NALSA कार्यक्रम में बोले PM Modi- 'तकनीक बदल सकती है व्यवस्था, अगर उसका फोकस जनता पर हो'

Praveen Mishra

8 Nov 2025 8:03 PM IST

  • NALSA कार्यक्रम में बोले PM Modi- तकनीक बदल सकती है व्यवस्था, अगर उसका फोकस जनता पर हो

    प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज “कानूनी सहायता सेवाओं को सशक्त बनाने” पर राष्ट्रीय सम्मेलन (National Conference on Strengthening Legal Aid Delivery Mechanisms) को संबोधित किया। यह दो दिवसीय कार्यक्रम राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (NALSA) द्वारा 8 और 9 नवंबर को लीगल सर्विसेज डे के उपलक्ष्य में आयोजित किया जा रहा है।

    कार्यक्रम में प्रधानमंत्री मोदी के साथ केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल, चीफ़ जस्टिस बी.आर. गवई, जस्टिस सूर्यकांत (कार्यकारी अध्यक्ष, NALSA) और जस्टिस विक्रम नाथ भी उपस्थित थे। सुप्रीम कोर्ट और दिल्ली हाईकोर्ट के जजों, सरकारी अधिकारियों, वकीलों और अन्य गणमान्य अतिथियों की मौजूदगी में प्रधानमंत्री ने “कम्युनिटी मेडिएशन ट्रेनिंग मॉड्यूल” (Community Mediation Training Module) लॉन्च किया।

    न्याय तक सबकी पहुंच — जस्टिस सूर्यकांत का संबोधन

    कार्यक्रम की शुरुआत जस्टिस सूर्यकांत के संबोधन से हुई, जिन्होंने कहा —

    “कानूनी सहायता (Legal Aid) संविधान के मूल्य को व्यावहारिक राहत में बदल देती है। यह ऐसा माध्यम है जिसके ज़रिए गरीब, वंचित और समाज के अदृश्य पीड़ित अपने अधिकारों को स्थापित कर सकते हैं और न्याय पा सकते हैं।”

    उन्होंने कहा कि सिर्फ तकनीक के भरोसे कानूनी सहायता को सशक्त नहीं किया जा सकता। इसे स्थानीय ज्ञान, भाषा और संवेदना के साथ जोड़ा जाना चाहिए।

    “तकनीक अवसर देती है, लेकिन पर्याप्त नहीं। इसे स्थानीय ज्ञान, भाषाई पहुंच और मानवीय सहानुभूति से मार्गदर्शित होना चाहिए।”

    कानून मंत्री अर्जुन मेघवाल का वक्तव्य

    केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने NALSA की तीन दशक लंबी कानूनी सहायता यात्रा की सराहना की। उन्होंने कहा कि कानूनी सहायता को नागरिक-केंद्रित सेवा के रूप में देखा जाना चाहिए।

    उन्होंने बताया कि 2015-16 में NALSA का बजट ₹68 करोड़ था, जबकि वर्तमान वित्त वर्ष में यह ₹400 करोड़ तक पहुंच गया है, जिसमें से ₹350 करोड़ जारी किए जा चुके हैं।

    मेघवाल ने बताया कि NALSA ने एसिड अटैक पीड़ितों, आपदा प्रभावितों, कैदियों, मानव तस्करी पीड़ितों, मानसिक रूप से अक्षम व्यक्तियों, आदिवासियों और बुजुर्गों के लिए विशेष योजनाएं चलाई हैं। उन्होंने कहा —

    “हमें प्रो-बोनो (Pro Bono) कल्चर को बढ़ावा देना होगा, ताकि समाज के प्रति संवेदनशील वकील अधिक से अधिक लोगों की मदद कर सकें।”

    चीफ़ जस्टिस बी.आर. गवई का संबोधन

    CJI गवई ने महात्मा गांधी के शब्दों को उद्धृत करते हुए कहा —

    “जब भी कोई निर्णय लेने में संदेह हो, तो सबसे गरीब और कमजोर व्यक्ति का चेहरा याद करें और सोचें कि आपका निर्णय उसके किसी काम आ पाएगा या नहीं।”

    उन्होंने कहा कि यही विचार कानूनी सहायता आंदोलन का सच्चा सार है।

    चीफ़ जस्टिस ने प्रधानमंत्री मोदी की उपस्थिति की सराहना करते हुए कहा —

    “प्रधानमंत्री की उपस्थिति यह दर्शाती है कि कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका — सभी की जिम्मेदारी है कि वे न्याय तक सबकी पहुंच सुनिश्चित करें।”

    CJI गवई ने कहा कि कानूनी सहायता की असली सफलता आँकड़ों में नहीं, बल्कि उस आभार में झलकती है जो किसी जरूरतमंद नागरिक की आंखों में दिखाई देती है। उन्होंने मणिपुर के राहत शिविर का एक अनुभव साझा किया —

    “कुछ महीने पहले जब मैं मणिपुर के राहत शिविर गया, तो एक बुजुर्ग महिला हाथ जोड़कर बोली — 'बने रहो भैया'। उस क्षण मुझे एहसास हुआ कि न्याय की असली जीत आंकड़ों में नहीं, बल्कि नागरिकों के मन में उपजे विश्वास में है।”

    उन्होंने कहा —

    “न्याय की रोशनी समाज के हर अंतिम व्यक्ति तक पहुंचनी चाहिए। संविधान का सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय का वादा तभी पूरा होगा जब हर व्यक्ति यह महसूस करे कि न्याय व्यवस्था उसकी अपनी है।”

    प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संबोधन

    प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि जब न्याय हर व्यक्ति तक उसकी सामाजिक या आर्थिक पृष्ठभूमि देखे बिना पहुंचता है, तो वही सामाजिक न्याय (Social Justice) की असली नींव बनता है। उन्होंने बताया कि सरकार की “लीगल एड डिफेंस काउंसिल सिस्टम” के तहत पिछले तीन वर्षों में 8 लाख आपराधिक मामलों का निपटारा हुआ है।

    इसके साथ ही उन्होंने कहा कि जन विश्वास अधिनियम (Jan Vishwas Act) के तहत 3400 से अधिक अपराधों को अपराध श्रेणी (decriminalized) से बाहर किया गया है और BNS जैसे नए कानूनों के माध्यम से पुराने, अप्रासंगिक कानून समाप्त किए गए हैं।

    उन्होंने कहा —

    “सच्ची सेवा वही है जब हम उन लोगों को उम्मीद और सहारा देते हैं जिनके पास कोई प्रतिनिधित्व नहीं है।”

    प्रधानमंत्री ने कहा कि कम्युनिटी मेडिएशन (Community Mediation) से भारत की पुरानी परंपरा — चर्चा और सहमति से विवाद सुलझाने की — फिर जीवित होगी।

    तकनीक और न्याय पर प्रधानमंत्री के विचार

    प्रधानमंत्री मोदी ने चेतावनी दी कि तकनीक के दुष्परिणाम भी हो सकते हैं, लेकिन यदि यह जन-केंद्रित (pro-people) हो, तो यह लोकतंत्रीकरण का सशक्त उपकरण बन सकती है।

    “तकनीक निश्चित रूप से एक 'डिसरप्टिव फोर्स' है, लेकिन अगर इसका फोकस लोगों पर है, तो यह लोकतंत्र को मजबूत करने वाला साधन बन सकती है।”

    उन्होंने कहा कि जब तक गरीब अपने अधिकारों से परिचित नहीं होता और न्याय प्रणाली के डर से मुक्त नहीं होता, तब तक वह न्याय नहीं पा सकता।

    “इसलिए गरीबों, महिलाओं और बुजुर्गों में कानूनी जागरूकता बढ़ाना हमारी प्राथमिकता है।”

    प्रधानमंत्री ने सुप्रीम कोर्ट की उस पहल की भी सराहना की जिसमें 80,000 से अधिक फैसले 18 भारतीय भाषाओं में उपलब्ध कराए गए हैं।

    “मुझे विश्वास है कि यह प्रयास आगे चलकर हाईकोर्ट और ज़िला स्तर तक भी जारी रहेगा,” प्रधानमंत्री ने कहा।

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