केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट से तमिलनाडु राज्यपाल मामले का फैसला गलत घोषित करने की मांग की
Praveen Mishra
11 Sept 2025 3:35 PM IST

सुप्रीम कोर्ट में बिलों पर हस्ताक्षर (असेंट) से जुड़े मुद्दों पर चल रही राष्ट्रपति संदर्भ (Presidential Reference) की सुनवाई के आखिरी दिन, केंद्र सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट से आग्रह किया कि दो-जजों वाली तमिलनाडु जजमेंट को सही कानून न माना जाए। सुप्रीम कोर्ट ने 10 दिन की सुनवाई पूरी करने के बाद आज इस मामले पर अपना मत सुरक्षित रख लिया। इस संदर्भ में राष्ट्रपति द्वारा 14 प्रश्न उठाए गए थे, जिनमें यह भी शामिल है कि क्या बिलों पर हस्ताक्षर के लिए कोई समयसीमा तय की जा सकती है।
मेहता ने 2G मामले के संदर्भ का हवाला दिया और कहा कि भले ही कोर्ट अपनी परामर्शी (advisory) शक्ति का उपयोग करते हुए intra-court appeal की तरह काम नहीं कर रही, लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि कोर्ट पहले दिए गए फैसले को गलत घोषित नहीं कर सकती। उन्होंने कहा कि यह कोर्ट की inherent jurisdiction है।
कुछ राज्यों और अन्य पक्षों ने तर्क दिया था कि तमिलनाडु फैसले के जरिए ये मुद्दे पहले ही तय हो चुके हैं और Article 143 के तहत कोर्ट उन्हें नहीं बदल सकती। इस पर मेहता ने कहा कि "यह तर्क था कि आप तमिलनाडु फैसले के बारे में कुछ नहीं कर सकते। मैं फैसले की अंतिमता पर सवाल नहीं उठा रहा, लेकिन कोर्ट के पास यह अधिकार है कि वह कह सके कि वह फैसला सही कानून नहीं है।"
सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल (पश्चिम बंगाल की ओर से) ने इस पर आपत्ति जताई और कहा कि इस तरह का कोई प्रश्न राष्ट्रपति ने संदर्भ में नहीं भेजा है। मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई ने भी पूछा कि क्या इस बारे में कोई प्रश्न संदर्भ में शामिल है?
मेहता ने यह भी चेतावनी दी कि अगर तमिलनाडु फैसले की स्थिति को जस का तस मान लिया गया, तो अदालत को भविष्य में भारी मुकदमों का सामना करना पड़ेगा। उन्होंने कहा कि फैसले के मुताबिक अगर राष्ट्रपति तीन महीने और गवर्नर एक महीने में फैसला नहीं करते तो लोग सीधे कोर्ट में आ सकते हैं और कोर्ट से गवर्नर या राष्ट्रपति को असेंट देने का आदेश देने की मांग करेंगे। "क्या कोर्ट ऐसा कर सकती है? क्या कोर्ट राष्ट्रपति या गवर्नर को मजबूर कर सकती है कि वे असेंट दें या न दें?"
सुनवाई पांच-जजों वाली संविधान पीठ कर रही थी, जिसमें चीफ़ जस्टिस बी.आर. गवई, जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस पी.एस. नरसिम्हा और जस्टिस ए.एस. चंदुरकर शामिल थे।
यह संदर्भ राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने एक महीने पहले भेजा था, जब सुप्रीम कोर्ट की दो-जजों की खंडपीठ (जस्टिस जे.बी. पारदीवाला और जस्टिस आर. महादेवन) ने तमिलनाडु के 10 बिलों को "deemed assented" मान लिया था और कहा था कि गवर्नर ने जानबूझकर बिलों पर कार्रवाई टालते हुए उन्हें राष्ट्रपति के पास भेजा, जबकि विधानसभा ने उन्हें दोबारा पारित कर दिया था।

