सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु सरकार की याचिका स्थगित की, कहा– राष्ट्रपति संदर्भ के फैसले का इंतजार करें
Praveen Mishra
17 Oct 2025 6:06 PM IST

सुप्रीम कोर्ट ने तमिल नाडु सरकार द्वारा दायर रिट याचिका की सुनवाई शुक्रवार को स्थगित कर दी, जिसमें राज्य ने गवर्नर के 2025 के “कलाईनागर यूनिवर्सिटी बिल” और “स्पोर्ट्स यूनिवर्सिटी बिल” को राष्ट्रपति के विचारार्थ भेजने के निर्णय को चुनौती दी थी।
सुप्रीम कोर्ट ने सुझाव दिया कि राज्य राष्ट्रपति के संदर्भ पर निर्णय का इंतजार करे, जिसमें राष्ट्रपति और गवर्नर द्वारा संविधान के अनुच्छेद 200/201 के तहत बिलों को मंजूरी देने की समयसीमा तय करने का मुद्दा शामिल है।
चीफ़ जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस के. विनोद चंद्रन की खंडपीठ इस मामले की सुनवाई कर रही थी। सीजेआई गवई ने सीनियर एडवोकेट डॉ. एएम सिंहवी (जो राज्य की ओर से पेश थे) से कहा, “आपको केवल चार सप्ताह का इंतजार करना होगा, संदर्भ 21 नवंबर से पहले तय होना है।” ध्यान देने योग्य है कि सीजेआई 23 नवंबर को सेवानिवृत्त होंगे।
तमिल नाडु सरकार ने गवर्नर द्वारा दो बिलों को रोककर राष्ट्रपति को भेजे जाने के फैसले को चुनौती देते हुए यह रिट याचिका दायर की है। ये बिल हैं:
1. कलाईनागर यूनिवर्सिटी बिल, 2025 – इसे मंजूरी मिलने पर मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन विश्वविद्यालय के पहले उपकुलपति बनेंगे।
2. स्पोर्ट्स यूनिवर्सिटी बिल – यह राज्य सरकार को स्पोर्ट्स यूनिवर्सिटी के उपकुलपतियों को नियुक्त या हटाने का अधिकार देगा।
सीनियर एडवोकेट एएम सिंहवी और मुकुल रोहतगी तमिल नाडु सरकार की ओर से पेश हुए। सिंहवी ने कहा कि गवर्नर बिल की धाराओं को न्यायाधीश की तरह जज नहीं कर सकते और इसे 'विरोधाभासी' नहीं ठहरा सकते। रोहतगी ने कहा, “क्या गवर्नर हर क्लॉज की जाँच कर यह तय कर सकते हैं कि यह विरोधाभासी है?”
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने बताया कि 2015-2025 के बीच राज्यों के गवर्नरों ने राष्ट्रपति के समक्ष कुल 381 संदर्भ भेजे हैं। उन्होंने कहा कि अगर हर गवर्नर का संदर्भ कोर्ट में चुनौती दिया जाए, तो कोर्ट को इसके लिए अलग पीठें बनानी पड़ सकती हैं। उन्होंने यह भी कहा कि बिल के प्रावधानों की जाँच करना और संदर्भ भेजना गवर्नर का संवैधानिक कर्तव्य है।
यह याचिका तमिलनाडु सरकार की ओर से एओआर मिषा रोहतगी की सहायता से दायर की गई है। 11 सितंबर को 5-सदस्यीय पीठ ने राष्ट्रपति संदर्भ पर अपना निर्णय सुरक्षित रखा था, जो राष्ट्रपति द्वारा तब दिया गया था जब दो-सदस्यीय पीठ ने तमिल नाडु गवर्नर मामले में बिलों पर राष्ट्रपति और गवर्नर की समयसीमा तय की थी।

