राष्ट्रपति ने पूछा: क्या राज्य केंद्र सरकार के खिलाफ अनुच्छेद 32 के तहत याचिका दायर कर सकते हैं?

Shahadat

28 Aug 2025 1:49 PM IST

  • राष्ट्रपति ने पूछा: क्या राज्य केंद्र सरकार के खिलाफ अनुच्छेद 32 के तहत याचिका दायर कर सकते हैं?

    सॉलिसिटर जनरल (एसजी) तुषार मेहता ने गुरुवार (28 अगस्त) को सुप्रीम कोर्ट को बताया कि भारत के राष्ट्रपति संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत केंद्र सरकार के विरुद्ध राज्य सरकार द्वारा दायर रिट याचिका की सुनवाई योग्यता से संबंधित राष्ट्रपति संदर्भ में उठाए गए प्रश्नों पर ज़ोर देना चाहते हैं।

    इससे पहले, संविधान पीठ ने संदर्भ में उठाए गए इस मुद्दे का उत्तर देने से बचने का प्रस्ताव यह कहते हुए रखा था कि मूल मुद्दे भारत के संविधान के अनुच्छेद 200 और 201 के तहत राज्यपालों और राष्ट्रपति द्वारा विधेयकों को स्वीकृति प्रदान करने से संबंधित हैं। यह सुझाव देते हुए कि इस मुद्दे को भविष्य के किसी मामले में निर्णय के लिए खुला रखा जा सकता है, न्यायालय ने सॉलिसिटर जनरल से केंद्र से निर्देश प्राप्त करने को कहा था कि क्या इस मुद्दे को संदर्भ में उठाया गया।

    सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने गुरुवार को हुई सुनवाई के दौरान न्यायालय को बताया कि उन्हें इस मुद्दे पर उत्तर मांगने के निर्देश मिले हैं।

    उन्होंने कहा,

    "मैंने निर्देश प्राप्त कर लिए हैं। सभी प्रश्नों में से मुझे दो प्रश्नों पर निर्देश प्राप्त करने थे। 1. क्या अनुच्छेद 32/226 के तहत राज्य सरकार के आदेश पर रिट याचिका दायर की जा सकती है, और दूसरा, अनुच्छेद 361 का दायरा और उसकी सीमा। माननीय राष्ट्रपति महोदय आपकी राय जानना चाहेंगे। इसके कई कारण हैं। जब कोई स्थिति उत्पन्न हो जाती है या उत्पन्न होने की संभावना होती है, तब राय मांगी जाती है। ये वे आकस्मिकताएं हैं, जिन पर माननीय राष्ट्रपति न्यायालय की राय ले सकते हैं।"

    उन्होंने कहा कि यह एक ऐसा मुद्दा है, जो कई मामलों में बार-बार उठता रहता है।

    उन्होंने तर्क दिया कि राज्य सरकार कोई ऐसी इकाई नहीं है, जिसके पास मौलिक अधिकार हों। इसलिए अनुच्छेद 32, जिसका प्रयोग मौलिक अधिकारों की सुरक्षा के लिए किया जाता है, राज्य सरकार द्वारा लागू नहीं किया जा सकता। राज्य सरकार और केंद्र सरकार के बीच विवादों का निपटारा मूल मुकदमे में संविधान के अनुच्छेद 131 के तहत किया जाना चाहिए। सॉलिसिटर जनरल ने तर्क दिया कि अनुच्छेद 131, अनुच्छेद 32 के तहत राज्य की याचिका पर रोक लगाता है।

    सॉलिसिटर जनरल ने आगे दलील दी कि राज्य यह दावा करके ऐसी रिट याचिका दायर नहीं कर सकता कि वह लोगों के अधिकारों का भंडार है। एक इकाई के रूप में राज्य के पास कोई मौलिक अधिकार नहीं हैं और वह यह तर्क नहीं दे सकता कि वह मौलिक अधिकारों के उल्लंघन से व्यथित है।

    सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने यह भी तर्क दिया कि अनुच्छेद 226 के तहत राज्यपाल के खिलाफ रिट याचिका स्वीकार करने योग्य नहीं है। राज्यपाल के पद की प्रकृति और कार्यों के अनुसार, उनके खिलाफ परमादेश याचिका दायर नहीं की जा सकती।

    इस बिंदु पर न्यायालय ने पूछा कि क्या राज्यपाल को केंद्र सरकार के प्रतिनिधि के रूप में नहीं देखा जा सकता।

    चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) बीआर गवई ने कहा,

    "वह भारत सरकार का प्रतिनिधित्व कैसे नहीं कर सकते? यह भारत सरकार ही है, जो राज्यपाल को अधिकार सौंपती है। संविधान सभा की बहसों के अनुसार, राज्यपाल राज्यों और केंद्र के बीच महत्वपूर्ण कड़ी हैं।"

    एसजी ने उत्तर दिया कि राज्यपाल राज्य मंत्रिमंडल की सहायता और सलाह के अनुसार कार्य कर रहे हैं, न कि केंद्रीय मंत्रिमंडल की। हालांकि वह राष्ट्रपति के प्रति जवाबदेह हैं।

    एसजी ने कहा,

    "अधिकांश मामलों में राज्य सरकारें उपस्थित होकर राज्यपालों का बचाव करती हैं। संवैधानिक व्यवस्था के अनुसार, अनुच्छेद 154 कहता है कि राज्य की कार्यपालिका शक्तियां राज्यपाल में निहित हैं। अनुच्छेद 155 के अनुसार, राज्यपाल की नियुक्ति राष्ट्रपति के आदेश पर होती है। अनुच्छेद 131 के प्रयोजनों के लिए वह भारत संघ के समान नहीं है। यह केंद्र सरकार और राज्यों के बीच धन आदि के मुद्दों पर विवाद के लिए है।"

    इसलिए एसजी ने तर्क दिया कि राज्यपाल के साथ विवाद अनुच्छेद 131 के तहत भी नहीं लाया जा सकता।

    इन तर्कों के साथ एसजी ने अपनी दलीलें समाप्त कीं। आंध्र प्रदेश राज्य की ओर से सीनियर एडवोकेट सिद्धार्थ लूथरा ने कहा कि वह इस मुद्दे पर राज्य के रुख के बारे में निर्देश मांगेंगे, क्योंकि आंध्र प्रदेश सरकार ने अनुच्छेद 32 के तहत याचिकाएं दायर की हैं, जो वर्तमान में लंबित हैं।

    पिछले सप्ताह, सीजेआई बीआर गवई, जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस एएस चंदुरकर की पीठ ने इस महत्वपूर्ण मुद्दे पर केंद्र और राज्यों की दलीलों पर सुनवाई पूरी कर ली थी कि क्या न्यायालय राष्ट्रपति और राज्यपाल के लिए विधेयकों पर निर्णय लेने हेतु समय-सीमा निर्धारित कर सकता है।

    पीठ अब उन राज्यों की दलीलें सुन रही है, जो संदर्भ का विरोध कर रहे हैं।

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