प्राथमिकी रद्द करना- मेरिट की विस्तृत जांच सीआरपीसी की धारा 482 के तहत जरूरी नहीं, सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया

LiveLaw News Network

4 Aug 2021 4:58 AM GMT

  • प्राथमिकी रद्द करना- मेरिट की विस्तृत जांच सीआरपीसी की धारा 482 के तहत जरूरी नहीं, सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया

    सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर कहा है कि आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 482 के तहत अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करते हुए आरोपों के गुण-दोषों (मेरिट) की विस्तृत जांच जरूरी नहीं है।

    न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति एमआर शाह की पीठ ने कहा कि आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 482 के तहत अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करते हुए, हाईकोर्ट को उस तरह से तथ्यों की जांच नहीं करनी चाहिए जिस तरह से निचली अदालत आपराधिक मुकदमे के दौरान सबूत पेश करने के बाद करती है।

    पीठ ने मध्य प्रदेश हाईकोर्ट द्वारा एक ब्लॉक चिकित्सा अधिकारी के खिलाफ आपराधिक मामला खारिज किये जाने के फैसले को निरस्त करते हुए कहा कि प्राथमिकी के एनसाइक्लापेडिया होने की उम्मीद नहीं की जाती है।

    इस मामले में, राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (एनआरएचएम) के प्रधान एवं जिला कलेक्टर द्वारा नियुक्त समिति द्वारा जननी मोबिलिटी एक्सप्रेस योजना के संचालन में वित्तीय अनियमितता पाये जाने पर एक प्रखंड चिकित्सा पदाधिकारी के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गयी थी। हाईकोर्ट ने आरोपी-अधिकारी द्वारा दायर याचिका को स्वीकार करते हुए कहा कि हालांकि वित्तीय अनियमितताओं से जुड़े मामलों में केवल अनुमान है और वित्तीय प्रस्ताव को मंजूरी देने वाले व्यक्ति पर सतर्क रहने का बोझ है, ऐसे में कर्तव्यों के पालन में कोई लापरवाही के कारण आपराधिक दायित्व तब तक नहीं होगा जब तक गैरकानूनी तरीके से विशेष लाभ मिलने का संकेत नहीं होता।

    अपील में, पीठ ने कहा कि काम के दौरान की गई अनियमितताओं के संबंध में विशिष्ट आरोप हैं।

    पीठ ने हाईकोर्ट के आदेश को रद्द करते हुए कहा,

    "इस स्तर पर, हाईकोर्ट को उस तरीके से तथ्यों की जांच नहीं करनी चाहिए जिस तरह से सबूत पेश किए जाने के बाद ट्रायल कोर्ट आपराधिक मुकदमे के दौरान करेगा। ऐसा करते हुए हाईकोर्ट ने अच्छी तरह से सीआरपीसी की धारा 482 के तहत प्राप्त अधिकार क्षेत्र के इस्तेमाल के लिए तय की गयी सीमा पार कर ली है। आरोपों के गुण-दोषों की विस्तृत जांच की आवश्यकता नहीं थी। प्राथमिकी के एक एनसाइक्लोपेडिया होने की उम्मीद नहीं की जाती है, विशेष रूप से किसी सार्वजनिक योजना के अनुपालन करते वक्त हुई वित्तीय अनियमितताओं से जुड़े मामले में। जांच के बाद, सीआरपीसी की धारा 173 के तहत एक अंतिम रिपोर्ट प्रस्तुत की जा चुकी है।"

    केस : मध्य प्रदेश सरकार बनाम कुंवर सिंह, क्रिमिनल अपील 709 / 2021

    कोरम : न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति एम आर शाह

    वकील : एडवोकेट प्रणीत प्रणव, वरुण राघवन

    साइटेशन : एलएल 2021 एससी 344

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