यदि देरी के कारणों का स्पष्टीकरण नहीं तो रेलवे ट्रेनों के देरी से आने के लिए मुआवजे का उत्तरदायी
LiveLaw News Network
8 Sept 2021 1:03 PM IST
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को एक मामले में दिए फैसले में कहा कि जब तक रेलवे सबूत नहीं देता और यह साबित नहीं करता कि ट्रेन की देरी के कारण उनके नियंत्रण से परे हैं, तब तक वे इस तरह की देरी के लिए मुआवजे का भुगतान करने के लिए उत्तरदायी होंगे।
"इसलिए, जब तक तक देरी की व्याख्या करने वाले सबूत नहीं पेश किए जाते हैं और यह साबित नहीं हो जाता है कि देरी उनके नियंत्रण से बाहर थी और/ या यहां तक कि देरी के लिए कुछ औचित्य था, रेलवे देरी और ट्रेन के देरी से पहुंचने के लिए मुआवजे का भुगतान करने के लिए उत्तरदायी है।"
इस दृष्टिकोण के साथ, न्यायालय ने राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग, नई दिल्ली द्वारा पारित आदेश को बरकरार रखा, जिसमें उसने जिला उपभोक्ता विवाद निवारण फोरम, अलवर द्वारा पारित मूल आदेश की पुष्टि की गई थी, जिसमें प्रतिवादी द्वारा वर्तमान मामले में दायर शिकायत की अनुमति दी गई थी और उत्तर पश्चिम रेलवे 15,000 रुपए टैक्सी खर्च के लिए, 10,000 रुपए बुकिंग खर्च और 5,000 -5,000 रुपए मानसिक पीड़ा और मुकदमेबाजी क खर्च के लिए भुगतान करने का आदेश दिया गया था।
जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस अनिरुद्ध बोस की पीठ उत्तर पश्चिम रेलवे की विशेष अनुमति याचिका पर सुनवाई कर रही थी।
प्रतिवादी क मामला था कि चूंकि अजमेर जम्मू एक्सप्रेस के आगमन में चार घंटे का विलंब था, इसलिए उसकी जम्मू से श्रीनगर के लिए बुक कनेक्टिंग फ्लाइट, जिसे दोपहर 12:00 बजे उड़ान भरना था, छूट गई।
इसलिए उसे टैक्सी से श्रीनगर की यात्रा करने के लिए मजबूर होना पड़ा और परिणामस्वरूप 9000 रुपए हवाई किराए के रूप में नुकसान हुआ और 15000 रुपए टैक्सी को देना पड़ा। प्रतिवादी को 10,000 रुपए का नुकसार डल झील में नाव की बुकिंग के कारण भी हुआ।
जिला फोरम ने प्रतिवादी के पक्ष में एक आदेश पारित किया जिसकी पुष्टि राज्य आयोग ने एक अपील में की। उसके बाद राष्ट्रीय आयोग ने पुनरीक्षण याचिका में पारित निर्णय और आदेश की पुष्टि की।
अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने प्रस्तुत किया कि ट्रेन के देर से चलने को रेलवे की ओर से सेवा में कमी नहीं कहा जा सकता है।
उन्होंने आगे इंडियन रेलवे कॉन्फ्रेंस एसोसिएशन कोचिंग टैरिफ नंबर 26 पार्ट- I (वॉल्यूम- I) के नियम 114 और नियम 115 पर भरोसा किया, जिसमें कहा गया था कि ट्रेन के देर से चलने के लिए मुआवजे का भुगतान करने के लिए रेलवे की कोई जिम्मेदारी नहीं होगी। इसमें कहा गया है कि ट्रेन के देरी से चलने के कई कारण हो सकते हैं।
खंडपीठ ने कहा कि जम्मू में ट्रेन देरी से आने के बारे में रेलवे की ओर से कोई सबूत नहीं दिया गया है। कोर्ट ने कहा, "रेलवे को सबूत पेश करने और ट्रेन के देरी से आगमन की व्याख्या करने और यह साबित करने की आवश्यक है कि देरी उनके नियंत्रण से परे कारणों के कारण हुई। कम से कम रेलवे को देरी की व्याख्या करने की आवश्यकता थी, जिसमें रेलवे विफल रहा। इस पर बहस नहीं की जा सकती कि हर यात्री का समय कीमती है और हो सकता है कि उन्होंने आगे की यात्रा के लिए टिकट बुक किया हो, जैसे वर्तमान मामले में जम्मू से श्रीनगर और उसके बाद आगे की यात्रा।"
इसलिए, मामले के तथ्यों, परिस्थितियों और देरी की व्याख्या के लिए किसी सबूत के अभाव में जिला फोरम, राज्य आयोग और राष्ट्रीय आयोग ने सही कहा है कि रेलवे की ओर से सेवा में कमी थी, जिसके लिए वे यात्री को मुआवजे का भुगतान करने के लिए उत्तरदायी थे।
पीठ ने कहा, "ये प्रतिस्पर्धा और जवाबदेही के दिन हैं। यदि सार्वजनिक परिवहन को जीवित रहना है और निजी खिलाड़ियों के साथ प्रतिस्पर्धा करना है तो उन्हें प्रणाली और उनकी कार्य संस्कृति में सुधार करना होगा। नागरिक/यात्री, अधिकारियों/प्रशासन की दया पर नहीं हो सकते। कोई जिम्मेदारी स्वीकार करनी होगी।"
न्यायालय ने कहा कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 136 के तहत शक्तियों के प्रयोग में किसी हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है और एसएलपी को खारिज कर दिया।
कारण शीर्षक: उत्तर पश्चिम रेलवे और अन्य बनाम संजय शुक्ला