राजस्थान परिसर (किराये और बेदखली का नियंत्रण) अधिनियम 1950 | सुप्रीम कोर्ट ने माना, किरायेदारी के 5 साल से पहले बेदखली का मुकदमा दायर नहीं किया जा सकता, फिर भी फैसले की पुष्टि की क्योंकि यह 38 साल बाद पारित किया गया था

Avanish Pathak

13 July 2023 7:47 AM GMT

  • राजस्थान परिसर (किराये और बेदखली का नियंत्रण) अधिनियम 1950 | सुप्रीम कोर्ट ने माना, किरायेदारी के 5 साल से पहले बेदखली का मुकदमा दायर नहीं किया जा सकता, फिर भी फैसले की पुष्टि की क्योंकि यह 38 साल बाद पारित किया गया था

    Supreme Court's decision in the case related to Rajasthan Premises (Control of Rent and Eviction) Act 1950| सुप्रीम कोर्ट की दो जजों की पीठ, जिसमें जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह शामिल थे, ने कहा कि राजस्थान किराया नियंत्रण अधिनियम, 1950 की धारा 14(3) का उद्देश्य किरायेदारों के हितों की रक्षा करना था।

    प्रावधान के अनुसार, मकान मालिक द्वारा किरायेदारी के 5 साल के भीतर बेदखली का मुकदमा दायर नहीं किया जा सकता है। हालांकि, अदालत ने कहा कि भले ही इस मामले में, बेदखली का मुकदमा 5 साल के भीतर दायर किया गया था, तब से 38 साल बीत चुके हैं। इससे बेदखली के मुकदमे का दोष स्वयं ठीक हो जायेगा।

    सुप्रीम कोर्ट ने मकान मालिक की अपील को स्वीकार कर लिया और हाई कोर्ट के फैसले को रद्द कर दिया।

    पृष्ठभूमि

    प्रतिवादी पांच बत्ती, एम1 रोड, जयपुर में स्थित एक दुकान का किरायेदार है और अपीलकर्ता मकान मालिक है। अपीलकर्ता ने 1985 में संपत्ति खरीदी थी, जहां प्रतिवादी पहले से ही परिसर में किरायेदार के रूप में मौजूद था।

    अपीलकर्ता ने 1985 में वास्तविक आवश्यकता का हवाला देते हुए बेदखली के लिए एक मुकदमा दायर किया था, जिसे 2002 में खारिज कर दिया गया था क्योंकि किराया नियंत्रण अधिनियम की धारा 14(3) किरायेदारी के 5 साल के भीतर दायर किए गए मुकदमों पर रोक लगाती थी। ट्रायल कोर्ट ने कहा कि परिसर 1982 में पट्टे पर दिया गया था।

    अतिरिक्त जिला न्यायाधीश के समक्ष एक अपील दायर की गई थी, जहां अपीलकर्ता 2004 में प्रतिवादी की स्वीकारोक्ति के आधार पर सफल हुआ कि दुकान शुरू में 1958 में पट्टे पर दी गई थी। इसलिए, किरायेदारी के 5 साल बाद मुकदमा दायर किया गया था जो कानूनी रूप से स्वीकार्य है।

    इसके बाद प्रतिवादी ने हाईकोर्ट के एकल न्यायाधीश के समक्ष दूसरी अपील दायर की गई, जिसने 2018 में सुनवाई योग्य होने का प्रारंभिक प्रश्न तैयार किया।

    कानूनी मुद्दे

    यदि किरायेदारी के 5 साल के भीतर बेदखली का मुकदमा दायर किया जाता है तो क्या होगा? क्या वह बिल्कुल वर्जित है? क्या अवधि समाप्त होने के बाद नया मुकदमा दायर करने की आवश्यकता होगी?

    पहला दृष्टिकोण यह था कि धारा 14(3) किरायेदारी के 5 साल के भीतर मुकदमा दायर करने पर पूर्ण प्रतिबंध लगाती है। जबकि, दूसरा दृष्टिकोण यह था कि किरायेदारी के 5 वर्षों के भीतर दायर की गई याचिका की अनियमितता ऐसी अवधि की समाप्ति के बाद की गई बेदखली की डिक्री से ठीक हो जाएगी।

    चूंकि समन्वय पीठों द्वारा धारा 14(3) की अलग-अलग व्याख्याएं थीं, इसलिए इस मामले को हाईकोर्ट की एक बड़ी पीठ को भेजा गया था। हाईकोर्ट की खंडपीठ ने आक्षेपित निर्णय के माध्यम से माना कि धारा 14(3) मुकदमे पर पूर्ण प्रतिबंध लगाती है।

    फैसला

    सुप्रीम कोर्ट ने माना कि किरायेदार की 5 साल तक सुरक्षा का उद्देश्य पहले ही पूरा हो चुका है क्योंकि कार्यवाही 5 साल और उससे भी आगे तक चली - इस मामले में यह 38 साल तक चली। किरायेदार को पूरे 38 साल तक बेदखल नहीं किया गया।

    अदालत का मानना था कि मुकदमा पहले ही 38 साल लंबा खिंच चुका है। यदि हम मकान मालिक को नया मुकदमा दायर करने के लिए कहते हैं तो यह मुकदमा दायर करने पर प्रतिबंध के मूल उद्देश्य को विफल कर देगा।

    अदालत ने कहा कि यह कहना न्याय का मखौल होगा कि मकान मालिक को अब कार्यवाही फिर से शुरू करनी चाहिए।

    कोर्ट ने कहा कि वह बी बनर्जी बनाम श्रीमती अनिता पान (1975) 1 एससीसी 166 मामले में इस टिप्पणी से सहमत है कि “निर्धारित समय अवधि बीतने के साथ सुरक्षा पूरी हो जाती है और नया मुकदमा दायर करने से अनावश्यक कार्यवाही में वृद्धि होगी।"

    अदालत ने इस बात पर ध्यान दिया कि नए कानून में राजस्थान किराया नियंत्रण अधिनियम, 2001 लागू हो गया है, जिसने कोई समान रोक नहीं बनाई है। सुप्रीम कोर्ट ने मामले को गुण-दोष के आधार पर निर्णय के लिए द्वितीय अपील में एकल न्यायाधीश के पास भेजने के बजाय समाप्त करने के लिए अनुच्छेद 142 का उपयोग किया

    अदालत ने कहा कि दूसरी अपील में निर्धारित किए जाने वाले कानून के वास्तविक प्रश्न पर सुप्रीम कोर्ट पहले ही चर्चा कर चुका है और उसका उत्तर दे चुका है। इसलिए मामले को गुण-दोष के आधार पर तय करने के लिए दूसरी अपील में एकल न्यायाधीश के पास वापस भेजने के बजाय, जैसा कि आमतौर पर किया जाता है, अदालत ने संविधान के अनुच्छेद 142 का प्रयोग करते हुए 2004 में प्रथम अपीलीय अदालत द्वारा बेदखली के फैसले की पुष्टि की और मामले को समाप्‍त किया।

    केस टाइटल: रवि खंडेलवाल बनाम एम/एस तालुका स्टोर्स, एसएलपी (सी) नंबर 9434/2020

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