पीयूसीएल पहुंची सुप्रीम कोर्ट, विकास दुबे एनकाउंटर की एसआईटी जांच और मुठभेड़ों और उनके राजनीतिक नेक्सस की न्यायिक जांच करवाने की मांग

LiveLaw News Network

11 July 2020 11:12 AM GMT

  • पीयूसीएल पहुंची सुप्रीम कोर्ट, विकास दुबे एनकाउंटर की एसआईटी जांच और मुठभेड़ों और उनके राजनीतिक नेक्सस की न्यायिक जांच करवाने की मांग

    याचिका में कहा गया है कि मुठभेड़ के मामले में पुलिस द्वारा दिए गए बयान या विवरण पर ‘‘कई गंभीर सवाल’’ उठ रहे हैं।

    पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (पीयूसीएल) ने सुप्रीम कोर्ट में एक आवेदन दायर कर अपनी चिंता व्यक्त करते हुए कहा है कि सबको ''चैंकाने वाले'' विकास दुबे इनकाउंटर मामले के मद्देनजर ''कानून के नियम'' कमजोर हो रहे हैं।

    कोर्ट के समक्ष एक आवेदन दायर कर मांग की गई है कि कानपुर के गैंगस्टर विकास दुबे और उसके सहयोगी अमर दुबे और प्रभात मिश्रा की कथित पुलिस मुठभेड़ की जांच के लिए एक विशेष जांच दल (एसआईटी) का गठन किया जाए।

    वर्ष 2018 में संगठन ने एक आपराधिक रिट याचिका दायर की थी। जिसमें मांग की गई थी कि पिछले कुछ वर्षो में पुलिस द्वारा किए गए हजारों एनकाउंटर की जांच सीबीआई या एसआईटी से करवाई जाए। उसी मामले में यह आवेदन भी दायर किया गया है।

    यह भी आग्रह किया गया है कि जांच ऐसे ईमानदार पुलिस अधिकारियों से करवाई जानी चाहिए, जिन्होंने उत्तर प्रदेश राज्य में सेवा न दी हों।

    याचिकाकर्ता का कहना है कि '

    'पुलिस मुठभेड़/प्रशासनिक परिसमापन एक गंभीर अपराध - हत्या/ गैर इरादतन हत्या है ,जो पूरे समाज के खिलाफ एक अपराध है। यदि ऐसा अपराध राज्य के समर्थन में किया जाता है या जहां राज्य इस तरह का अपराध करता है, तो यह बहुत गंभीर मामला है। जो संविधान के अनुसार बनाए गए सभी कानून के नियमों और शासन पर सवाल उठाता है।''

    इस प्रकार मुख्य याचिका में पीयूसीएल ने प्रार्थना की थी कि सुप्रीम कोर्ट के एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली एक निगरानी समिति बनाई जाए। जो उन सभी अधिकारियों/ व्यक्तियों द्वारा निभाई गई भूमिका की जांच करें,जिन्होंने अपने कानूनी कर्तव्यों और जिम्मेदारियों का पालन न करते हुए इन मुठभेड़ हत्याओं का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से समर्थन किया है।

    जहां तक विकास दुबे एनकाउंटर का सवाल है तो याचिकाकर्ता ने कहा है कि इस मुठभेड़ के मामले में पुलिस द्वारा दिए गए बयान या विवरण पर कई गंभीर सवाल उठ रहे हैं। विशेष रूप से, क्या वे ''सरल प्रशासनिक परिसमापन'' हैं।

    इसलिए उन्होंने अदालत से प्रार्थना की है कि उत्तर प्रदेश राज्य में होने वाली मुठभेड़ों और राज्य में प्रचलित आपराधिक- राजनीतिक सांठगांठ की जांच करने के लिए सुप्रीम कोर्ट के एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश की अध्यक्षता में एक समिति गठित की जाए।

    अधिवक्ता अपर्णा भट के माध्यम से यह आवेदन दायर किया गया है और वरिष्ठ अधिवक्ता संजय पारिख इस पर दलीलें या तर्क पेश करेंगे।

    दुबे को 9 जुलाई को एमपी के उज्जैन से गिरफ्तार किया गया था और यूपी पुलिस के एक काफिले द्वारा उसे कानपुर लाया जा रहा था। उसे 3 जुलाई को हुई आठ पुलिसकर्मियों की हत्या के मामले में गिरफ्तार किया गया था। कथित तौर पर दुबे जिस वाहन में बैठा था, वह फिसलकर पलट गया था। जिसके बाद दुबे ने भागने का प्रयास किया और क्रॉस-फायरिंग में वह मारा गया।

    एनकाउंटर से एक दिन पहले ही सुप्रीम कोर्ट के समक्ष एक याचिका दायर की गई थी। जिसमें इस बात का संकेत दिया गया था कि यूपी पुलिस द्वारा दुबे को ''मारे दिए जाने'' की संभावना है।

    याचिका में कहा गया था कि ''... इस बात की पूरी संभावना है कि आरोपी विकास दुबे की कस्टडी उत्तर प्रदेश पुलिस को मिलने के बाद उसे भी अन्य सह-अभियुक्तों की तरह मार दिया जाएगा।''

    दुबे के मामले को सीबीआई को हस्तांतरित करने के अलावा इस याचिका में यह भी मांग की गई थी कि दुबे के सहयोगियों की ''हत्या/कथित मुठभेड़'' की भी गहन जांच करवाई जाए। यह सभी कथित रूप से आठ पुलिसकर्मियों की हत्या में शामिल थे।

    इसके अलावा इलाहाबाद हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के पास भी दो पत्र याचिकाएं भेजी गई हैं,जिनमें घटना की सीबीआई/ एसआईटी जांच और एक स्वतंत्र न्यायिक जाँच की मांग की गई है।

    आवेदन की प्रति डाउनलोड करें



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