राज्य सचिवालय परिसर के भीतर मस्जिदों के डिमोलिशन के मामले में तेलंगाना हाईकोर्ट के आदेश को दी सुप्रीम कोर्ट में चुनौती

LiveLaw News Network

4 Sept 2020 9:06 PM IST

  • राज्य सचिवालय परिसर के भीतर मस्जिदों के डिमोलिशन के मामले में तेलंगाना हाईकोर्ट के आदेश को दी सुप्रीम कोर्ट में चुनौती

    सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर कर तेलंगाना हाईकोर्ट के 15 जुलाई के आदेश को चुनौती दी गई है। इस आदेश के तहत पुराने सचिवालय परिसर के भीतर स्थित मस्जिदों के डिमोलिशन के संबंध में राज्य सरकार और तेलंगाना वक्फ बोर्ड के सदस्य के बीच सहमति दर्ज की गई थी।

    याचिकाकर्ता खाजा बिलाल अहमद ने यह एसएलपी दायर की है, जिसमें 15 जुलाई के आदेश के संचालन पर अंतरिम एक-पक्षीय (ex-parte) स्टे दिए जाने की मांग की गई है। साथ ही मांग की है कि नई मस्जिदों के निर्माण के लिए उन स्थानों को चिन्हित व संरक्षित किया जाए,जिन पर यह मस्जिद पहले बनी हुई थी।

    याचिकाकर्ता ने कहा है कि तेलंगाना सरकार ने सचिवालय भवन परिसर को ध्वस्त करने का निर्णय लिया था और 8 जुलाई को इसको ढ़हाने का काम शुरू किया गया। जिसके परिणामस्वरूप सचिवालय परिसर में स्थित दो पुरानी मस्जिदें, जामिया मस्जिद और मस्जिद हाशिम को भी डिमोलिश कर दिया गया था।

    9 जुलाई को मोहम्मद ज़ाकिर हुसैन जाविद ने तेलंगाना राज्य वक्फ बोर्ड के सदस्य होने के नाते, बिना किसी प्राधिकरण या वक्फ बोर्ड की सहमति के अपनी व्यक्तिगत क्षमता के आधार पर इन दो मस्जिदों का प्रतिनिधित्व किया और तेलंगाना हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। उसने इन मस्जिदों को ध्वस्त करने से रोकने के लिए एक अंतरिम निषेधाज्ञा दिए जाने की मांग की थी।

    तेलंगाना के मुख्यमंत्री ने 10 जुलाई को एक ट्वीट के माध्यम से मस्जिदों के डिमोलिशन पर खेद और पीड़ा व्यक्त की और आश्वासन दिया कि एक नई और अधिक बड़ी मस्जिद का निर्माण सरकारी खर्चों पर किया जाएगा। 15 जुलाई को तेलंगाना हाईकोर्ट ने इस मामले में दायर रिट याचिका का एडमिशन स्टेज पर ही निपटारा कर दिया,जबकि ऐसा करते समय तेलंगाना राज्य वक्फ बोर्ड को उसका पक्ष रखने का मौका भी नहीं दिया गया।

    राज्य सरकार के वकील ने हाईकोर्ट के समक्ष प्रस्तुत किया था कि मस्जिद, जो अस्तित्व में थी, एक सचिवालय भवन के मलबे के नीचे दबने के कारण ढह गई थी और उसी के पुनर्निर्माण के प्रस्ताव की योजना बनाई जा रही है। मोहम्मद ज़ाकिर हुसैन जाविद ने इस प्रस्ताव पर अपना संतोष व्यक्त किया था और इसलिए, दोनों पक्षों की सहमति के बाद, याचिका का निपटारा कर दिया गया था।

    वर्तमान याचिकाकर्ता की शिकायत यह है कि मोहम्मद जकीर हुसैन जाविद के पास ऐसी कोई सहमति देने का अधिकार/ क्षमता नहीं थी। इसके अलावा, याचिका में याचिकाकर्ता होने के नाते जाविद ने यह उल्लेख नहीं किया था कि वह तेलंगाना राज्य वक्फ बोर्ड के सदस्य हैं। यह एक जानबूझकर की गई चूक थी क्योंकि उन्होंने हाईकोर्ट के समक्ष दायर रिट याचिका में तेलंगाना राज्य वक्फ बोर्ड को प्रतिवादी संख्या 9 बनाया था।

    अहमद ने दलील दी है कि जाविद के पास सचिवालय परिसर के भीतर एक नई मस्जिद का निर्माण करने के मामले में अपनी संतुष्टि व्यक्त करने के लिए कोई अधिकार नहीं था।

    अहमद ने दलील दी कि यहां यह बताना सबसे अधिक प्रासंगिक और महत्वपूर्ण है कि इस आदेश में कहीं भी यह नहीं कहा गया है कि तेलंगाना राज्य सचिवालय हैदराबाद के परिसर के भीतर दो मस्जिदें - जामिया मस्जिद और मस्जिद हाशिम स्थित थी।

    वर्तमान एसएलपी में याचिकाकर्ता ने कहा है कि यद्यपि जाविद ने खुद को दो मस्जिदों का प्रतिनिधि बताया था या दावा किया था, लेकिन इसके लिए तेलंगाना राज्य वक्फ बोर्ड ने उसे अधिकृत नहीं किया था।

    इसके अलावा, एसएलपी में यह भी बताया गया है कि ए.पी. हाई कोर्ट रूल्स 7 ए के अनुसार पीआईएल को डिवीजन बेंच के समक्ष ही दायर किया जा सकता है। इसलिए, एकल न्यायाधीश के पास इस मामले पर निर्णय देने का कोई अधिकार नहीं था। वहीं एकल न्यायाधीश द्वारा अपनाई गई प्रक्रिया कानून के लिए अनजान है क्योंकि उक्त निर्णय किसी एक व्यक्ति की सहमति के आधार पर दिया गया है। जबकि दोनों मस्जिद तेलंगाना राज्य वक्फ बोर्ड के नियंत्रण और प्रशासन के अधीन थी।

    वर्तमान याचिकाकर्ता का कहना है कि रिट याचिका सिर्फ राज्य सरकार के बयान के आधार पर निपटा दी गई थी। उक्त आदेश में न तो यह बताया गया है कि कितने क्षेत्र में प्रस्तावित नई मस्जिद का निर्माण किया जाना है और न ही राज्य सरकार को इस निर्माण के लिए या मस्जिद के सीमांकन के संबंध में कोई समय सीमा दी गई है। आज तक इन मस्जिद के संबंध में कोई योजना /नक्शा सार्वजनिक डोमेन में नहीं लाया गया है।

    यह याचिका अंकुर प्रकाश द्वारा तैयार की गई है।

    याचिका की काॅपी डाउनलोड करें।



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