मंत्रियों की प्रेस वार्ता के दौरान सांकेतिक भाषा दुभाषियों उपलब्ध कराने की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर

LiveLaw News Network

21 Nov 2021 5:45 AM GMT

  • मंत्रियों की प्रेस वार्ता के दौरान सांकेतिक भाषा दुभाषियों उपलब्ध कराने की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर

    एक विकलांगता अधिकार कार्यकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट का रुख कर केंद्र और राज्यों को राज्यों के प्रमुखों द्वारा प्रेस वार्ता के दौरान सांकेतिक भाषा के दुभाषिए उपलब्ध कराने का निर्देश देने की मांग की।

    प्रधानमंत्री, केंद्र सरकार के अन्य मंत्रियों, सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों और राज्य सरकार के अन्य मंत्रियों द्वारा आयोजित सभी आधिकारिक प्रेस ब्रीफिंग में इन-फ्रेम सांकेतिक भाषा दुभाषिया के निर्देश के लिए विकलांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम, 2016 के तहत एक जनहित याचिका दायर की गई।

    याचिकाकर्ता एम करोगाम ने याचिका दायर की है। एम करोगाम स्वयं एक दृष्टिबाधित महिला अधिवक्ता हैं। वह मद्रास हाईकोर्ट में अधिवक्ता नुपुर कुमार के माध्यम से प्रैक्टिस कर रही हैं।

    याचिकाकर्ता के अनुसार, सांकेतिक भाषा तक पहुंच बधिर लोगों का मूल मानवाधिकार है और संचार बाधाओं को तोड़ने और किसी और की तरह समाज में भाग लेने की कुंजी भी है।

    याचिका में कहा गया कि विकलांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम, 2016 स्पष्ट रूप से विकलांग व्यक्तियों के खिलाफ भेदभाव को प्रतिबंधित करता है। इसमें सार्वजनिक लाभ, कार्यक्रमों या सेवाओं तक सार्थक पहुंच प्रदान करने में विफल होना शामिल है।

    इसके अलावा, यह तर्क दिया गया कि विकलांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम, 2016 की धारा 42 में विशेष रूप से प्रावधान किया गया कि यह केंद्र और/या राज्य सरकार सहित उपयुक्त सरकार का कर्तव्य है कि वह श्रवण और भाषण बाधित व्यक्तियों के लिए सांकेतिक भाषा दुभाषियों सहित सुविधाएं प्रदान करे।

    याचिकाकर्ता ने कहा कि समाचार चैनलों में प्रतिदिन एक बार सांकेतिक भाषा दुभाषिया प्रदान करने के लिए सूचना और प्रसारण मंत्रालय के दिशा-निर्देशों के बाद भी कई समाचार चैनल उक्त दिशानिर्देशों का अक्षरश: पालन करने में विफल रहे हैं।

    याचिकाकर्ता के अनुसार, सांकेतिक भाषा के दुभाषियों के बिना हजारों सुनने और बोलने वाले लोगों को वास्तविक समय के आधार पर तमिलनाडु राज्य के मुख्यमंत्री से किसी भी संचार को समझने के अवसर से वंचित कर दिया जाता है, विशेष रूप से महामारी, इसके सुरक्षा उपायों के बारे में, लॉकडाउन दिशानिर्देश आदि के बारे में।

    यह तर्क दिया गया कि उन्हें राज्य में होने वाले कई विकासों के बारे में जानकारी, विश्लेषण और खुद को अपडेट करने के अवसर से भी वंचित किया जा रहा है।

    केस शीर्षक: एम करोगम बनाम भारत संघ और अन्य

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