भ्रष्टाचार के सभी मामलों में एफआईआर दर्ज करने से पहले प्रारंभिक जांच करना अनिवार्य नहीं : सुप्रीम कोर्ट

LiveLaw News Network

7 Dec 2019 3:45 AM GMT

  • भ्रष्टाचार के सभी मामलों में एफआईआर दर्ज करने से पहले प्रारंभिक जांच करना अनिवार्य नहीं : सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि सभी भ्रष्टाचार के मामलों में प्रथम सूचना रिपोर्ट (एफआईआर) दर्ज करने से पहले प्रारंभिक जांच करना अनिवार्य नहीं है।

    न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता की पीठ हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ राज्य की अपील पर विचार कर रही थी, जिसमें एक पुलिस अधिकारी के खिलाफ आपराधिक कार्रवाई को रद्द कर दिया गया था, जिसके पास आय के अपने ज्ञात स्रोतों के अनुपातहीन कथित रूप से रु 3,18,61,500 की संपत्ति होने का आरोप था।

    तेलंगाना राज्य बनाम श्री मनगीपेट @ मंगिपेट सर्वेश्वर रेड्डी मामलेे पर सुनवाई के दौरान ललिता कुमारी बनाम उत्तर प्रदेश सरकार मामले पर भरोसा करते हुए शीर्ष न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किया गया कि एक अपराध के पंजीकरण से पहले एक प्रारंभिक जांच अनिवार्य है।

    उक्त निर्णय का उल्लेख करते हुए पीठ ने कहा,

    "यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि इस न्यायालय ने यह नहीं माना है कि सभी मामलों में प्रारंभिक जांच जरूरी है। वैवाहिक विवादों / पारिवारिक मतभेदों, वाणिज्यिक अपराधों, चिकित्सा लापरवाही मामलों, भ्रष्टाचार मामलों आदि के संबंध में प्रारंभिक जांच की जा सकती है। ललिता कुमारी के मामले में यह अदालत यह नहीं कहती है कि प्रारंभिक जांच किए बिना एक आरोपी के खिलाफ कार्यवाही शुरू नहीं की जा सकती। "

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    "प्राथमिकी दर्ज करने से पहले एक प्रारंभिक जांच का दायरा और सीमा प्रत्येक मामले के तथ्यों पर निर्भर करेगी। कोई निर्धारित प्रारूप या तरीका नहीं है जिसमें किसी मामले की प्रारंभिक जांच की जानी है। उसका उद्देश्य केवल यह सुनिश्चित करना है कि एक छोटी और अस्थिर शिकायत पर आपराधिक जांच प्रक्रिया शुरू न की जाए। ललिता कुमारी मामले में इसी का परीक्षण किया गया।"

    इसमें कहा गया है कि प्रारंभिक जांच का उद्देश्य पूरी तरह निष्पक्ष और निष्पक्ष रूप से कार्य करने की अभिपुष्टि के लिए प्रेरित शिकायतों की स्क्रीनिंग करना है। लेकिन इस मामले में, पीठ ने देखा, प्राथमिकी से ही पता चलता है कि एकत्र की गई जानकारी अभियुक्त अधिकारी की अनुपातहीन संपत्ति के संबंध में है।

    पीठ ने यह कहा,

    "इसलिए एफआईआर दर्ज करने वाला अधिकारी इस तरह के खुलासे से संतुष्ट है तो वह किसी भी जांच के बिना या उसके द्वारा प्राप्त विश्वसनीय जानकारी के आधार पर भी अभियुक्त के खिलाफ कार्रवाई में आगे बढ़ सकता है। यह नहीं कहा जा सकता है कि एफआईआर केवल इस कारण से खारिज करने योग्य है, क्योंकि इस मामले की प्रारंभिक जांच नहीं की गई थी। ऐसा केवल तभी किया जा सकता है, जब किसी एफआईआर को पूरी तरह से पढ़ने के बाद किसी अपराध का खुलासा नहीं किया जाता।"

    पीठ ने आगे स्पष्ट किया,

    "इसलिए, हम मानते हैं कि ललिता कुमारी मामले में प्रारंभिक जांच सभी भ्रष्टाचार के मामलों में अनिवार्य रूप से संचालित करने की आवश्यकता नहीं है। इस न्यायालय द्वारा कई उदाहरणों में यह दोहराया गया है कि किस प्रकार की प्रारंभिक जांच की जानी है, यह प्रत्येक मामले के तथ्यों और परिस्थितियों पर निर्भर करेगा। ऐसे कोई निश्चित पैरामीटर नहीं हैं, जिन पर इस तरह की जांच की जा सके। इसलिए, एफआईआर दर्ज करने वाले व्यक्ति की संतुष्टि के लिए एक संज्ञेय अपराध का खुलासा करने वाली औपचारिक और अनौपचारिक जानकारी पर्याप्त है।"

    आदेश की प्रति डाउनलोड करने के लिए यहांं क्लिक करेंं




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