पुनर्गठन के बाद सृजित पदों को पदोन्नति से भरने में आरक्षण नीति लागू होगी, सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया

LiveLaw News Network

29 Nov 2020 7:53 AM GMT

  • National Uniform Public Holiday Policy

    Supreme Court of India

    सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को दोहराया कि पुष्पा रानी मामले में 2008 में दिए फैसले के आधार पर, जहां कैडरों के पुनर्गठन के परिणामस्वरूप नए पदों का सृजन हुआ था, आरक्षण की नीति उन पदों पर पदोन्नति को लागू करने में लागू होगी।

    जस्टिस यूयू ललित, विनीत सरन और रवींद्र भट की पीठ पटना हाईकोर्ट में भारत सरकार द्वारा दायर एक रिट याचिका से पैदा एक स्थानांतरित मामले की सुनवाई कर रही थी। कैट,पटना के समक्ष एक ओए दायर किया गया था, जिसमें बिहार में केंद्रीय उत्पाद शुल्क निरीक्षक के पद को पुनर्गठन का मुद्द उठाया गया था।

    भारत सरकार ने अधिकरण के विचार को उच्च न्यायालय के समक्ष चुनौती दी थी। हालांकि सुप्रीम कोर्ट में इसी प्रकार की सिविल अपीलों को लंबित होने के कारण भारत सरकार ने उक्‍त याचिका को भी सुप्रीम कोर्ट में स्थानांत‌रित किए जाने का अनुरोध किया था।

    गुरुवार को, तीन-जजों की पीठ ने कहा कि केंद्र सरकार की अनुपस्थिति के कारण उक्त सिविल अपीलों को खारिज कर दिया गया और उन्हें पुनर्स्थापित करने का कोई प्रयास नहीं किया गया। पीठ ने उल्लेख किया कि तात्कालिक मामले में भी कैट के आदेश का अनुपालन विभाग ने किया था और अधिकरण के समक्ष मूल आवेदकों पर अधिकरण के आदेश के तहत लाभ दिए गए थे। हालांकि, केंद्र के लिए एएसजी माधवी दीवान के आग्रह पर, पीठ ने कहा कि जहां तक ​​प्रमुख मुद्दों का सवाल है, पुष्पा रानी के 2008 के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि जहां पुनर्गठन के परिणामस्वरूप अधिकांश कैडरों में अतिरिक्त पदों का सृजन होता है, और ऐसे पदों को, योग्य और उपयुक्त कर्मचारियों की पदोन्नति से भरने का सचेत निर्णय लिया जाता है और इसलिए, यह पदोन्नति का मामला है, आरक्षण के नियम लागू होंगे।

    पुष्पा रानी मामले में कहा गया था, "एक बार यह तय किया जाता है कि विभिन्न कैडरों के पुनर्गठन के बाद उपलब्ध अतिरिक्त पदों को पात्रता की शर्तों को पूरा करने वाले कर्मचारियों से पदोन्नति द्वारा भरा जाना आवश्यक है और उन्हें उपयुक्त ठहराया गया है, इससे पदोन्नति को प्रभावित करते हुए आरक्षण की नीति की प्रयोज्यता को लागू नहीं करने का कोई तर्कसंगत औचित्य नहीं हो सकता है, इसलिए क्योंकि यह नहीं दिखाया गया है कि इस तरह के अतिरिक्त पदों पर पदोन्नति द्वारा नियुक्ति करने की प्रक्रिया सामान्य पदोन्नति के लिए निर्धारित प्रक्र‌िया से भिन्न है।"

    एएसजी माधवी दीवान ने, केंद्र सरकार की ओर से कहा, "तत्काल मामले में, कैट के आदेश का अनुपालन किया गया था। लेकिन यह एक आवर्ती मुद्दा है। यदि ऐसा कोई अन्य मामला आता है, तो फिर से मुकदमेबाजी के कई दौर होंगे। स्पष्टीकरण प्राप्त करने के लिए हमारे पास विभाग से कई प्रतिनिधित्व हैं। .प्रणाली की दक्षता के लिए पुनर्गठन एक महत्वपूर्ण अभ्यास है। हमें इसे करने में सक्षम होना चाहिए। क्या माई लॉर्ड यह घोषित कर सकते हैं कि जहां प्रश्न चयन का हो और उन्नयन का नहीं, पुष्पा रानी लागू होगा?"

    जस्टिस ललित ने कहा, "यदि किसी मामले के तथ्यों के साथ व्यवहार नहीं किया जाता है, तो किसी घोषणा का मूल्य क्या है?...... नए पदों के सृजन में, चाहे आरक्षण आकर्षित किया गया हो, पुष्पा रानी में फैसला किया जा चुकी है...."

    जस्टिस भट ने कहा, "कानून तय है कि आरक्षण की नीति पदोन्नति पर लागू होगी। स्थिति को पुष्पा रानी, ​​सिरोठिया एक और दो और 2011 में बीएसएनएल बनाम आर संथुकुमारी में तय की गई है। हमें क्यों कुछ दोहराना चाहिए, जब पहले से ही इन फैसलों में यह निर्धारित हो चुका है।"

    पीठ ने, जहां तक ​​तात्कालिक मामले में शामिल सिद्धांत मुद्दे हैं, पुष्पा रानी के फैसले के 30वें और 33वें पैराग्राफ को अपने आदेश पुन: पेश किया।

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