प्रोफेसर अली खान महमूदाबाद ने ज़मानत की शर्त के तहत जमा पासपोर्ट की रिहाई मांगी; सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई 18 नवंबर तक टाली

Praveen Mishra

27 Oct 2025 11:04 PM IST

  • प्रोफेसर अली खान महमूदाबाद ने ज़मानत की शर्त के तहत जमा पासपोर्ट की रिहाई मांगी; सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई 18 नवंबर तक टाली

    अशोका विश्वविद्यालय के प्रोफेसर अली खान महमूदाबाद, जिनके खिलाफ हरियाणा पुलिस ने 'ऑपरेशन सिंदूर' से संबंधित सोशल मीडिया पोस्ट्स को लेकर मामला दर्ज किया है, ने आज सुप्रीम कोर्ट में अपने पासपोर्ट की रिहाई के लिए अर्जी दायर की।

    यह मामला जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की खंडपीठ के समक्ष सूचीबद्ध था। वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने महमूदाबाद की ओर से पेश होकर राहत मांगी, क्योंकि उन्हें ज़मानत की शर्त के रूप में पासपोर्ट जमा करने का निर्देश दिया गया था। हालांकि, पीठ ने सुनवाई 18 नवंबर तक स्थगित कर दी।

    सिब्बल ने कहा, “इस बीच पासपोर्ट उन्हें लौटा दिया जाए। मुझे समझ नहीं आता पासपोर्ट क्यों रखा गया है…” इस पर हरियाणा की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एस.वी. राजू ने जवाब दिया कि “अगर वे विदेश जाना चाहते हैं, तो अपनी यात्रा योजना (itinerary) दे सकते हैं।” एएसजी ने स्पष्ट किया कि पासपोर्ट ज़मानत की शर्त के तहत जमा किया गया था, लेकिन उन्हें विदेश यात्रा से कोई आपत्ति नहीं होगी। इस पर सिब्बल ने कहा, “अगर आपत्ति नहीं है, तो पासपोर्ट वापस दे दीजिए।”

    जस्टिस सूर्यकांत ने सिब्बल से कहा, “आप कल ही तो नहीं जा रहे हैं,” यह संकेत देते हुए कि मामला किसी गैर-मिसलेनियस दिन पर सूचीबद्ध किया जाएगा।

    मामले की पृष्ठभूमि:

    21 मई को सुप्रीम कोर्ट ने महमूदाबाद को अंतरिम ज़मानत दी थी और हरियाणा के डीजीपी को निर्देश दिया था कि एक विशेष जांच दल (SIT) गठित की जाए ताकि सोशल मीडिया पोस्ट्स में प्रयुक्त भाषा और अभिव्यक्तियों की समग्र रूप से जांच की जा सके।

    25 अगस्त को हरियाणा पुलिस ने कोर्ट को बताया था कि एक एफआईआर में क्लोजर रिपोर्ट दाखिल कर दी गई है, जबकि दूसरी एफआईआर में चार्जशीट दायर की गई है। इस पर कोर्ट ने वह एफआईआर रद्द कर दी जिसमें क्लोजर रिपोर्ट दाखिल हुई थी और दूसरी एफआईआर में मजिस्ट्रेट को चार्जशीट पर संज्ञान लेने से रोका।

    सुनवाई के दौरान कपिल सिब्बल ने हरियाणा पुलिस द्वारा भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 152 (जो पुराने राजद्रोह कानून का स्थान लेती है) लगाने का विरोध किया, यह कहते हुए कि इस प्रावधान की संवैधानिक वैधता पर चुनौती पहले से ही सुप्रीम कोर्ट में लंबित है।

    महमूदाबाद पर भारतीय न्याय संहिता की धारा 196, 152 आदि के तहत आरोप हैं — जिनमें साम्प्रदायिक सौहार्द भंग करने वाले कार्य, असामंजस्य फैलाने वाले वक्तव्य, राष्ट्रीय संप्रभुता को खतरे में डालने वाले कार्य और महिला की मर्यादा का अपमान करने वाले शब्द/इशारे शामिल हैं।

    उन्हें 18 मई को हरियाणा पुलिस ने सोशल मीडिया पोस्ट्स के आधार पर गिरफ्तार किया था और 21 मई को सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें अंतरिम ज़मानत दी। उसी समय कोर्ट ने जांच रोकने से इनकार किया और हरियाणा डीजीपी को निर्देश दिया कि SIT में हरियाणा या दिल्ली से बाहर के वरिष्ठ आईपीएस अधिकारियों को शामिल किया जाए।

    ज़मानत की शर्तों में महमूदाबाद को निर्देश दिया गया था कि वे सोशल मीडिया पोस्ट्स या भारत में हुए आतंकी हमले अथवा भारत की प्रतिक्रिया पर कोई टिप्पणी या लेख न लिखें। उन्हें जांच में सहयोग करने और पासपोर्ट जमा करने का आदेश दिया गया।

    जब महमूदाबाद की ओर से यह आशंका जताई गई कि उसी मुद्दे पर नई एफआईआर दर्ज की जा सकती है, तो न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने हरियाणा सरकार को मौखिक रूप से ऐसा न करने के लिए कहा। हालांकि, उन्होंने महमूदाबाद की सोशल मीडिया पोस्ट्स को लेकर आपत्ति भी जताई और छात्रों एवं शिक्षकों द्वारा गिरफ्तारी की आलोचना करने पर नाराजगी व्यक्त की।

    बाद में जब यह चिंता जताई गई कि SIT अपनी जांच का दायरा बढ़ा रही है, तो सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि जांच केवल दो एफआईआर तक सीमित रहेगी। SIT को महमूदाबाद के डिजिटल उपकरणों की जांच करने से भी मना किया गया।

    कोर्ट ने यह भी कहा था कि ज़मानत की शर्तों में ढील देने की मांग अभी नहीं मानी जाएगी और 'कूलिंग-ऑफ पीरियड' आवश्यक है।

    16 जुलाई को कोर्ट ने पूछा कि हरियाणा पुलिस की SIT “खुद को क्यों गुमराह कर रही है”? कोर्ट ने कहा कि SIT को केवल दो सोशल मीडिया पोस्ट्स की जांच करनी थी, लेकिन वह उससे आगे जा रही है। सिब्बल ने कहा था कि SIT ने उनके उपकरण जब्त कर लिए हैं और पिछले दस वर्षों की विदेश यात्राओं के बारे में पूछताछ कर रही है।

    कोर्ट ने कहा, “आपको उनकी ज़रूरत नहीं, आपको शब्दकोश की ज़रूरत है,” यह टिप्पणी करते हुए निर्देश दिया कि महमूदाबाद को दोबारा तलब न किया जाए। साथ ही SIT को चार सप्ताह में जांच पूरी करने को कहा।

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