविदात्मक शर्तों में, एमवीआरएस के तहत उपलब्ध प्रतिवादी के इस्तीफे के प्रस्ताव की अपीलकर्ता संख्या 1 की स्वीकृति 28.05.2003 को पूरी हो गई थी। प्रतिवादी को कुछ दिनों तक कट ऑफ डेट के स्थगन का लाभ लेने की अनुमति नहीं दी जा सकती है, जब प्रतिवादी को कार्यालय में उपस्थित होने के लिए कहा गया था, हालांकि वह कोई स्वीकृत पद नहीं था।"

    पीठ ने एनटीसी की इस दलील को भी बरकरार रखा कि आर्य को ड्यूटी से मुक्त करने में केवल देरी से उनके इस्तीफे की स्वीकृति प्रभावित नहीं होगी।

    इसके बाद कोर्ट ने हाईकोर्ट द्वारा पारित आदेश को रद्द करते हुए कहा कि आर्य का त्याग पत्र 28 मई, 2003 को स्वीकार कर लिया गया था और वह उस योजना के तहत लाभों के हकदार थे जो उन्हें उनके अधिकारों और मुकदमे में उठाए गए विवादों के बिना किसी पूर्वाग्रह के भुगतान किए गए हैं।

    केस शीर्षक: मेसर्स न्यू विक्टोरिया मिल्स एवं अन्य बनाम श्रीकांत आर्य

    कोरम: जस्टिस एसके कौल और जस्टिस एमएम सुंदरेश

    साइटेशन : एलएल 2021 एससी 506

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