कर्मचारी का निष्कासन दंडात्मक व लांछनपूर्ण हो तो नियमित जांच आवश्यकः सुप्रीम कोर्ट

LiveLaw News Network

29 Jan 2020 7:11 PM IST

  • कर्मचारी का निष्कासन दंडात्मक व लांछनपूर्ण हो तो नियमित जांच आवश्यकः सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि किसी कर्मचारी के निष्कासन के लिए, यदि निष्कासन दंडात्मक व लांछनपूर्ण है, तो सेवा नियमों के अनुसार नियमित जांच आवश्यक है।

    कोर्ट ने ये टिप्‍पणी सेंट्रल यूनिवर्सिटी ऑफ केरल के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ विजयकुमारन सीपीवी द्वारा दायर अपील की सुनवाई के दौरान की, जिन्हें यौन उत्पीड़न के आरोप में यूनिवर्सिटी से निकाल दिया गया। तब वह प्रोबेशन पर थे।

    अलग-अलग बिंदुओं पर 40 स्टूडेंट्स द्वारा यौन शोषण की शिकायत‌ किए जाने के बाद

    विश्वविद्यालय आयोग (प्रिवेंशन, प्रोहिबिशन एंड रिड्रेसल ऑफ वूमेन एम्प्लॉइज एंड वीमेन स्टूडेंट्स ऑफ सेक्सुअल हैरेसमेंट ऑफ़ वीमेन इम्प्लायमेंट्स एंड स्टूडेंट्स इन हायर एजुकेशनल) रेगुलेशन्स 2015 (संक्षेप में, '2015 विनियम') के प्रावधानों के अनुसार एक आंतर‌िक श‌िकायत कमेटी गठित की गई।

    कमेटी ने शिकायतों ‌को ठोस पाया, जिसके बाद डॉ विजयकुमारन के निष्कासन की सिफारिश की। कमेटी की सिफा‌र‌िश के आधार पर कुलपति ने टर्मिनेशन लेटर जारी कर दिया।

    हाईकोर्ट में निष्कासन के आदेश को असफल चुनौती देने के बाद, उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। उन्होंने दलील दी कि चूंकि निष्कसन लांछनपूर्ण और दंडात्मक ‌था, इसलिए विभागीय नियमों के अनुसार औपचारिक जांच आवश्यक थी।

    उनकी दलील से सहमत होते हुए जस्टिस ए एम खानविल्कर, जस्टिस हेमंत गुप्ता और ज‌िस्‍टस दिनेश माहेश्वरी की 3 जजों की बेंच ने निष्कासन के आदेश को 'पूर्व-दृष्टया लांछनपूर्ण और दंडात्मक' बताया।

    उन्होंने कहा-

    "अपीलार्थी वैधान‌िक नियमों के तहत गठित कमेटी के समक्ष औपचारिक जांच का विषय था, जो उस पर लगे अनैतिकता या कदाचार के आरोपों की जांच करती, और वह जांच अपीला‌र्थी के खिलाफ अपराध के निष्कर्षों के साथ, सर्विस नियमों के मुता‌बिक, अपीलार्थी के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए कार्यकारी परिषद की सिफारिशों के साथ समाप्त होती। ऐसी स्थिति में, यह आदेश निष्कासन आदेश समझे जाने योग्य नहीं है।"

    बेंच ने कहा कि ऐसा आदेश सेवा नियमों के अनुसार नियमित जांच किए जाने के जाने के बाद ही जारी किया जा सकता है।

    मामले में सुप्रीम कोर्ट के उदाहरण इंद्र पाल गुप्ता बनाम प्रबंध समिति, मॉडल इंटर कॉलेज, थोरा (1984) 3 एससीसी 384, दीप्ति प्रकाश बनर्जी बनाम सत्येंद्र नाथ बोस नेशनल सेंटर फॉर बेसिक साइंसेज, कलकत्ता व अन्य (1999) 3 एससीसी 60, पवनेंद्र नारायण वर्मा बनाम संजय गांधी पीजीआई ऑफ मेडिकल साइंसेज व अन्य (2002) 1 एससीसी 520 आदि को संदर्भित किया गया था।

    सुप्रीम कोर्ट ने शिकायतों की जांच POSH एक्ट के तहत न किए जाने के मामले में भी यू‌निवर्सिटी को गलत माना।

    "पीड़ित महिला (यून‌िवर्सिटी की छात्राओं) द्वारा कार्यस्थल (इस मामले में यूनिविर्सीटी कैंपस ) पर यौन उत्पीड़न की श‌िकायतें प्राप्त होने के बाद, प्रशासन का यह दायित्व है कि ऐसी शिकायतों को आंतरिक कमेटी या लोकल कमेटी को, तय समय में, जैसा कि कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013 (संक्षेप में, '2013 का अधिनियम') की धारा 9 में तय किया गया है, भेजा जाए। इस तरह की शिकायत मिलने पर, आंतरिक कमेटी या लोकल कमेटी द्वारा 2013 एक्ट की धारा 11 में निर्धारित शर्तों के अनुरूप जांच आवश्यक है। ऐसी जांच के संचालन की प्रक्रिया को 2015 के रेगुलेशन में वर्णन किया गया है। इस प्रकार समझा जाता है, यह जरूरी है कि जांच एक औपचारिक जांच हो, जिसे 2015 रेगुलेशन के संदर्भ में किए जाने की आवश्यकता है।

    कोर्ट ने अपील को आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए, निष्कासन के आदेश को रद्द कर दिया और बहाली का आदेश दिया।

    केस का विवरण

    टाइटल: डॉ विजयकुमारन सीपीवी बनाम सेंट्रल यूनिवर्सिटी ऑफ केरल व अन्य

    केस नंबर: सिविल अपील 777/2020

    कोरम: जस्टिस एएम खानविलकर, ज‌स्टिस हेमंत गुप्ता और जस्टिस दिनेश माहेश्वरी।

    वकील: अपीलकर्ता के लिए एडवोकेट रेशमीत आर चंद्रन

    निर्णय डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें




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