सीआरपीसी की धारा 468 के तहत परिसीमा अवधि की गणना करने के लिए प्रासंगिक तारीख शिकायत दर्ज करने की या अभियोजन स्थापना की तारीख हैः सुप्रीम कोर्ट

LiveLaw News Network

6 March 2022 1:27 PM GMT

  • सुप्रीम कोर्ट, दिल्ली

    सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सीआरपीसी की धारा 468 के तहत परिसीमा की अवधि (Limitation Period) की गणना के लिए संबंधित तारीख शिकायत दर्ज कराने की तारीख या अभियोजन स्थापना की तारीख है, न कि वह तारीख, जब मजिस्ट्रेट ने अपराध का संज्ञान लिया है।

    उल्लेखनीय है कि सेक्‍शन 468 सीआरपीसी, परिसीमा अवधि की समाप्ति‌ के बाद संज्ञान लेने पर रोक से संबंधित है।

    यह इस प्रकार है:

    1) संहिता में अन्यत्र दिए अन्यथा प्रावधान के अलावा, कोई भी न्यायालय परिसीमा अवधि की समाप्ति के बाद उपधारा (2) में निर्दिष्ट श्रेणी के अपराध का संज्ञान नहीं लेगा।

    (2) परिसीमा की अवधि होगी-

    (ए) छह महीने, अगर अपराध केवल जुर्माने के रूप में दंडनीय है;

    (बी) एक वर्ष, यदि अपराध एक वर्ष से अधिक की अवधि के लिए कारावास के रूप में दंडनीय है;

    (सी) तीन साल, अगर अपराध एक वर्ष से अधिक, हालांकि तीन साल से कम की अवधि के लिए कारावास के रूप में दंडनीय है।

    मामले में वास्तविक शिकायतकर्ताओं ने 10.07.2012 को पुलिस अधीक्षक, खाचरोद के समक्ष एक लिखित शिकायत दर्ज कराई थी, जिसमें दावा किया गया था कि उन्होंने आरोपी को 33.139 किलोग्राम चांदी सौंपी थी। 4.10.2009 को मांगे जाने पर आरोपी ने उसे वापस करने से इनकार कर दिया।

    अपीलार्थी की शिकायत पर एफआईआर दर्ज की गई और जांच के बाद पुलिस ने 13.11.2012 को आरोपपत्र दायर किया, जिसमें आईपीसी की धारा 406 सहपठित धारा 406 और धारा 120-बी के तहत अपराध तय किए गए।

    4.12.2012 को न्यायिक दंडाधिकारी, प्रथम श्रेणी, खाचरोद ने संज्ञान लिया। सीआरपीसी की धारा 482 के तहत दायर याचिका को स्वीकार करते हुए हाईकोर्ट ने आपराधिक कार्यवाही को इस आधार पर रद्द कर दिया कि 04.12.2012 (तीन साल बाद) इस मामले का संज्ञान लेने पर प्रतिबंध लगा दिया गया था।

    जस्टिस दिनेश माहेश्वरी और जस्टिस विक्रमनाथ पीठ के समक्ष यह तर्क दिया गया कि हाईकोर्ट का निर्णय संविधान पीठ द्वारा सारा मैथ्यू बनाम कार्डियो वैस्कुलर रोग संस्थान, अपने निदेशक डॉ केएम चेरियन (2014) 2 एससीसी 62 के सिद्धांतों के विपरीत है।

    उक्त निर्णय का उल्लेख करते हुए, पीठ ने कहा,

    "इसलिए, संविधान पीठ द्वारा कानून की स्‍थापना और घोषणा किसी संदेह को स्वीकार नहीं करती है कि धारा 468 सीआरपीसी के तहत सीमा अवधि की गणना करने के लिए प्रासंगिक तारीख शिकायत दर्ज करने की तारीख या अभियोजन स्‍थापना की तारीख है, न कि वह तारीख जब मजिस्ट्रेट अपराध का संज्ञान लेता है। हाईकोर्ट ने यह मानकर मौलिक त्रुटि की है कि संज्ञान लेने की तारीख यानि 04.12.2012 मामले के लिए निर्णायक है, जबकि इस तथ्य की अनदेखी की है कि अपीलकर्ता द्वारा लिखित शिकायत वास्तव में 10.07.2012 को दर्ज कराई गई थी, जो कि अपराध करने की तारीख यान‌ि 4.10.2009 के संदर्भ में 3 वर्ष की सीमा की अवधि के भीतर है।"

    पीठ ने प्रतिवादी की ओर से उठाए इस तर्क को भी खारिज कर दिया कि सारा मैथ्यू के मामले में इस आधार पर पुनर्विचार की आवश्यकता है कि चेप्टर XXXVI सीआरपीसी से संबंधित कुछ कारकों पर न्यायालय द्वारा विचार नहीं किया गया है।

    अपील की अनुमति देते हुए पीठ ने कहा,

    "इस न्यायालय की संविधान पीठ के निर्णय पर विचाराधीन प्रावधानों की विभिन्न व्याख्याओं के बारे में कुछ सुझावों पर सवाल नहीं उठाया जा सकता है। यह स्पष्ट है कि इस न्यायालय के निर्णय का बाध्यकारी प्रभाव इस बात पर निर्भर नहीं करता है कि किसी विशेष तर्क पर विचार किया गया था या नहीं, बशर्ते कि जिस बिंदु के संदर्भ में तर्क दिया गया है, वास्तव में उसमें निर्णय लिया गया था। यह इस तथ्य से अलग है कि सारा मैथ्यू (सुप्रा) में निर्णय को सामान्य ढंग से पढ़ने से यह स्पष्ट हो जाएगा कि चैप्टर XXXVI सीआरपीसी से संबंधित हर प्रासंगिक पहलू किको संविधान पीठ द्वारा आवश्यक विवरण में विस्तार किया गया है।"

    केस: अमृतलाल बनाम शांतिलाल सोनी | CRA 301 of 2022| 28 फरवरी 2022

    सिटेशन: 2022 लाइव लॉ (एससी) 248

    कोरम: जस्टिस दिनेश माहेश्वरी और जस्टिस विक्रमनाथ

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