प्रभावशाली व्यक्तियों को अपने भाषणों में अधिक जिम्मेदार होना पड़ता हैः सुप्रीम कोर्ट ने अमिश देवगन के मामले में कहा
LiveLaw News Network
8 Dec 2020 5:33 PM IST
सुप्रीम कोर्ट ने एक न्यूज एंकर अमीश देवगन के खिलाफ हेट स्पीच के मामले में दायर एफआईआर को रद्द करने से इनकार करने के अपने फैसले में कहा है कि प्रभावशाली व्यक्तियों को अपने भाषण अधिक जिम्मेदार होना पड़ता है।
जस्टिस एएम खानविलकर और संजीव खन्ना की बेंच ने कहा, "प्रभावशाली व्यक्तियों का, आम जनता या विशिष्ट वर्ग, जिससे वो संबंधित हैं, पर पहुंच, प्रभाव और अधिकार को ध्यान में रखते हुए, उनका कर्तव्य है कि वो अधिक जिम्मेदार रहें।"
देवगन ने सुप्रीम कोर्ट में सूफी संत मोइनुद्दीन चिश्ती के खिलाफ की गई अपनी टिप्पणियों पर भारतीय दंड संहिता की धारा 153A/295A के तहत दर्ज एफआईआर को रद्द करने की मांग की थी। उपासना स्थल अधिनियम 1991 पर बहस के दौरान, देवगन ने कथित तौर पर "लुटेरा चिश्ती" शब्द का इस्तेमाल किया था।
एफआईआर को रद्द करने की याचिका को खारिज करते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने 'हेट स्पीच' की अवधारणा का विश्लेषण किया और टिप्पणी की कि प्रभावशाली व्यक्तियों को उनकी पहुंच को ध्यान में रखते हुए अपने भाषण में अधिक जिम्मेदारी का प्रयोग करना चाहिए।
कोर्ट ने कहा, "उनसे बोले और लिखे गए शब्दों द्वारा व्यक्त अर्थों को जानने और अनुभव करने की अपेक्षा की जाती है, जिसमें वो संभावित अर्थ भी शामिल होते हैं, जिसे समझे जाने की संभावना होती है। अनुभव और ज्ञान के साथ, उनसे उच्च स्तर के संचार कौशल की उम्मीद की जाती है। यह मानना उचित है कि वे उन शब्दों का उपयोग सावधानी से करेंगे, जिनसे उनके इरादे व्यक्त होते हैं।"
कोर्ट ने कहा कि इसका मतलब यह नहीं है कि पत्रकारों जैसे प्रभावी व्यक्ति अन्य नागरिकों की तरह ही अभिव्यक्ति और भाषण की स्वतंत्रता का आनंद नहीं लेते हैं। लेकिन 'किसने' बयान दिया सवाल तब प्रासंगिक हो सकता है जब अदालतें हेट स्पीच के 'नुकसान या प्रभाव' 'मंशा' और/ या 'विषयवस्तु' जैसे तत्वों की जांच करती हैं। (हेट स्पीच पर विस्तार से पढ़ने के लिए यह रिपोर्ट पढ़ें)।
पीठ ने स्पष्ट किया, "हमारा यह कहना नहीं है कि प्रभावशाली व्यक्ति या सामान्य लोगों को प्रतिशोध और अभियोजन के खतरे से डरना चाहिए, अगर वे धर्म, जाति, पंथ आदि से संबंधित विवादास्पद और संवेदनशील विषयों पर चर्चा करते हैं और बोलते हैं।
ऐसी बहस करना और अभिव्यक्ति का आजादी हमारे लोकतंत्र में एक संरक्षित और पोषित अधिकार है। इस तरह की चर्चाओं में भाग लेने वाले लोग, विभिन्न प्रकार के, और कभी-कभी अतिवादी विचार व्यक्त कर सकते हैं, लेकिन इसे 'हेट स्पीच' नहीं माना जाना चाहिए, क्योंकि ऐसा करने से सार्वजनिक स्तर की सभी वैध चर्चाओं और बहस में बाधा पड़ेगी।
कई बार, इस तरह की चर्चा और बहस विभिन्न दृष्टिकोणों को समझने में मदद करती हैं और अंतर को खत्म करती हैं। सवाल, मुख्य रूप से इरादे और उद्देश्य का है। तदनुसार, 'भला विश्वास' और 'कोई वैध उद्देश्य' अपवाद लागू होंगे, जब लागू होने होंगे।"
कोर्ट ने माना कि 'हेट स्पीच' का किसी विशेष समूह के प्रति घृणा के अलावा कोई उद्देश्य नहीं होता है। कोर्ट ने कहा कि एक प्रकाशन, जिसमें अनावश्यक बयान शामिल हों, जिसका नीचा दिखाने के अलावा कोई वास्तविक उद्देश्य न हो, इस बात का सबूत होगा कि प्रकाशन गलत इरादे से किया गया है।
जस्टिस खन्ना द्वारा ने फैसले में लिखा, "बहुलतावाद के लिए प्रतिबद्ध राजनीति में, घृणास्पद भाषण लोकतंत्र के लिए किसी भी वैध तरीके से योगदान नहीं कर सकता है और वास्तव में, समानता के अधिकार को निरस्त करता है।"
कोर्ट ने कहा कि 'हेट स्पीच' की सार्वभौमिक परिभाषा मुश्किल रही है, सिवाय एक समानता के कि 'हिंसा के लिए उकसाना'दंडनीय है। कोर्ट ने कहा, "इसलिए, 'हेट स्पीच' का संवैधानिक और वैधानिक उपचार उन मूल्यों पर निर्भर करता है, जिन्हें बढ़ावा देने की मांग की जाती है, इसमें कथित नुकसान और इन नुकसानों का महत्व शामिल है।"
कोर्ट ने कहा कि देवगन के बयान में 'हेट स्पीच ' के तत्व शामिल थे या नहीं, यह केवल ट्रायल में ही निर्धारित किया जा सकता है। कोर्ट ने देवगन के खिलाफ एफआईआर रद्द करने से इनकार कर दिया, हालांकि इस मुद्दे पर दायर कई एफआईआर को एक साथ अजमेर स्थानांतरित करके उन्हें राहत जरूर दे दी।