मध्यस्थता अधिनियम की धारा 34 के तहत आवेदन को आईबीसी 14 के तहत मोहलत द्वारा कवर किया गया है : सुप्रीम कोर्ट

LiveLaw News Network

3 March 2021 4:38 AM GMT

  • मध्यस्थता अधिनियम की धारा 34 के तहत आवेदन को आईबीसी 14 के तहत मोहलत द्वारा कवर किया गया है : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि एक अवार्ड को रद्द करने के लिए मध्यस्थता और सुलह अधिनियम की धारा 34 के तहत एक आवेदन इन्सॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड की धारा 14 के तहत मोहलत द्वारा कवर किया गया है।

    धारा 34 की कार्यवाही कॉरपोरेट देनदार के खिलाफ अदालत में एक मध्यस्थ अवार्ड के लिए चुनौती से संबंधित कार्यवाही है और इसे उसी तरह से कवर किया जाएगा जिस तरह एक सूट से निकली डिक्री में अपीलीय कार्यवाही को कवर किया जाएगा, न्यायमूर्ति नरीमन की अध्यक्षता वाली पीठ ने पी मोहनराज और अन्य बनाम एम / एस शाह ब्रदर्स इस्पात लिमिटेड के फैसले में टिप्पणी की।

    अदालत ने पावर ग्रिड कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड बनाम ज्योति स्ट्रक्चर्स लिमिटेड (2018) 246 डीएलटी 485 में दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले पर भरोसा करते हुए एक दलील को संबोधित किया, जिसमें यह कहा गया था कि अवार्ड को रद्द करने के लिए धारा 34 के तहत आवेदन को आईबीसी की धारा 14 द्वारा कवर नहीं किया जाएगा।

    धारा 14 (1) (क) फैसला लेने वाले प्राधिकरण को मोहलत की घोषणा के लिए निम्नलिखित सभी को प्रतिबंधित करने की शक्ति देता है , अर्थात्- ( ए) सूट की संस्था या किसी भी निर्णय के निष्पादन के लिए कॉरपोरेट देनदार के खिलाफ लंबित मुकदमे या कार्यवाही जारी रखने जिसमें किसी भी अदालत , डिक्री, न्यायाधिकरण, मध्यस्थता पैनल या अन्य प्राधिकरण का आदेश शामिल है।

    उच्च न्यायालय के अनुसार, धारा 34 आईबीसी के तहत धारा 34 आवेदन कवर नहीं होने के कारण निम्नलिखित हैं:

    (ए) "कार्यवाही" का मतलब "सभी कार्यवाही" नहीं है;

    (बी) कोड की धारा 14 (1) (ए) के तहत मोहलत का कॉरपोरेट ऋणदाता की परिसंपत्तियों के खिलाफ ऋण वसूली कार्यवाही पर रोक लगाने का इरादा है;

    (सी ) मध्यस्थता अधिनियम की धारा 34 के तहत कार्यवाही जारी रखना, जिसके परिणामस्वरूप कॉरपोरेट देनदार की संपत्ति को खतरे में डालने, कम करने, विघटित या प्रतिकूल रूप से प्रभावित ना किया जाए, धारा 14 (1) (क) के तहत निषिद्ध नहीं है;

    (डी ) "सहित" शब्द "कार्यवाही" की सीम और दायरे के लिए स्पष्ट है;

    (ई) "कार्यवाही" शब्द उस कार्यवाही की प्रकृति तक ही सीमित रहेगा जो इसके बाद है यानी कॉरपोरेट देनदार की संपत्ति के खिलाफ ऋण वसूली कार्यवाही;

    (एफ ) धारा 14 (1) (ए) के अनुसार "कॉरपोरेट देनदार के खिलाफ" संकीर्ण शब्द का उपयोग से अलग धारा के 33 (5) में इस्तेमाल "कॉरपोरेट देनदार के खिलाफ या उसके विपरीत" शब्द से स्पष्ट है कि धारा 14 (1) (ए) का उद्देश्य प्रतिबंधात्मक अर्थ और प्रयोज्यता है;

    (जी ) मध्यस्थता अधिनियम, धारा 34 (यानी अवार्ड पर आपत्तियां) और धारा 36 के तहत कार्यवाही के बीच अंतर को रेखांकित करता है (यानी अवार्ड की प्रवर्तनीयता और निष्पादन)। धारा 34 के तहत कार्यवाही एक अवार्ड के निष्पादन से पहले एक कदम है। धारा 34 के तहत आपत्तियों के निर्धारण के बाद ही, पार्टी इस तरह के अवार्ड को निष्पादित करने के लिए एक कदम आगे बढ़ सकती है और अगर कंपनी कॉरपोरेट देनदार के खिलाफ आपत्तियों का निपटारा करती है, तो कॉरपोरेट देनदार के खिलाफ इसकी प्रवर्तनीयता को निश्चित रूप से धारा 14 (1) (ए) की मोहलत द्वारा कवर किया जाएगा।

    ( एच ) इन कार्यवाहियों के जारी रहने से अधिनियम की धारा 34 के तहत मुद्दों के निर्धारण के लिए पार्टी के अधिकारों को कोई नुकसान नहीं होगा और कोड के उद्देश्य को पराजित करने के बजाए इसे संरक्षित किया जाएगा।

    उच्च न्यायालय के फैसले से असहमत, सर्वोच्च न्यायालय ने कहा :

    "यह निर्णय कानून को सही ढंग से वर्णित नहीं करता है क्योंकि यह स्पष्ट है कि धारा 34 की कार्यवाही निश्चित रूप से कॉरपोरेट देनदार के खिलाफ कार्यवाही है जिसके परिणामस्वरूप कॉरपोरेट देनदार के खिलाफ एक मध्यस्थ अवार्ड दिया जा सकता है, जिसके परिणामस्वरूप, तब पैसा कॉरपोरेट देनदार द्वारा देय होगा। धारा 34 की कार्यवाही कॉरपोरेट देनदार के खिलाफ एक अदालत में एक मध्यस्थ अवार्ड के लिए चुनौती से संबंधित एक कार्यवाही है और इसे एक सूट से निकली डिक्री में अपीलीय कार्यवाही के रूप में ही कवर किया जाएगा। निर्णय, इसलिए, कानून को सही ढंग से नहीं बताता है।"

    न्यायालय ने ये टिप्पणी यह तय करते हुए की कि कॉरपोरेट देनदार के खिलाफ चेक डिसऑनर के लिए एनआई अधिनियम की धारा 138 के तहत कार्यवाही को दिवाला और दिवालियापन संहिता के तहत घोषित मोहलत अवधि के दौरान रोक दिया जाएगा।

    न्यायालय ने कहा कि एनआई अधिनियम की धारा 138 एक 'अर्ध-आपराधिक' था जो एक सिविल उपाय को लागू करने के लिए आगे बढ़ रहा था।

    केस : पी मोहनराज और अन्य बनाम मैसर्स शाह ब्रदर्स इस्पात लिमिटेड और जुड़े मामले

    पीठ : जस्टिस आरएफ नरीमन, जस्टिस नवीन सिन्हा और जस्टिस केएम जोसेफ

    वकील : याचिकाकर्ताओं के लिए वरिष्ठ अधिवक्ता जयंत मुथु राज, जयंत मेहता, एस नागमुथु; एएसजी अमन लेखी भारत संघ के लिए

    उद्धरण: LL 2021 SC 120

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