सुप्रीम कोर्ट ने पिस्तौल से हमला करने वाले की हत्या के मामले में आरोपी को बरी किया
Praveen Mishra
11 Sept 2025 4:36 PM IST

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में उत्तराखंड के एक डॉक्टर की सजा और उम्रकैद को रद्द कर दिया, जिसे एक व्यक्ति की गोली मारकर हत्या करने के आरोप में दोषी ठहराया गया था। कोर्ट ने डॉक्टर की आत्मरक्षा की दलील को स्वीकार कर लिया।
जस्टिस एम.एम. सुनेद्रेश और जस्टिस एन. कोटिश्वर की खंडपीठ ने दरशन सिंह बनाम पंजाब राज्य मामले में तय किए गए 10 सिद्धांतों का हवाला दिया और कहा कि आत्मरक्षा के अधिकार को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता और इसे “सोने की तराजू” में नहीं तौला जा सकता।
कोर्ट ने कहा कि जब कोई व्यक्ति आरोपी के पास पिस्तौल लेकर जाता है और उसके सिर पर गोली चलाता है, जिससे उसे चोट लगती है, तो ऐसे हालात में आरोपी से यह उम्मीद नहीं की जा सकती कि वह शांत दिमाग से सोचकर आत्मरक्षा करेगा।
पूरा मामला:
डॉक्टर राकेश दत्त शर्मा और मृतक के बीच पैसों का विवाद था। मृतक उसके क्लिनिक में पिस्तौल लेकर गया और उस पर गोली चला दी। शर्मा ने पिस्तौल छीनकर मृतक को गोली मार दी। मृतक की मौत के बाद उसके खिलाफ दर्ज एफआईआर बंद कर दी गई और शर्मा पर मुकदमा चलाया गया।
ट्रायल कोर्ट ने शर्मा को धारा 304 भाग-1 आईपीसी के तहत दोषी मानते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई। उत्तराखंड हाईकोर्ट ने भी इसे बरकरार रखा।
राज्य की ओर से दलील दी गई कि शर्मा ने आत्मरक्षा की सीमा पार कर दी थी क्योंकि उसने मृतक के शरीर के महत्वपूर्ण हिस्सों पर गोली चलाई।
लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आत्मरक्षा का अधिकार तभी लागू होता है जब व्यक्ति को अचानक गंभीर खतरे का सामना करना पड़े और इसका आकलन एक सामान्य समझ वाले व्यक्ति के दृष्टिकोण से किया जाना चाहिए।
कोर्ट ने दरशन सिंह केस से आत्मरक्षा के ये सिद्धांत दोहराए –
1. आत्मरक्षा मानव की मूल प्रवृत्ति है और कानून इसे मान्यता देता है।
2. यह अधिकार तभी लागू होता है जब खतरा अचानक हो, न कि जब व्यक्ति खुद खतरा पैदा करे।
3. खतरे की आशंका पर्याप्त है, अपराध होना जरूरी नहीं।
4. यह अधिकार तब तक जारी रहता है जब तक खतरे की आशंका बनी रहे।
5. हमले में फंसे व्यक्ति से सटीक बचाव की उम्मीद नहीं की जा सकती।
6. प्रयोग किया गया बल सुरक्षा के लिए आवश्यक सीमा से बहुत अधिक नहीं होना चाहिए।
7. अगर सबूतों से आत्मरक्षा का मामला बनता है तो अदालत इसे मान सकती है, भले ही आरोपी ने खासतौर पर यह दलील न दी हो।
8. आरोपी को आत्मरक्षा का अधिकार “संदेह से परे” साबित करने की जरूरत नहीं।
9. यह अधिकार केवल अवैध या अपराध माने जाने वाले कृत्यों के खिलाफ मिलता है।
10. यदि जान या गंभीर चोट का खतरा हो तो आरोपी आत्मरक्षा में हमलावर की हत्या तक कर सकता है।
इन सिद्धांतों को लागू करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने माना कि शर्मा का कृत्य आत्मरक्षा के दायरे में आता है। ट्रायल कोर्ट और हाईकोर्ट ने गलती से उसे दोषी ठहराया था। इसलिए शर्मा को बरी कर दिया गया।

