'पंजाब गवर्नर मामले का फैसला पढ़ें: विधेयकों को मंजूरी देने में देरी के खिलाफ राज्य की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने केरल गवर्नर से कहा

Shahadat

25 Nov 2023 5:15 AM GMT

  • पंजाब गवर्नर मामले का फैसला पढ़ें: विधेयकों को मंजूरी देने में देरी के खिलाफ राज्य की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने केरल गवर्नर से कहा

    सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान से बिलों पर पंजाब के राज्यपाल की निष्क्रियता से संबंधित मामले में दिए गए हालिया फैसले का उल्लेख करने को कहा और केरल राज्य द्वारा दायर याचिका की सुनवाई अगले मंगलवार (28 नवंबर) तक के लिए स्थगित कर दी।

    जब मामला उठाया गया तो केरल राज्य की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट और भारत के पूर्व अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने पीठ को बताया कि राज्यपाल की सहमति के लिए भेजे गए कई विधेयक पिछले दो वर्षों से लंबित हैं।

    वेणुगोपाल ने कहा,

    "सभी मंत्रियों ने उनसे (राज्यपाल) से मुलाकात की है। मुख्यमंत्री ने उनसे कई बार मुलाकात की है।"

    उन्होंने कहा कि अब आठ विधेयक लंबित हैं।

    चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़ ने तब भारत के अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी से कहा:

    "हमने हाल ही में पंजाब मामले में आदेश अपलोड किया। राज्यपाल के सचिव से आदेश को देखने के लिए कहें और मंगलवार को हमें बताएं कि आपकी प्रतिक्रिया क्या है।"

    गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट में पंजाब राज्य द्वारा दायर ऐसी ही याचिका में कहा गया कि यदि कोई राज्यपाल किसी विधेयक पर सहमति रोकने का फैसला करता है तो उसे विधेयक को पुनर्विचार के लिए विधायिका को वापस करना होगा। अदालत ने मौखिक रूप से यह भी कहा कि राज्य सरकार द्वारा अदालत का रुख करने के बाद ही राज्यपालों द्वारा विधेयकों पर कार्रवाई करने की प्रवृत्ति बंद होनी चाहिए।

    अपने आदेश में अदालत ने कहा,

    "यदि राज्यपाल अनुच्छेद 200 के मूल भाग के तहत सहमति को रोकने का निर्णय लेते हैं तो कार्रवाई का तार्किक तरीका विधेयक को पुनर्विचार के लिए राज्य विधायिका को भेजने के पहले प्रावधान में बताए गए पाठ्यक्रम को आगे बढ़ाना है। दूसरे शब्दों में, रोक लगाने की शक्ति अनुच्छेद 200 के मूल भाग के तहत सहमति को पहले प्रावधान के तहत राज्यपाल द्वारा अपनाई जाने वाली कार्रवाई के परिणामी पाठ्यक्रम के साथ पढ़ा जाना चाहिए।"

    निर्णय में कहा गया कि यदि ऐसी व्याख्या नहीं अपनाई जाती है तो राज्यपाल केवल यह कहकर विधायी प्रक्रिया को पटरी से उतारने की स्थिति में होंगे कि वह सहमति रोक रहे हैं।

    फैसले में न्यायालय ने यह भी पुष्टि की कि राज्यपाल राज्य का अनिर्वाचित प्रमुख है और राज्य द्वारा कानून बनाने के सामान्य पाठ्यक्रम को विफल करने के लिए अपनी संवैधानिक शक्तियों का उपयोग नहीं कर सकता। गौरतलब है कि पंजाब मामले में राज्यपाल ने बिलों को जिस विधानसभा सत्र में पारित किया गया, उसकी वैधता पर संदेह जताते हुए उन्हें लंबित रखा। विशेष रूप से राज्यपाल ने किसी भी सार्वजनिक अधिसूचना में यह 'घोषणा' नहीं की कि वह विधेयकों पर अपनी सहमति रोक रहे हैं।

    राज्यपाल ने मुख्यमंत्री को नया मानसून/शीतकालीन सत्र बुलाने और विशिष्ट व्यवसाय को निर्धारित करने वाले एजेंडे को आगे बढ़ाने की सलाह दी, जिससे वह काम-काज को चलाने के लिए सदन को बुलाने की अनुमति दे सकें। राज्यपाल की निष्क्रियता से व्यथित पंजाब राज्य ने संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत सुप्रीम कोर्ट के अधिकार क्षेत्र का इस्तेमाल किया।

    इससे पहले ऐसी ही स्थिति तेलंगाना राज्य में हुई थी, जहां सरकार द्वारा रिट याचिका दायर करने के बाद ही राज्यपाल ने लंबित विधेयकों पर कार्रवाई की थी।

    मामले की पृष्ठभूमि

    केरल सरकार ने यह कहते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया कि केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान राज्य विधानसभा द्वारा पारित विधेयकों पर विचार करने में देरी कर रहे हैं। राज्य सरकार ने तर्क दिया कि 8 से अधिक लंबित विधेयकों पर विचार करने में अनुचित देरी करके राज्यपाल अपने संवैधानिक कर्तव्यों में विफल रहे हैं।

    निम्नलिखित विधेयक राज्यपाल के विचाराधीन हैं और इसकी प्रस्तुति के बाद से बीता हुआ समय है:

    यूनिवर्सिटी कानून संशोधन विधेयक (पहला संशोधन) 2021 -23 महीने

    यूनिवर्सिटी कानून संशोधन विधेयक (पहला संशोधन) 2021-23 महीने

    यूनिवर्सिटी कानून संशोधन विधेयक (दूसरा संशोधन) 2021 [एपीजे अब्दुलकलाम तकनीकी न (माल)] -23 महीने

    केरल सहकारी सोसायटी संशोधन विधेयक 2022 [MILMA] -14 महीने

    यूनिवर्सिटी कानून संशोधन विधेयक 2022 -12 महीने

    केरल लोकायुक्त संशोधन विधेयक 2022-12 महीने

    यूनिवर्सिटी कानून संशोधन विधेयक 2022 -9 महीने

    सार्वजनिक स्वास्थ्य विधेयक 2021 -5 महीने

    राज्य द्वारा दायर रिट में सुप्रीम कोर्ट से यह घोषणा करने की मांग की गई कि राज्यपाल उचित समय के भीतर और बिना किसी देरी के उनके समक्ष प्रस्तुत प्रत्येक विधेयक का निपटान करने के लिए बाध्य हैं। रिट में एक विशिष्ट घोषणा की भी मांग की गई कि राज्यपाल समय पर लंबित विधेयकों पर विचार करने में देरी करके अपनी संवैधानिक शक्तियों और कर्तव्यों का पालन करने में विफल रहे हैं।

    केस टाइटल: केरल राज्य और अन्य बनाम केरल राज्य के माननीय राज्यपाल और अन्य। डब्ल्यू.पी.(सी) नंबर 1264/2023

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