COVID-19 के दौरान एचपीसी द्वारा दी गई पैरोल की अवधि को वास्तविक सजा की अवधि में नहीं गिना जा सकता: सुप्रीम कोर्ट

Shahadat

24 March 2023 6:43 AM GMT

  • COVID-19 के दौरान एचपीसी द्वारा दी गई पैरोल की अवधि को वास्तविक सजा की अवधि में नहीं गिना जा सकता: सुप्रीम कोर्ट

    सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि कैदियों की भीड़भाड़ को रोकने के लिए COVID-19 महामारी की अवधि के दौरान कैदियों को दी गई पैरोल की अवधि को कैदी द्वारा कारावास की अवधि में नहीं गिना जा सकता।

    जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस सीटी रविकुमार की खंडपीठ ने कैदी द्वारा दायर रिट याचिका खारिज कर दिया, जिसमें घोषणा की मांग की गई कि महामारी के दौरान सुप्रीम कोर्ट द्वारा स्वप्रेरणा से पारित आदेशों के आधार पर उच्चाधिकार प्राप्त समिति द्वारा दी गई पैरोल की अवधि की अनुमति दी गई। जेलों में COVID-19 वायरस के पुन: संक्रमण के मामले को वास्तविक सजा की अवधि में गिना जाएगा।

    बेंच ने रोहन धुंगट बनाम गोवा राज्य और अन्य 2023 लाइवलॉ (एससी) 10 के हालिया फैसले पर भरोसा किया, जिसमें कहा गया कि पैरोल अवधि को वास्तविक सजा की अवधि के रूप में नहीं गिना जा सकता।

    याचिकाकर्ता, जिसे हत्या के अपराध के लिए आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई, उसको छूट पर किसी भी नीति के अधीन वास्तव में उक्त कारावास से गुजरना पड़ता है और जिस अवधि के दौरान उसे आपातकालीन पैरोल पर रिहा किया गया, उस अवधि से बाहर रखा जाना चाहिए।

    याचिकाकर्ता का तर्क था कि चूंकि COVID-19 महामारी के कारण पैरोल की अनुमति एचपीसी के निर्देशों के अनुसार थी और चूंकि उसने "इसके लिए नहीं कहा था", इस तरह के पैरोल पर खर्च की गई अवधि को बाहर रखा जाना चाहिए।

    याचिकाकर्ता के वकील ने दलील दी,

    "यह नियमित पैरोल नहीं है। यह अनैच्छिक है, मैंने इसके लिए नहीं कहा। जेलों में भारी भीड़ थी। (यदि पैरोल के लिए नहीं) तो यह COVID-19 के दौरान जेलों में होने वाली मौतों की संख्या में जुड़ जाती।"

    खंडपीठ ने सुनवाई के दौरान कहा,

    "लेकिन आप जेल से बाहर थे, है ना? फिर सवाल कहां है... पैरोल की अवधि की गणना नहीं की जा सकती, हम पहले ही कह चुके हैं।'

    केस टाइटल: अनिल कुमार बनाम हरियाणा राज्य | W.P.(Crl.) नंबर 46/2022

    Next Story