बिहार में पुलिस द्वारा जज पर हमला करने का मामला : आरोपों का सत्यापन नहीं होने पर सुप्रीम कोर्ट ने याचिका खारिज की
LiveLaw News Network
14 Feb 2021 2:57 PM IST
Police Attack On Bihar Judge: Supreme Court Dismisses PIL Non Verification Of Allegations
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को बिहार के औरंगाबाद में हुई एक घटना की न्यायिक जांच की मांग करने वाली एक याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें एक जिला न्यायाधीश, डॉक्टर दिनेश कुमार प्रधान को एक पुलिस उप-निरीक्षक द्वारा कथित रूप से धमकी, गाली दी गई।
न्यायमूर्ति ए.एम. खानविलकर और न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस की बेंच ने बिहार पुलिस द्वारा दायर जवाबी हलफनामों का हवाला देकर जनहित याचिका खारिज कर दी।
पीठ के अनुसार,
' न तो मामले में तथ्यात्मक स्थिति को सत्यापित किया जा सका और न ही किसी आधिकारिक रिकॉर्ड से कथित घटना का समर्थन किया गया। '
इससे पहले, पीठ ने याचिकाकर्ता को मामले में संबंधित पुलिस अधिकारी को एक पक्षकार के रूप में जोड़ने का निर्देश दिया।
बिहार पुलिस की प्रतिक्रिया का उल्लेख करते हुए, पीठ ने आदेश दिया:
"यह याचिका तथ्यात्मक स्थिति की पुष्टि किए बिना दायर की गई है और न ही किसी आधिकारिक रिकॉर्ड द्वारा समर्थित है, जबकि काउंटर हलफनामा मामलों की सही स्थिति का खुलासा करता है और जिसे आगे विस्तार या स्थगन की आवश्यकता नहीं है। रिट याचिका और अन्य लंबित आवेदनों को खारिज किया जाता है।"
21 अक्टूबर को औरंगाबाद में टाउन पुलिस स्टेशन के प्रणव नामक एक पुलिस उप-निरीक्षक द्वारा एक शाम टहलने के दौरान वरिष्ठ अतिरिक्त जिला न्यायाधीश डॉक्टर प्रधान को कथित रूप से दुर्व्यवहार, धमकी दी गई और पीछा किया गया था। उस समय फ्लैग मार्च के लिए अर्धसैनिक बल के एसआई साथ थे।
अखबार की रिपोर्टों के मद्देनजर, न्यायिक अधिकारियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए एक जनहित याचिका (पीआईएल) दायर की गई थी जिसमें इस घटना की अदालत की निगरानी में जांच करने की मांग की गई थी।
याचिकाकर्ता के अनुसार,
"पुलिस द्वारा न्यायाधीशों और मजिस्ट्रेटों पर हमला न केवल न्यायपालिका की गरिमा को कम करता है, बल्कि यह लोगों के मन में यह धारणा भी छोड़ देता है कि जब न्यायिक अधिकारी पुलिस से अत्याचारों से सुरक्षित नहीं हैं तो सार्वजनिक सुरक्षा क्या होगी?"
याचिकाकर्ता ने भारतीय दंड संहिता की धारा 305,, 511 और 365 के तहत चिन्हित पुलिस अधिकारियों के खिलाफ मामले में एफआईआर दर्ज करने और अन्य संबंधित प्रावधानों के तहत दिशा-निर्देश देने और दो सदस्यीय जांच आयोग का गठन करने की मांग की गई थी, जिसमें उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों द्वारा जांच की जा सके।
याचिका में आरोपी पुलिस अधिकारी के खिलाफ आपराधिक अवमानना कार्रवाई शुरू करने और बिहार के पुलिस महानिदेशक के खिलाफ उनकी कथित निष्क्रियता के खिलाफ कार्रवाई की मांग की गई।
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