यदि गवाही भरोसेमंद है तो केवल पीड़िता की गवाही के आधार पर बलात्कार के आरोपी को दोषी ठहराया जा सकता है : सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया
LiveLaw News Network
1 Dec 2021 7:02 PM IST
सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया कि बलात्कार के आरोपी को केवल पीड़िता/अभियोक्ता (prosecuterix) की गवाही के आधार पर दोषी ठहराया जा सकता है, लेकिन यह गवाही विश्वसनीय और भरोसेमंद होनी चाहिए।
इस मामले में, बलात्कार के आरोपी को भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 375 के तहत समवर्ती रूप से दोषी ठहराया गया था। आरोपी द्वारा उठाया गया एक तर्क यह था कि अभियोजन का मामला पूरी तरह से पीड़िता (अभियोक्ता) के बयान पर टिका है और किसी अन्य स्वतंत्र गवाह की जांच नहीं की गई है जिसने अभियोक्ता के मामले का समर्थन किया हो।
जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस संजीव खन्ना की पीठ ने इस तर्क की जांच करते हुए कहा कि अभियोजन पक्ष ने पीड़िता के मामले का पूरा समर्थन किया है और यह शुरू से ही लगातार सही रहा है।
इस बिंदु पर अदालत ने सुप्रीम कोर्ट के पहले के फैसलों में की गई निम्नलिखित टिप्पणियों पर ध्यान दिया:
पीड़िता/अभियोक्ता की एकमात्र गवाही पर दोषसिद्धि हो सकती है, जब अभियोक्ता का बयान भरोसेमंद, बेदाग, विश्वसनीय पाया जाता है और उसका सबूत उत्कृष्ट गुणवत्ता का होता है। (गणेशन बनाम राज्य, [(2020) 10 एससीसी 573])
एक सामान्य नियम के रूप में यदि विश्वसनीय हो तो अभियुक्त की दोषसिद्धि बिना पुष्टि के एकमात्र गवाही पर आधारित हो सकती है। आगे यह भी देखा गया और माना गया कि अभियोक्ता की एकमात्र गवाही पर अदालत द्वारा केवल अनुमानों के आधार पर संदेह नहीं किया जाना चाहिए। [राज्य (एनसीटी दिल्ली) बनाम पंकज चौधरी, (2019) 11 एससीसी 575]
पीड़िता की गवाही महत्वपूर्ण है और जब तक उसके बयान की पुष्टि की आवश्यकता के लिए मजबूर करने वाले कारण न हों, अदालतों को किसी आरोपी को दोषी ठहराने के लिए अकेले यौन उत्पीड़न की पीड़िता की गवाही पर कार्रवाई करने में कोई कठिनाई नहीं होनी चाहिए, जहां उसकी गवाही आत्मविश्वास को प्रेरित करती है और उसे विश्वसनीय पाया गया हो।
यह आगे देखा गया है कि एक नियम के रूप में उस पर भरोसा करने से पहले उसके बयान की पुष्टि की मांग करना, ऐसे मामलों में चोट को अपमान से जोड़ने के बराबर है। [शाम सिंह बनाम हरियाणा राज्य, (2018) 18 एससीसी 34]
6. उपरोक्त निर्णयों में इस न्यायालय द्वारा निर्धारित कानून को मामले के तथ्यों पर लागू करना और जैसा कि यहां ऊपर देखा गया है, हम पीड़ित पक्ष की विश्वसनीयता और/या विश्वसनीयता पर संदेह करने का कोई कारण नहीं देखते। वह विश्वसनीय और भरोसेमंद मानी जाती है, इसलिए बिना किसी अन्य पुष्टि के अभियोक्ता की एकमात्र गवाही के आधार पर अभियुक्त की दोषसिद्धि को कायम रखा जा सकता है।
अदालत ने आईपीसी की धारा 376 के प्रावधान पर विचार करते हुए सजा को कम करने की आरोपी की याचिका को भी खारिज कर दिया।
अपील को खारिज करते हुए अदालत ने इस प्रकार देखा:
आईपीसी की धारा 376 पूर्व-संशोधन के अनुसार, न्यूनतम सजा सात साल होगी। हालांकि, क्लॉज़ के अनुसार कोर्ट, निर्णय में उल्लिखित पर्याप्त और विशेष कारणों से सात साल से कम की अवधि के लिए कारावास की सजा दे सकता है। सात साल से कम की अवधि के कारावास की सजा को लागू करने के लिए कोई असाधारण और/या विशेष कारण नहीं बताए गए हैं। इसके विपरीत तथा प्रकरण के तथ्यों एवं परिस्थितियों में यह कहा जा सकता है कि अभियुक्त को न्यूनतम सात वर्ष सश्रम कारावास की सजा देकर हल्के ढंग से निपटाया गया है।
पीड़िता रिश्तेदार थी। ससुराल में परिवार में किसी ने भी उसका साथ नहीं दिया और उसे आघात लगा। उसे अपने माता-पिता के घर जाने के लिए मजबूर किया गया और उसके बाद वह एफआईआर दर्ज करने में सक्षम हुई। आरोपी ने झूठा मामला/बचाव का दावा पेश किया, जिसे निचली अदालतों ने स्वीकार नहीं किया।
इन परिस्थितियों में अपीलकर्ता की सजा को कम करने और/या सजा को सात साल के कठोर कारावास से सात साल के साधारण कारावास में बदलने की प्रार्थना स्वीकार नहीं की सकती और इसे खारिज कर दिया जाता है।
केस का नाम: फूल सिंह बनाम मध्य प्रदेश राज्य
साइटेशन : एलएल 2021 एससी 696
केस नंबर और दिनांक: 2021 का सीआरए 1520 | 1 दिसंबर 2021
कोरम: जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस संजीव खन्ना
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