'ताश खेलना नैतिक पतन नहीं': सुप्रीम कोर्ट ने 'सार्वजनिक रूप से जुआ खेलने' के कारण अयोग्य ठहराया जाना खारिज किया

Shahadat

15 May 2025 10:53 AM IST

  • ताश खेलना नैतिक पतन नहीं: सुप्रीम कोर्ट ने सार्वजनिक रूप से जुआ खेलने के कारण अयोग्य ठहराया जाना खारिज किया

    एक सहकारी समिति के निदेशक मंडल में एक व्यक्ति के चुनाव को बहाल करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी की कि सभी परिस्थितियों में ताश खेलना नैतिक पतन नहीं है। उक्त व्यक्ति को "सार्वजनिक रूप से जुआ खेलने" के लिए दोषी ठहराए जाने के कारण अयोग्य ठहराया गया था।

    जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह की खंडपीठ ने मामले की सुनवाई की।

    खंडपीठ ने आदेश में इस प्रकार कहा:

    "आरोपों से ऐसा प्रतीत होता है कि कुछ लोग सड़क किनारे बैठकर ताश खेल रहे थे। उन्हें मौके पर ही पकड़ लिया गया और बिना किसी सुनवाई के अपीलकर्ता पर 200 रुपये का जुर्माना लगाया गया। [...] की प्रकृति के अनुसार, हमें यह मुश्किल लगता है कि अपीलकर्ता के खिलाफ़ लगाए गए कदाचार में नैतिक अधमता शामिल है।

    हम यह जोड़ना चाहते हैं कि नैतिक अधमता शब्द का प्रयोग कानूनी और सामाजिक भाषा में ऐसे आचरण का वर्णन करने के लिए किया जाता है, जो स्वाभाविक रूप से [...], नीच, भ्रष्ट या किसी प्रकार से भ्रष्टता से जुड़ा हो। हर वह कार्य जिसके विरुद्ध कोई आपत्ति कर सकता है, जरूरी नहीं कि उसमें नैतिक अधमता शामिल हो। ताश खेलने के लिए बहुत सारे मंच हैं। यह स्वीकार करना मुश्किल है कि इस तरह के हर खेल में नैतिक अधमता शामिल होगी, खासकर जब वे लोग जो केवल मनोरंजन के साधन के रूप में और समय बिताने के लिए ताश खेल रहे हों।

    अपीलकर्ता को आदतन जुआरी नहीं पाया गया। उसे सर्वोच्च पद पर चुना गया। इसके अलावा, उसका चुनाव आरोपित कदाचार की प्रकृति के लिए अत्यधिक असंगत है। हम संतुष्ट हैं कि अपीलकर्ता के खिलाफ की गई आपत्तिजनक कार्रवाई बरकरार नहीं रखी जा सकती... सोसायटी के निदेशक मंडल में अपीलकर्ता का चुनाव बहाल किया जाता है।"

    संक्षेप में मामला

    अपीलकर्ता ने कर्नाटक में प्रतिवादी नंबर 3-सोसायटी के निदेशक मंडल के चुनाव में भाग लिया और सबसे अधिक मत प्राप्त करके निर्वाचित हुआ। हालांकि, प्रतिवादी नंबर 5, जो चुनाव हार गया था, उसने सहकारी समितियों के संयुक्त रजिस्ट्रार के समक्ष चुनाव विवाद उठाया, जिसमें अन्य बातों के साथ-साथ आरोप लगाया गया कि अपीलकर्ता को कर्नाटक पुलिस अधिनियम (जुआ) की धारा 87 के तहत दंडनीय अपराध के लिए आपराधिक मामले में दोषी ठहराया गया था, जिसमें नैतिक पतन शामिल है।

    इस प्रकार, यह कहा गया कि कर्नाटक सहकारी समिति अधिनियम, 1959 की धारा 17(1) के अनुसार अपीलकर्ता का चुनाव रद्द किया जाना चाहिए। निर्धारित प्राधिकारी ने याचिका स्वीकार की और अपीलकर्ता का चुनाव रद्द कर दिया। उनकी अपील और हाईकोर्ट में दायर रिट याचिका भी खारिज कर दी गई। इसके बाद उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

    वकीलों की सुनवाई और रिकॉर्ड को देखने के बाद सुप्रीम कोर्ट का मानना ​​था कि अपीलकर्ता के खिलाफ लगाए गए कदाचार की प्रकृति के अनुरूप कार्रवाई असंगत थी। कथित तौर पर ताश खेलना (जिसके लिए उसे दोषी ठहराया गया था) नैतिक पतन का कार्य नहीं है। तदनुसार, न्यायालय ने अपील स्वीकार कर ली और आरोपित कार्रवाई/आदेश रद्द कर दिया।

    उल्लेखनीय है कि जस्टिस कांत ने सुनवाई के दौरान कहा कि भारत में ताश खेलना आम आदमी के लिए मनोरंजन का एक स्रोत है।

    उन्होंने कहा,

    "जब हम विविधता, समावेशिता की बात करते हैं...एक राष्ट्र के रूप में, जीवन शैली, आय, आर्थिक स्थितियों के बीच अंतर...ताश खेलना आम आदमी के लिए मनोरंजन का एक स्रोत है। सबसे सस्ता और हानिरहित तरीका...नैतिक पतन एक अलग चीज है..."।

    जज ने यह भी कहा कि ऐसे देश हैं, जो वृद्ध लोगों के लिए कैसीनो को बढ़ावा देते हैं और जिन परिस्थितियों में लोग ताश खेलते हैं, वे समाज-दर-समाज भिन्न होते हैं।

    जस्टिस ने पूछते हुए कहा,

    "वहां बहुत सारे प्रोत्साहन हैं...उन्हें उचित भोजन दिया जाता है, उनकी देखभाल की जाती है...अन्यथा वे अलग-थलग रहते हैं, उनके बच्चे उनके साथ नहीं होते...वहां, उन्हें संगति मिलती है, बड़े-बुजुर्ग साथ बैठते हैं और खेलते हैं...यह सब समाज पर निर्भर करता है...हम अपनी व्यवस्था में इस तरह की चीज़ों को बर्दाश्त नहीं कर सकते, क्योंकि हमारे लोग मध्यम वर्ग के हैं, मध्यम वर्ग से नीचे के हैं...लेकिन उनमें से कुछ लोग एक साथ मिलते हैं, वे ताश खेलते हैं...इसमें नैतिक पतन क्या है?"

    केस टाइटल: हनुमानथरायप्पा वाई.सी. बनाम कर्नाटक राज्य और अन्य, एसएलपी (सी) नंबर 3969/2023

    Next Story