सुप्रीम कोर्ट ने की नसीहत: पुलिस, कोर्ट को 'शुरुआती फिल्टर' की तरह काम करना चाहिए, ताकि ऐसे केस से बचा जा सके जिनमें सज़ा की कोई उम्मीद न हो
Shahadat
2 Dec 2025 8:00 PM IST

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार (2 दिसंबर) को पुलिस द्वारा चार्जशीट फाइल करने और ट्रायल कोर्ट द्वारा उन मामलों में चार्ज फ्रेम करने के तरीके पर निराशा जताई, जिनमें सज़ा की उम्मीद बहुत कम होती है।
जस्टिस एन. कोटिश्वर सिंह और मनमोहन की बेंच ने कहा,
“जिन मामलों में कोई पक्का शक नहीं होता, उनमें चार्जशीट फाइल करने का चलन ज्यूडिशियल सिस्टम को जाम कर देता है। यह जजों, कोर्ट स्टाफ और प्रॉसिक्यूटर को ऐसे ट्रायल पर समय बिताने के लिए मजबूर करता है, जिनमें बरी होने की संभावना होती है। इससे कम ज्यूडिशियल रिसोर्स ज़्यादा मज़बूत, ज़्यादा गंभीर मामलों को संभालने से हट जाते हैं, जिससे केस का बैकलॉग बहुत ज़्यादा बढ़ जाता है।”
बेंच ने यह टिप्पणी एक प्रॉपर्टी विवाद में एक आरोपी को बरी करते हुए की कि कोई क्रिमिनल ऑफेंस नहीं बनता और पार्टियों के बीच चल रही सिविल कार्रवाई से लगता है कि मामले को क्रिमिनल रंग देने की कोशिश की गई।
जस्टिस मनमोहन के लिखे फैसले में कहा गया,
“जहां पक्षकारों के बीच कोई सिविल झगड़ा पेंडिंग है, वहां पुलिस और क्रिमिनल कोर्ट को चार्जशीट फाइल करने और चार्ज फ्रेम करने में सावधानी बरतनी चाहिए। कानून के राज से चलने वाले समाज में चार्जशीट फाइल करने का फैसला इन्वेस्टिगेटिंग ऑफिसर के इस तय करने पर आधारित होना चाहिए कि इकट्ठा किए गए सबूतों से सज़ा मिलने की सही उम्मीद है या नहीं। चार्जशीट फाइल करने के स्टेज पर पुलिस और चार्ज फ्रेम करने के स्टेज पर क्रिमिनल कोर्ट को शुरुआती फिल्टर के तौर पर काम करना चाहिए ताकि यह पक्का हो सके कि सिर्फ उन्हीं मामलों में फॉर्मल ट्रायल स्टेज पर आगे बढ़ा जाए जिन पर गहरा शक हो, ताकि ज्यूडिशियल सिस्टम की एफिशिएंसी और ईमानदारी बनी रहे।”
इसकी वजह यह है कि पक्षकारों के बीच एक सिविल झगड़ा पहले से ही पेंडिंग था, इसलिए कोर्ट ने इस बात पर ज़ोर दिया कि पुलिस और ट्रायल कोर्ट की यह ज़िम्मेदारी है कि वे इकट्ठा किए गए मटीरियल और सबूतों की क्रेडिबिलिटी के बारे में अपने शक का आकलन करें और उसे रिकॉर्ड करें, जिसमें यह भी शामिल है कि क्या कार्रवाई के आखिर में सज़ा मिलने की संभावना है।
कोर्ट ने कहा,
“बेशक, चार्ज फ्रेमिंग स्टेज पर इस बात का कोई एनालिसिस नहीं किया जा सकता कि केस का अंत सज़ा या बरी होने में होगा, लेकिन बुनियादी सिद्धांत यह है कि राज्य को सज़ा की सही उम्मीद के बिना नागरिकों पर केस नहीं चलाना चाहिए, क्योंकि इससे फेयर प्रोसेस के अधिकार से समझौता होता है।”
कोर्ट ने आगे कहा,
“इस मामले में पुलिस और ट्रायल कोर्ट को यह पता होना चाहिए था कि जिस प्रॉपर्टी की बात हो रही है, उसके संबंध में एक सिविल विवाद पेंडिंग था। साथ ही पहले से एक इंजंक्शन ऑर्डर भी था और शिकायतकर्ता ने कोई भी न्यायिक बयान देने से इनकार कर दिया, इसलिए कानूनी तौर पर सही मटीरियल/सबूत पर आधारित कोई पक्का शक नहीं था।”
Cause Title: TUHIN KUMAR BISWAS @ BUMBA VERSUS THE STATE OF WEST BENGAL

