ऐसे मामले अत्यंत जरूरी मामलों की श्रेणी में नहीं आ सकते, जिनसे लॉकडाउन का उल्‍लंघन हो, कई और जानों को जोखिम डालना पड़ेः बॉम्‍बे हाईकोर्ट

LiveLaw News Network

5 April 2020 9:38 AM GMT

  • ऐसे मामले अत्यंत जरूरी मामलों की श्रेणी में नहीं आ सकते, जिनसे लॉकडाउन का उल्‍लंघन हो, कई और जानों को जोखिम डालना पड़ेः बॉम्‍बे हाईकोर्ट

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने शुक्रवार दो जमानत याचिकाओं को खारिज करते हुए कहा कि किसी अभियुक्त या दोषी को रिहा करना का ऐसा मामला, जिससे 'लॉकडाउन ऑर्डर का उल्लंघन' हो और कई दूसरी जानें जोख‌िम में पड़ जाएं, 'अत्यंत जरूरी मामलों' की श्रेणी में नहीं आता।

    जस्टिस एएम बदर ने सोपान लांजेकर की अर्जी पर सुनवाई की, जो भारतीय दंड संहिता की धारा 420 और 409 के तहत आरोपी है और गणेश पठारे की अर्जी पर सुनवाई की, जो कि नारकोटिक्स ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस एक्ट की धारा 8 (सी) और 22 के तहत आरोपी है।

    पठारे ने अपनी जमानत याचिका में कहा था कि उसका बेटा 100% अंधा है और उसे लॉकडाउन की अवधि में देखभाल की आवश्यकता है। कोर्ट ने कहा कि पठारे ने जब जमानत की मूल अर्जी दाखिल की थी, तब भी यह आधार दिया था।

    कोर्ट ने कहा कि COVID-19 के प्रकोप के कारण अत्यंत आवश्यक मामलों की सुनवाई के लिए ही बेंच नियुक्त की गई है।

    जस्टिस बदर ने कहा कि, "बेल रिट जारी किए जाने के बाद संबंधित न्यायालय और राज्य सरकार के कई कर्मचारियों, अधिकारियों और पीठासीन अधिकाररियों को जमानत याचिका पर काम करना होता है। लॉकडाउन के कारण, न्यायालय सहित सभी कार्यालय बंद हैं। अधिकांश कार्यालयों में न्यूनतम कर्मचारियों के जर‌िए जरूरी कामकाज किया जा रहा है।

    ऐसे किसी अभियुक्त/दोषी को जमानत देना और रिहाई का आदेश जारी करना लॉकडाउन के आदेश को भंग करने जैसा है, कई कर्मचारियों और अधिकारियों को काम पर लगना पड़ेगा, जिससे उन्हें COVID-19 का संक्रमण होने का जोखिम हो सकता है।"

    जस्टिस बदर ने अपने फैसले में कहा, पूरी सरकारी मशीनरी लॉकडाउन का अनुपालन कराने के लिए लगातार काम कर रही है, पूरे देश को महामारी से बचाने के लिए ऐसा किया जा रहा है।

    ऐसी स्थिति में राज्य सरकार से यह कहना उचित नहीं है कि वह अभियोजक को निर्देश देने के ‌‌लिए एक पुलिस अधिकारी को तैनात करे, जो कि लोक अभियोजक के कार्यालय में जाए, अपने कार्य क्षेत्र को छोड़कर, जहां उसका होना ज्यादा जरूरी है, न्यायालय आए।

    जस्टिस बदर ने शाहरुख पुत्र जुहारू खान बनाम राजस्थान राज्य के मामले में के मामले में राजस्थान हाईकोर्ट की टिप्पणियों का भी उल्लेख किया, जिसमें उन्होंने कहा था कि COVID-19 के प्रकोप के मद्देनजर 'बेहद जरूरी मामलों' की सुनवाई ही की जाए।

    दोनों आवेदनों को खारिज करते हुए कोर्ट कहा-

    "लॉकडाउन के आदेश का उल्लंघन करने और कई लोगों की जान जोखिम में डालने की कीमत पर किसी आरोपी या दोषी को रिहा करने के मामले को 'अति आवश्यक मामले' की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता है।"

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