'हमें सहानुभूति है, पर पहले हाईकोर्ट जाएं'- गुजरात पुलिस पर हिरासत में यातना मामले में सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी

Praveen Mishra

15 Sept 2025 7:21 PM IST

  • हमें सहानुभूति है, पर पहले हाईकोर्ट जाएं- गुजरात पुलिस पर हिरासत में यातना मामले में सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी

    सुप्रीम कोर्ट ने आज गुजरात पुलिस पर एक 17 साल के लड़के के साथ कथित यौन उत्पीड़न और हिरासत में हुई यातना की जांच कराने की मांग वाली याचिका सुनने से इनकार कर दिया।

    जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की बेंच ने यह केस वापस लेने की अनुमति दी और कहा कि पीड़ित की बहन (याचिकाकर्ता) हाईकोर्ट जा सकती हैं। जस्टिस नाथ ने कहा – “आप हाईकोर्ट जाइए, अगर वहां आपका मामला नहीं सुना गया तो फिर हमारे पास आइए, हम विचार करेंगे।”

    जस्टिस मेहता ने कहा – “हमारी सहानुभूति आपके साथ है, लेकिन सही तरीका यही है कि पहले हाईकोर्ट जाएं।”
    याचिकाकर्ता की ओर से वकील रोहिन भट्ट ने कोर्ट से गुज़ारिश की कि लड़के की गंभीर हालत को देखते हुए तुरंत AIIMS के डॉक्टरों की मेडिकल बोर्ड बनाई जाए और पुलिस स्टेशन का CCTV फुटेज सुरक्षित रखा जाए। लेकिन कोर्ट ने इस पर आदेश देने से मना किया। जस्टिस मेहता ने कहा – “अगर आप समय पर हाईकोर्ट जाएंगे तो फुटेज नष्ट नहीं होगा।”

    यह याचिका संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत दायर की गई थी। इसमें कहा गया था कि पीड़िता के भाई को गुजरात के बोटाद जिले में मेले से सोना और नकदी चोरी के शक में पुलिस ने उठाया। 19 अगस्त से 28 अगस्त 2025 तक उसे गैरकानूनी तरीके से थाने में रखा गया, जहां 4-6 पुलिसवालों ने उसकी बेरहमी से पिटाई की और यौन शोषण भी किया। उसे न तो 24 घंटे के अंदर किशोर न्याय बोर्ड या मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया गया और न ही कोई मेडिकल जांच कराई गई।

    याचिका के अनुसार, 21 अगस्त को लड़के के दादा को भी पुलिस ने उठाकर यातना दी और 1 सितंबर को छोड़ा। उसी दिन पुलिस ने लड़के के चाचा को फोन कर कहा कि लड़के को कीड़े ने काट लिया है और बेहतर इलाज के लिए बड़े अस्पताल ले जाना होगा। इसके बाद लड़के को अहमदाबाद के ज़ायडस अस्पताल में भर्ती कराया गया। परिवार का आरोप है कि अस्पताल कोई रिपोर्ट नहीं दे रहा और न ही हालत की सच्चाई बता रहा।

    पीड़ित अभी ICU में है, उसे किडनी डैमेज के कारण डायलिसिस पर रखा गया है। उसकी आंखों की रोशनी कुछ समय के लिए चली गई, दौरा पड़ा और शरीर का नियंत्रण भी बिगड़ गया। याचिका में कहा गया कि ICU में भर्ती रहते हुए ही कुछ लोगों ने, जो मजिस्ट्रेट के दफ्तर से होने का दावा कर रहे थे, उससे और परिवार से जबरन दस्तखत कराए और यह लिखवाया गया कि वह साइकिल से गिरा था।

    एक NGO माइनॉरिटी कोऑर्डिनेशन कमेटी ने पुलिस महानिदेशक को शिकायत भेजी और दोषी पुलिसवालों के निलंबन व FIR दर्ज करने की मांग की, लेकिन अब तक कोई कार्रवाई नहीं हुई।

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