हिजाब को वास्तविक प्रथा के रूप में दिखाया जाए तो आवश्यक धार्मिक प्रथा का सवाल नहीं उठता: सुप्रीम कोर्ट में सीनियर एडवोकेट राजीव धवन की दलील

Avanish Pathak

14 Sep 2022 9:32 AM GMT

  • सुप्रीम कोर्ट, दिल्ली
    सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने हिजाब मामले में कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले के ‌‌खिलाफ बुधवार को भी सुनवाई जारी रखी। जस्टिस हेमंत गुप्ता और जस्टिस सुधांशु धूलिया की बेंच की सुनवाई का आज पांचवां दिन है। याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट राजीव धवन ने आज कहा कि प्रथा को एक बार वास्तविक रूप से दिखाया गया हो तो यह अनुमेय है।

    उन्होंने बेंच से "आनुपातिकता के सिद्धांत" को लागू करने और "कम से कम आक्रामक" दृष्टिकोण अपनाने का आग्रह किया। धवन ने यह भी कहा कि कर्नाटक सरकार का आदेश झूठी नींव पर आधारित है, क्योंकि स्कूलों में हिजाब पर प्रतिबंध लगाने के लिए इसके द्वारा उद्धृत निर्णय अलग-अलग संदर्भों में पारित किए गए थे।

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    पीठ ने एक हस्तक्षेपकर्ता की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट आदित्य सोंधी को भी सुना। मामले पर यहां भी पढ़ें।

    कोर्ट रूम एक्सचेंज

    धवन ने मुख्य रूप से चार मुद्दे उठाए:

    (i) पहनावे का अधिकार फ्री स्पीच का हिस्सा है और सार्वजनिक व्यवस्था के लिए उचित प्रतिबंधों के अधीन है;

    (ii) निजता का सिद्धांत;

    (iii) आवश्यक अभ्यास परीक्षण;

    (iv) हिजाब पहनने वाले व्यक्ति के साथ धर्म और लिंग के आधार पर भेदभाव नहीं किया जा सकता है।

    धवन ने तर्क दिया कि यह अनुशासन का साधारण मामला नहीं है।

    "यह महत्वपूर्ण क्यों है, इसका कारण यह है कि जब मामले का फैसला किया गया था तब सुर्खियां यह नहीं थी कि ड्रेस कोड को बरकरार रखा गया, लेकिन हिजाब को हटा दिया गया।"

    ज‌स्टिस गुप्ता ने धवन से कहा, "हम उन पेपर्स पर नहीं जा सकते..।"

    सीनियर एडवोकेट ने जवाब दिया, "पेपर्स दर्शाते हैं कि क्या महत्वपूर्ण था।"

    यदि प्रै‌क्टिस वास्तविक है तो ईआरपी का प्रश्न प्रासंगिक नहीं: धवन

    धवन ने बिजॉए इमैनुअल फैसले का उल्लेख किया, जिसमें कहा गया था कि एक बार यह दिखाया गया हो कि एक प्रैक्टिस वास्तविक है तो यह अनुमेय है।

    उन्होंने कहा कि हाईकोर्ट का यह निष्कर्ष कि कुरान हिजाब नहीं पहनने के लिए कोई सजा निर्धारित नहीं करता है, इसलिए यह अनिवार्य नहीं है, "हैरान करने वाला" है। उन्होंने कहा कि कोर्ट के फैसले ने इस तथ्य को नजरअंदाज कर दिया कि लाखों महिलाएं हिजाब पहनती हैं।

    "विश्वास के सिद्धांतों के अनुसार, यदि किसी वस्तु का पालन किया जाता है, यदि यह वास्तविक है तो इसकी अनुमति है, आपको पाठ को पलटने की आवश्यकता नहीं है।"

    धवन ने कहा, "हमें यह जांचना होगा कि क्या यह प्रैक्टिस प्रचलित और वास्तविक है ... विवाद क्या है, क्या यह एक आवश्यक प्रथा है। यदि पूरे भारत में हिजाब पहना जाता है तो माननीय को केवल यह देखना होगा कि क्या यह एक वास्तविक प्रथा है।"

    उन्होंने कहा, "सार्वजनिक स्थानों पर चौतरफा हिजाब की अनुमति है। तो यह कहने का आधार क्या है कि हिजाब क्लास रूम में नहीं हो सकता है और सार्वजनिक व्यवस्था के खिलाफ है? जब आप कहते हैं कि आप स्कूल में बुर्का की अनुमति नहीं दे सकते, तो यह उचित है, क्योंकि आप चेहरा देखना चाहते हैं लेकिन स्कार्फ़ पर क्या आपत्ति हो उचित सकती है?"

    उन्होंने रतिलाल गांधी मामले पर भरोसा किया जहां सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यदि समुदाय का विश्वास निस्संदेह साबित होता है, तो एक धर्मनिरपेक्ष न्यायाधीश उस विश्वास को स्वीकार करने के लिए बाध्य है और उसे उस विश्वास पर निर्णय नहीं लेना है।

    धवन ने कहा, "अगर यह दिखाया जाता है कि कर्नाटक में हिजाब एक स्थापित प्रथा है, तो कोई बाहरी धर्मनिरपेक्ष प्राधिकरण यह नहीं कह सकता कि ऐसा नहीं है।"

    धवन ने कहा कि परीक्षण "आनुपातिकता" में से एक होना चाहिए और "कम से कम आक्रामक" दृष्टिकोण अपनाना चाहिए। मॉडर्न डेंटल कॉलेज मामले पर भरोसा रखा गया।

    उन्होंने प्रस्तुत किया कि कुछ राज्यों में उदाहरण के लिए केरल में एक दृष्टिकोण लिया गया है कि हिजाब फ़र्ज़ है।

    इस बिंदु पर जस्टिस गुप्ता ने पूछा, "इसे (हिजाब) फ़र्ज़ कहने का आधार क्या है?"

    धवन ने जवाब दिया कि केरल हाईकोर्ट ने अपने फैसले में हिजाब को एक अनिवार्य प्रथा मानते हुए कुरान की निषेधाज्ञा और हदीसों का हवाला देते हुए निष्कर्ष निकाला कि सिर को ढंकना और चेहरे के हिस्से को छोड़कर लंबी बाजू की पोशाक पहनना एक फ़र्ज़ है।

    धवन ने कहा कि उन्हें अदालतों से मौलवी होने की उम्मीद नहीं है, हालांकि, अगर पाठ की व्याख्या की जाए, तो पाठ का उत्तर यह है कि यह फ़र्ज़ है।

    उन्होंने कहा, "हालांकि मैं इतनी दूर नहीं जाता। यदि यह एक रिचुअल है जो प्रचलित है, और प्रामाणिक है तो माननीय इसकी अनुमति देंगे।"

    "पवित्र पुस्तक के जनादेश की परवाह किए बिना?" जस्टिस गुप्ता ने पूछा।

    धवन ने जवाब दिया, ''बशर्ते यह पवित्र पुस्तक के खिलाफ न हो। उस हद तक जांच हो सकती है।''


    हिजाब के खिलाफ कर्नाटक सरकार का आदेश झूठी नींव पर आधार‌ित: धवन

    धवन ने जुलाई 2021 के कर्नाटक सरकार के दिशानिर्देशों का हवाला देते हुए तर्क दिया कि उस समय पीयूसी में कोई यूनिफॉर्म अनिवार्य नहीं था और इस प्रकार, हिजाब की अनुमति थी। हालांकि, अचानक सितंबर में छात्रों को "परेशान" किया गया और उनके साथ "भेदभाव" किया गया।

    धवन ने बताया कि विवादित सरकारी आदेश, जिसमें हिजाब पहनने का अधिकार को बाहर किया गया है, हिजाब के खिलाफ केरल हाईकोर्ट के फैसले पर आधारित है, लेकिन यह समझने में विफल रहा है कि उक्त निर्णय एक कॉन्वेंट स्कूल के संदर्भ में दिया गया था।

    सरकारी आदेश बॉम्बे हाईकोर्ट के एक फैसले का भी उल्लेख करता है, लेकिन यह समझने में विफल रहता है कि यह "ऑल-गर्ल्स स्कूल" में हिजाब पहनने के अधिकार का मामला था।

    उन्होंने तर्क दिया, "सरकारी आदेश झूठी नींव पर खड़ा है... यह अनुच्छेद 14 और 15 का उल्लंघन करता है। संविधान में इस तरह के लक्ष्यीकरण की अनुमति नहीं है।"

    धवन ने कहा कि हिजाब को भारत समेत दुनिया भर में वैध माना जाता है। कर्नाटक सरकार द्वारा दिया गया एकमात्र औचित्य यह है कि स्कूल "योग्य सार्वजनिक स्थान" हैं।

    "यह अपने आप में कोई औचित्य नहीं है," उन्होंने कहा।

    उन्होंने कहा कि केंद्रीय विद्यालय हिजाब की अनुमति देते हैं। "इसका कोई औचित्य नहीं दिया गया है कि चौतरफा एकरूपता क्यों होनी चाहिए।"

    धवन ने अंत में केन्या हाईकोर्ट द्वारा मोहम्मद फुगिचा बनाम मेथोडिस्ट चर्च मामले में दिए एक फैसले का हवाला दिया, जिसने हिजाब को खत्म करने के केन्याई सरकार के प्रयास को खत्म कर दिया। उन्होंने कहा कि अंग्रेजी अदालतें भी स्कार्फ को विशेष रूप से अनुमति देती हैं।

    पृष्ठभूमि

    पीठ के समक्ष 23 याचिकाओं का एक बैच सूचीबद्ध किया गया है। उनमें से कुछ रिट याचिकाएं हैं, जिनमें मुस्लिम छात्राओं के लिए हिजाब पहनने के अधिकार की मांग की गई हैं। कुछ अन्य विशेष अनुमति याचिकाएं हैं जो कर्नाटक हाईकोर्ट के 15 मार्च के फैसले को चुनौती देती हैं।

    चीफ जस्टिस रितु राज अवस्थी, जस्टिस कृष्णा दीक्षित और जस्टिस जेएम खाजी की हाईकोर्ट की एक पूर्ण पीठ ने माना था कि महिलाओं द्वारा हिजाब पहनना इस्लाम की एक आवश्यक धार्मिक प्रथा नहीं है। पीठ ने कहा था कि शैक्षणिक संस्थानों में एक समान ड्रेस कोड का प्रावधान याचिकाकर्ताओं के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन नहीं है।

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