DRAT के समक्ष अपील दायर करने के लिए प्री-डिपॉजिट अनिवार्यः सुप्रीम कोर्ट

LiveLaw News Network

17 Feb 2021 5:30 AM GMT

  • DRAT के समक्ष अपील दायर करने के लिए प्री-डिपॉजिट अनिवार्यः सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि ऋण वसूली और शोधन अक्षमता अधिनियम (आरडीबी एक्ट)की धारा 21 के तहत ऋण वसूली अपीलीय न्यायाधिकरण(DRAT) के समक्ष अपील दायर करते समय पूर्व-जमा की पूरी छूट अस्वीकार्य है।

    सीजेआई एसए बोबडे, जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस वी रामासुब्रमण्यन की पीठ ने कहा कि सभी मामलों में पचास प्रतिशत की डिक्रीटल राशि अर्थात देय ऋण को डीआरएटी के समक्ष जमा करवाना अनिवार्य आवश्यकता है, लेकिन उचित मामलों में कारण बताते हुए देय ऋण का कम से कम पच्चीस प्रतिशत जमा करवाने की अनुमति दी जा सकती है,परंतु पूरी राशि से छूट की अनुमति नहीं दी जा सकती है।

    सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली हाईकोर्ट के एक उस फैसले को खारिज कर दिया है,जिसमें डीआरएटी के समक्ष प्री-डिपॉजिट के बिना ही अपील पर मुकदमा चलाने की अनुमति दे दी गई थी। आरडीबीए की धारा 21 का उल्लेख करते हुए, पीठ ने कहाः

    इस प्रावधान को देखने के बाद, जो ''अपील पर विचार नहीं किया जाएगा'' वाक्यांश का उपयोग करता है, यह दर्शाता है कि यह प्रावधान अपीलीय ट्रिब्यूनल को उस व्यक्ति की तरफ से दायर अपील पर सुनवाई करने से रोक देता है, जिस पर बैंक के ऋण की राशि देय है और जब तक कि ऐसा व्यक्ति अपीलीय ट्रिब्यूनल द्वारा एक्ट की धारा 19 के तहत निर्धारित उसकी देय राशि का पचास प्रतिशत जमा नहीं करवा देता है। हालांकि उक्त धारा के परंतुक अपीलीय न्यायाधिकरण को यह अधिकार देते हैं कि वह जमा किए जाने वाली राशि का घटा सकें। परंतु इसके लिए लिखित में कारण दर्ज करने होंगे और देय राशि का कम से कम 25 प्रतिशत तो जमा करवाना ही होगा,इस राशि को इससे कम नहीं किया जा सकता है। इसलिए, प्री-डिपॉजिट को माफ करने का अधिकार देय ऋण के पचास से पच्चीस प्रतिशत के बीच स्विंग करता है और इसे घटाकर पच्चीस प्रतिशत से नीचे नहीं ले जाया जा सकता है और पूरी तरह से छूट की अनुमति नहीं दी जा सकती है। इस पृष्ठभूमि में, उक्त प्रावधान को ध्यान में रखते हुए डीआरएटी ने वर्तमान मामले में पचास प्रतिशत राशि जमा करने का आदेश दिया है।

    अपील की अनुमति देते हुए, पीठ ने कहा कि हाईकोर्ट के पास प्री-डिपॉजिट को पूरी तरह से माफ करने की शक्ति नहीं है, न ही हाईकोर्ट अपने उस विवेक का उपयोग कर सकती है,जो धारा 21 में निहित वैधानिक प्रावधान की अनिवार्य आवश्यकता के खिलाफ हो। कोर्ट ने कहा किः

    ''सभी मामलों में पचास प्रतिशत की डिक्रीटल राशि अर्थात देय ऋण को डीआरएटी के समक्ष जमा करवाना अनिवार्य आवश्यकता है, लेकिन उचित मामलों में कारण बताते हुए देय ऋण का कम से कम पच्चीस प्रतिशत जमा करवाने की अनुमति दी जा सकती है,परंतु पूरी राशि से छूट की अनुमति नहीं दी जा सकती है। ऐसे में पूरे प्री-डिपॉजिट के संबंध में कोई भी छूट वैधानिक प्रावधानों के खिलाफ होगी और कानून के समक्ष मान्य नहीं होगी। इसलिए हाईकोर्ट का फैसला खारिज किए जाने योग्य है।''

    इस मामले के असाधारण तथ्यों और परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए, पीठ ने इस मामले में डीआरएटी द्वारा नोट की गई राशि का पच्चीस प्रतिशत प्री-डिपॉजिट के रूप में जमा कराने अनुमति दे दी।

    केसः कोटक महिंद्रा बैंक प्राइवेट लिमिटेड बनाम अम्बुज ए कासलीवाल,सिविल अपील नंबर 538/2021

    कोरमःसीजेआई एसए बोबडे, जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस वी रामासुब्रमण्यन

    प्रतिनिधित्वः वरिष्ठ अधिवक्ता वी गिरी, वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी और वरिष्ठ अधिवक्ता रितिन राय

    उद्धरणः एलएल 2021 एससी 89

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