'मनमाना, अव्यवहारिक, लाखों लोगों को मताधिकार से वंचित करने वाला': बिहार में मतदाता सूची के संशोधन को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती
Shahadat
5 July 2025 11:44 AM IST

भारत के चुनाव आयोग (ECI) द्वारा 25 जून को बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन संशोधन के लिए पारित आदेश को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में एक रिट याचिका दायर की गई।
एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (SIR) द्वारा दायर याचिका में कहा गया कि ECI का आदेश मनमाना है और लाखों मतदाताओं को मताधिकार से वंचित कर सकता है।
ECI के निर्देश में बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन संशोधन की बात कही गई, जिसके अनुसार 2003 की मतदाता सूची में शामिल नहीं होने वाले मतदाताओं को यह साबित करने के लिए निर्दिष्ट नागरिकता दस्तावेज प्रस्तुत करने होंगे कि वे वास्तविक नागरिक हैं।
याचिकाकर्ता का तर्क है कि ECI का आदेश संविधान के अनुच्छेद 14, 19, 21, 325 और 326 के साथ-साथ जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 और मतदाता पंजीकरण नियम, 1960 के नियम 21ए के प्रावधानों का उल्लंघन करता है।
याचिकाकर्ता का तर्क है कि जब तक 24.06.2025 के इस आदेश को रद्द नहीं किया जाता, तब तक यह मनमाने ढंग से और बिना उचित प्रक्रिया के लाखों मतदाताओं को मताधिकार से वंचित कर सकता है, स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों को कमजोर कर सकता है। इस प्रकार संविधान के मूल ढांचे पर प्रहार कर सकता है। सख्त दस्तावेजीकरण आवश्यकताओं, पर्याप्त प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपायों की अनुपस्थिति और बिहार में इस विशेष संशोधन को संचालित करने के लिए अनुचित रूप से कम समय सीमा के परिणामस्वरूप वास्तविक मतदाताओं को गलत तरीके से सूची से हटा दिया जा सकता है, जिससे उन्हें प्रभावी रूप से उनके मतदान के अधिकार से वंचित किया जा सकता है।
यह भी तर्क दिया गया कि इस आदेश को जारी करके ECI ने मतदाता सूची में शामिल होने की पात्रता साबित करने की जिम्मेदारी राज्य से व्यक्तिगत नागरिकों पर डाल दी है। आधार और राशन कार्ड जैसे सामान्य पहचान दस्तावेजों को बाहर करके यह प्रक्रिया हाशिए पर पड़े समुदायों और गरीबों पर प्रतिकूल प्रभाव डालती है, जिससे उनके छूट जाने की संभावना अधिक हो जाती है। इसके अलावा, ECI प्रक्रिया के तहत मतदाताओं के लिए न केवल अपनी नागरिकता साबित करने के लिए बल्कि अपने माता-पिता की नागरिकता साबित करने के लिए भी दस्तावेज प्रस्तुत करने की आवश्यकता अनुच्छेद 326 का उल्लंघन करती है। इन आवश्यकताओं को पूरा न करने पर उनका नाम मसौदा मतदाता सूची से बाहर हो सकता है या पूरी तरह से हटाया भी जा सकता है।
यह तर्क दिया जाता है कि ECI ने बिहार में SIR को लागू करने के लिए अनुचित और अव्यवहारिक समयसीमा निर्धारित की है, खासकर नवंबर, 2025 में होने वाले राज्य चुनावों के निकट होने के कारण। ऐसे लाखों नागरिक हैं, जिनके नाम 2003 की मतदाता सूची में नहीं थे और जिनके पास SIR आदेश के तहत मांगे गए दस्तावेज नहीं हैं। जबकि कुछ लोग इन दस्तावेजों को प्राप्त करने में सक्षम हो सकते हैं, निर्देश द्वारा निर्धारित छोटी समयसीमा उन्हें समय पर ऐसा करने से रोक सकती है।
बिहार ऐसा राज्य है, जहां गरीबी और पलायन का उच्च स्तर है, यहां एक बड़ी आबादी है, जिसके पास जन्म प्रमाण पत्र या अपने माता-पिता के रिकॉर्ड जैसे आवश्यक दस्तावेजों तक पहुंच नहीं है। याचिकाकर्ता ने अनुमान लगाया कि 3 करोड़ से ज़्यादा मतदाता, ख़ास तौर पर अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और प्रवासी मज़दूर जैसे हाशिए पर पड़े समूहों के मतदाता, SIR आदेश में निर्धारित सख़्त आवश्यकताओं के कारण अपने वोट के अधिकार से वंचित हो सकते हैं।
याचिका के अनुसार, बिहार से हाल ही में आई रिपोर्ट, जहां SIR प्रक्रिया पहले ही शुरू हो चुकी है, बताती है कि ग्रामीण क्षेत्रों और हाशिए पर पड़े समुदायों के लाखों मतदाताओं के पास वे दस्तावेज़ नहीं हैं, जिनकी उनसे मांग की जा रही है।