हर चुनाव से पहले मतदाता सूचियों का नियमित रूप से गहन पुनर्विचार करने की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका
Shahadat
8 July 2025 3:53 PM IST

भारतीय जनता पार्टी (BJP) नेता अश्विनी उपाध्याय ने सुप्रीम कोर्ट में एक रिट याचिका दायर कर भारत के चुनाव आयोग (ECI) और केंद्र तथा राज्य सरकारों को नियमित अंतराल पर मतदाता सूचियों का गहन पुनर्विचार करने के निर्देश देने की मांग की, खास तौर पर संसदीय, राज्य विधानसभा और स्थानीय निकाय चुनावों से पहले।
याचिका में सभी राज्यों को फर्जी दस्तावेज उपलब्ध कराकर घुसपैठियों की मदद करने वालों के खिलाफ कार्रवाई करने का निर्देश देने की भी मांग की गई।
याचिका में कहा गया,
"केंद्र, राज्य और ECI का यह कर्तव्य है कि वे मतदाता सूचियों का गहन पुनर्विचार करें और यह कड़ा संदेश दें कि भारत अवैध घुसपैठ के खिलाफ लड़ने के लिए दृढ़ संकल्पित है। घुसपैठियों की मदद करने वाले भ्रष्ट लोगों को चेतावनी देने के लिए कार्यकारी कार्रवाई की जानी चाहिए कि जनता के विश्वास के साथ विश्वासघात अब बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।"
उपाध्याय ने जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की खंडपीठ के समक्ष याचिका का उल्लेख किया और प्रतिवादियों को इसे सौंपने तथा 10 जुलाई को बिहार मतदाता सूची के विशेष गहन पुनर्विचार को चुनौती देने वाली याचिकाओं के साथ सूचीबद्ध करने की अनुमति मांगी।
हालांकि, खंडपीठ ने कहा कि त्रुटियों को ठीक करने के बाद रजिस्ट्री सूचीबद्ध करने का निर्णय लेगी।
न्यायालय ने आदेश दिया,
"याचिकाकर्ता को त्रुटियों को ठीक करने दें, तथा उसके बाद रजिस्ट्री आवश्यक कार्रवाई करेगी।"
विपक्षी नेताओं तथा मानवाधिकार संगठनों द्वारा सुप्रीम कोर्ट के समक्ष विभिन्न याचिकाएं दायर की गई, जिसमें बिहार में मतदाता सूची के "विशेष गहन पुनर्विचार" के ECI के कदम को चुनौती दी गई, जहां विधानसभा चुनाव कुछ महीने बाद होने वाले हैं।
उपाध्याय की याचिका, जो नियमित विशेष गहन पुनर्विचार की मांग करती है, विशेष रूप से बिहार का संदर्भ देती है, जिसमें 243 विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र हैं। इसमें दावा किया गया कि हर निर्वाचन क्षेत्र में लगभग 8,000 से 10,000 अवैध, डुप्लिकेट या फर्जी प्रविष्टियां हैं और 2,000 से 3,000 वोटों की विसंगतियां भी चुनावी नतीजों को बदल सकती हैं। इसमें 2003 में बिहार में किए गए पहले विशेष गहन पुनर्विचार का हवाला दिया गया और कहा गया कि शहरीकरण, पलायन और मौतों की रिपोर्ट न किए जाने के कारण एक नया पुनर्विचार लंबित है।
रिट याचिका वकील अश्विनी दुबे के माध्यम से दायर की गई और इसमें गृह और कानून एवं न्याय मंत्रालयों के माध्यम से भारत संघ, चुनाव आयोग, सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की सरकारों और भारत के विधि आयोग को प्रतिवादी के रूप में नामित किया गया।
याचिकाकर्ता ने मांग की है कि केवल भारतीय नागरिकों को ही मतदान करने की अनुमति दी जाए, उनका आरोप है कि अवैध विदेशी घुसपैठिए देश की राजनीति और नीति को प्रभावित कर रहे हैं। याचिका में दावा किया गया कि स्वतंत्रता के बाद से 200 जिलों और 1500 तहसीलों की जनसांख्यिकी “बड़े पैमाने पर अवैध घुसपैठ, धोखेबाज़ी से धर्म परिवर्तन और जनसंख्या विस्फोट” के कारण बदल गई।
याचिका में संविधान के अनुच्छेद 324(1) का हवाला दिया गया, जो चुनाव आयोग को चुनावों के अधीक्षण, निर्देशन और नियंत्रण की शक्ति प्रदान करता है। तर्क दिया गया कि अनुच्छेद 326 के तहत स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने के लिए सटीक मतदाता सूची आवश्यक है। याचिका जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 की धारा 21(3) पर निर्भर करती है, जो सामान्य संशोधन चक्र अपर्याप्त होने पर विशेष संशोधन का प्रावधान करती है।
याचिका में "अवैध पाकिस्तानी, अफ़गानिस्तानी, बांग्लादेशी और रोहिंग्या घुसपैठियों" के बारे में चिंता जताई गई, जो कथित तौर पर वैध वोटों को कमजोर कर रहे हैं और जनता के विश्वास और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा पैदा कर रहे हैं। इसमें दावा किया गया कि घुसपैठिए चुनाव परिणामों को निर्णायक रूप से प्रभावित कर सकते हैं, खासकर करीबी मुकाबलों में और जीत का अंतर अक्सर कुछ सौ वोटों के भीतर होता है। याचिकाकर्ता का आरोप है कि अवैध घुसपैठ न केवल आव्रजन उल्लंघन है, बल्कि भारतीय राज्य के खिलाफ युद्ध छेड़ने, संगठित अपराध और यहां तक कि देशद्रोह के समान है।
याचिका में कहा गया कि घुसपैठ ने जनसांख्यिकीय व्यवधान पैदा किया, कानून प्रवर्तन चुनौतियों को जन्म दिया और आतंकवाद, तस्करी, मानव तस्करी और तोड़फोड़ सहित राष्ट्र विरोधी गतिविधियों के लिए एक आवरण के रूप में काम किया। यह तर्क दिया गया कि राज्य सरकारें घुसपैठियों और उनकी सहायता करने वालों के खिलाफ एनएसए के प्रावधानों को लागू नहीं कर रही हैं।
याचिका के अनुसार, मतदाता पंजीकरण नियम, 1960 के तहत फॉर्म 6 और 8 के मौजूदा संस्करण में आवेदकों की नागरिकता के बारे में जानकारी नहीं मांगी गई। इसमें तर्क दिया गया कि अनुच्छेद 326 और जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 के तहत मतदान के अधिकार के लिए नागरिकता का सत्यापन एक मुख्य आवश्यकता है।
याचिका में 1997 में असम में इसी तरह की एक प्रक्रिया का उल्लेख किया गया, जहां घर-घर जाकर सत्यापन के परिणामस्वरूप संदिग्ध मतदाताओं (डी-मतदाताओं) को चिह्नित किया गया, जिनके मामलों को विदेशी न्यायाधिकरणों को भेजा गया। याचिका में दावा किया गया कि इस प्रक्रिया में प्राकृतिक न्याय की सुरक्षा शामिल थी।
याचिका में तर्क दिया गया कि बिहार मतदाता सूची का विशेष गहन पुनर्विचार यह सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक है कि केवल वास्तविक नागरिक ही मतदान करें। यह इस बात पर प्रकाश डालता है कि ECI ने आश्वासन दिया है कि किसी भी वास्तविक मतदाता को सूची से नहीं हटाया जाएगा।
याचिका में यह भी दावा किया गया कि बिहार के सीमांचल क्षेत्र में अवैध अप्रवास के कारण विषम जनसंख्या वृद्धि हुई। इसमें कहा गया कि इस क्षेत्र में 47% मुस्लिम आबादी है, जबकि बिहार का राज्यव्यापी औसत 18% है।
याचिका में आरोप लगाया गया कि इस क्षेत्र में घुसपैठ के आर्थिक और सामाजिक परिणाम हैं और यह कानून के शासन को कमजोर करता है।
Case Title – Ashwini Kumar Upadhyay v. Union of India

