पुलिस की मौजूदगी में टेस्ट आइडेंटिफिकेशन के दौरान पहचानकर्ता द्वारा दिया गया बयान सीआरपीसी की धारा 162 के प्रतिबंध के दायरे में : सुप्रीम कोर्ट

LiveLaw News Network

31 Oct 2020 8:30 AM GMT

  • पुलिस की मौजूदगी में टेस्ट आइडेंटिफिकेशन के दौरान पहचानकर्ता द्वारा दिया गया बयान सीआरपीसी की धारा 162 के प्रतिबंध के दायरे में : सुप्रीम कोर्ट

    Police Presence During Test Identification Makes Statements By Identifiers Fall Within The Ban Of Section 162 CrPC

    सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि जब पुलिस की मौजूदगी में टेस्ट आइडेंटिफिकेशन परेड आयोजित कराई जाती है तो उसके परिणामस्वरूप हुआ कम्यूनिकेशन पहचानकर्ता द्वारा जांच के दौरान पुलिस अधिकारी के समक्ष दिये गये बयान के समान होता है और वे आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 162 के प्रतिबंध के दायरे में आते हैं।

    इस मामले में ट्रायल कोर्ट ने अभियुक्त चुंथुराम और सह-अभियुक्त जगन राम को हत्या का दोषी ठहराया था। हाईकोर्ट ने चश्मदीदों की गवाही का हवाला देते हुए जगन राम को बरी कर दिया था। फिलिम साई द्वारा लुंगी की पहचान की गयी थी, जो चुंथुराम के खिलाफ इस्तेमाल एक और साक्ष्य थी।

    आपराधिक अपील पर विचार करते हुए बेंच ने कहा कि टेस्ट आइडेंटिफिकेशन परेड (टीआईपी) के दौरान पुलिस मौजूद थी। आगे यह भी कहा गया कि चुंथुराम की घटनास्थल पर मौजूदगी स्थापित करने के लिए अदालतों ने टेस्ट आइडेंटिफिकेशन परेड और फिलिम साई की गवाही पर भरोसा किया।

    कोर्ट ने कहा कि टेस्ट आइडेंटिफिकेशन एविडेंस को व्यापक साक्ष्य नहीं माना जाता, बल्कि इसका इस्तेमाल केवल कोर्ट में बयानों की पुष्टि के लिए ही किया जा सकता है। इस तरह के टेस्ट एक आश्वासन के साथ जांच एजेंसी की मदद के उद्देश्य के लिए किये जाते हैं कि अपराध की जांच की प्रगति सही दिशा में आगे बढ़ रही है।

    इस परिप्रेक्ष्य में, न्यायमूर्ति संजय किशन कौल, न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी तथा न्यायमूर्ति हृषिकेश रॉय ने आगे कहा,

    "टेस्ट आइडेंटिफिकेशन परेड कराये जाने में कमी की आगे जांच होगी। इस कवायद के दौरान सबसे बड़ी गड़बड़ी थी पुलिस की मौजूदगी। जब पुलिस की मौजूदगी में पहचान करायी जाती है तो उसका परिणामी कम्यूनिकेशन पहचानकर्ता द्वारा जांच के दौरान पुलिस अधिकारी के समक्ष दिये गये बयान के समान होता है और वे आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 162 के प्रतिबंध के दायरे में आते हैं।"

    जांच के दौरान सीआरपीसी की धारा 162 के तहत पुलिस द्वारा दर्ज गवाहों के बयानों को कोर्ट में किसी गवाह की गवाही की पुष्टि या आश्वासन के लिए इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है।

    कोर्ट ने यह भी कहा कि टीआईपी के पहचान पत्र में उल्लेख किया गया है कि तीन लुंगी रखे गये थे, और गवाह फिलिम साई के अपने ही बयान के अनुसार, संबंधित गवाह को पहचान के लिए केवल एक लुंगी दिखाई गयी थी। बेंच ने कहा कि इसलिए इस तरह की विसंगतियां अभियोजन के समर्थन के लिए टीआईपी को स्वीकृति के अनुकूल नहीं रहने देती।

    कोर्ट ने यह भी कहा कि गवाह भगत राम ने स्वीकार किया था कि उसकी आंखों की रोशनी कमजोर है और उसकी क्रॉस एक्जामिनेशन के जरिये भी यह बात सामने आयी थी कि वह गवाह एक या दो फुट से अधिक देख पाने में असमर्थ था। इन सभी तथ्यों का संज्ञान लेते हुए बेंच ने अभियुक्त को बरी कर दिया।

    केस का नाम : चुंथुराम बनाम छत्तीसगढ़ सरकार

    केस नंबर : क्रिमिनल अपील नंबर 1392 / 2011

    कोरम : न्यायमूर्ति संजय किशन कौल, न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी और न्यायमूर्ति हृषिकेश रॉय

    वकील : एडवोकेट यशराज सिंह देवरा (न्याय मित्र), एडवोकेट निशांत पाटिल

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