सुप्रीम कोर्ट ने कहा, प‌ीड़िता को यौन संबंधों की आदत होना, रेप के आरोप में बचाव का वैध आधार नहीं

LiveLaw News Network

6 Dec 2019 7:45 AM GMT

  • सुप्रीम कोर्ट ने कहा, प‌ीड़िता को यौन संबंधों की आदत होना, रेप के आरोप में बचाव का वैध आधार नहीं

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि बलात्कार की शिकार महिला को सेक्स की आदत है, तो भी ये तथ्य बलात्कार के कृत्य के ‌लिए वैध बचाव नहीं हो सकता है।

    मामले में रिजवान पर एक नाबालिग लड़की से बलात्कार का आरोप था। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने आरोपी द्वारा दायर जमानत याचिका को अनुमति देने के लिए उस मेडिकल जांच रिपोर्ट पर गौर किया, जिसमें कहा गया था कि अभियोजन पक्ष ने पीड़िता को कोई आंतरिक या बाहरी चोट नहीं पहुंचाई और उसे सेक्स करने की आदत थी।

    उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ की गई अपील में भारत के मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा:

    "उच्च न्यायालय ने एक डॉक्टर की राय पर गौर किया कि लड़की को सेक्स करने की आदत थी। ऐसा प्रतीत होता है कि इस तथ्य के कारण उच्च न्यायालय ने आरोपियों के मामले पर सहानुभूतिपूर्वक विचार किया है। हमारा विचार है कि बलात्कार की शिकार महिला को अगर सेक्स की आदत है भी तो ये बलात्कार के आरोप के खिलाफ वैध बचाव नहीं हो सकता है।"

    जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस सूर्यकांत की खंडपीठ ने तब जमानत याचिका रद्द कर दी और आरोपी को चार सप्ताह के भीतर उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में संबंधित न्यायिक मजिस्ट्रेट के सामने आत्मसमर्पण करने का निर्देश दिया।

    पीड़ित का अनैतिक चरित्र, साक्ष्य अधिनियम और सुप्रीम कोर्ट के विचार

    भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 155 में गवाह के महाभियोग से संबंधित है। 2002 में इसके संशोधन से पहले इस प्रावधान में एक खंड (4) था जो इस प्रकार था: जब किसी व्यक्ति पर बलात्कार का या बलात्कार के प्रयास का मुकदमा चलाया जाता है या तो यह दिखाया जा सकता है कि अभियोजन पक्ष अनैतिक चरित्र का था।

    भारत के विधि आयोग ने अपनी 172 वीं रिपोर्ट में इस खंड को खत्म करते हुए सुझाव दिया कि यौन उत्पीड़न और पीड़िता के अनैतिक चरित्र के बीच कोई प्रासंगिक या उचित संबंध नहीं है। इससे पहले आयोग ने अपनी 82 वीं रिपोर्ट में सेक्‍शन 155 के खंड (4) के संशोधन की आवश्यकता पर पर जोर दिया था ताकि इस तरह के सवालों को आरोपी के साथ प‌ीड़िता के पिछले यौन संबंधों तक अनुमेय बनाया जा सके, हालांकि पीड़िता के सामान्य अनैतिक चरित्र या पिछले यौन संबंधों के बारे में कोई भी सवाल उठोने से अन्यथा रोक दिया गया था। 2003 में इस प्रावधान को साक्ष्य अधिनियम से हटा दिया गया।

    उक्त संशोधन से पहले भी सुप्रीम कोर्ट ने, हालांकि ये बलात्कार के मुकदमे के संदर्भ में नहीं था, ने महाराष्ट्र राज्य बनाम वी मधुरकर नारायण मर्डीकर (1991) 1 एससीसी 57 के मामले में कहा था कि यौन उच्छृंखल महिला भी निजता की हकदार है और कोई भी पुरुष उसकी निजता पर जब चाहे तब आक्रमण कर सकता है। इसलिए यह किसी भी और हर व्यक्ति के लिए खुला नहीं है कि वह अपनी इच्छा के अनुसार किसी महिला की निजता का उल्लंघन करे। यदि किसी महिला के इच्छा के विरुद्ध उसकी निजता का उल्लंघन करने का प्रयास किया जाता है तो उसकी रक्षा की हकदार है। वह कानून की सुरक्षा प्राप्त करने के लिए भी समान रूप से हकदार है।

    दिलचस्प बात यह है कि भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 155 (4) की संवैधानिक वैधता को आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय [गोपालकृष्ण लकानिधि बनाम भारत संघ 2001 (3) ALD 436] के समक्ष ये दलील देते हुए चुनौती दी गई थी कि भले ही किसी अभियुक्त का चरित्र साक्ष्य अधिनियम की धारा 54 के संदर्भ में अप्रासंगिक हो जाता है, वही धारा 155 के उपधारा (4) के संदर्भ में अभियोजन पक्ष के खिलाफ प्रयोग किया जाता है। मधुरकर नारायण मर्डीकर सहित सुप्रीम कोर्ट के कुछ फैसलों का हवाला देते हुए अदालत ने कहा था कि साक्ष्य अधिनियम की धारा 155 (4) सभी इरादों और उद्देश्यों के लिए नगण्य हो चुकी है और इस प्रकार इस प्रावधान को असंवैधानिक घोषित करना जरूरी नहीं है।

    पंजाब राज्य बनाम गुरमीत सिंह और अन्य (1996) 2 एससीसी 384 के मामले में कहा गया कि: "भले ही किसी मामले में अभियोजन पक्ष के पहले कई यौन संबंध रह चुके हों, उसे किसी भी व्यक्ति या सभी व्यक्तियों के साथ शारीरिक संबंध बनाने से मना करने का अधिकार है क्योंकि वह ऐसी वस्तु नहीं है कि यौन उत्पीड़न के लिए कोई भी या सभी उसका इस्तेमाल करें।"

    उत्तर प्रदेश राज्य बनाम पप्पू @यूनुस एआईआर 2005 एससी 1248 के मामले में अदालत ने कहा कि अगर एक मामले में ये भी दिखाया जाए कि लड़की यौन उच्छृंखल है या योन संबंधों की आदत है तो भी यह आरोपियों को बलात्कार के आरोप से मुक्त करने का आधार नहीं हो सकता है। यह स्थापित किया जाना चाहिए है कि उस विशेष अवसर के लिए उसकी सहमति होनी आवश्यक है।

    पिछले साल सुप्रीम कोर्ट ने राज्य (दिल्ली एनसीटी की सरकार) बनाम पंकज चौधरी AIR 2018 SC 5412 के मामले में कहा कि उन मामलों में भी जहां यह दिखाने के लिए कुछ सामग्री है कि पीड़ित को संभोग करने की आदत है, पीड़िता के बारे में 'अनैतिक चरित्र' जैसे आक्षेप की इजाजत नहीं दी जा सकती। यौन उच्छृंखल महिला का भी बलात्कार नहीं किया जा सकता।

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