'पेंशन एक विलंबित मुआवजा, कर्मचारी की कड़ी मेहनत का लाभ': विधवा को राहत देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा

LiveLaw News Network

19 Nov 2021 12:38 PM GMT

  • पेंशन एक विलंबित मुआवजा, कर्मचारी की कड़ी मेहनत का लाभ: विधवा को राहत देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा

    सुप्रीम कोर्ट ने एक दशक से अधिक समय से मुकदमा लड़ रही एक मृतक कर्मचारी की विधवा को पेंशन देने का निर्देश दिया है।

    जस्टिस आर सुभाष रेड्डी और जस्टिस ऋषिकेश राय की पीठ ने कहा, "पेंशन जैसा कि सर्वविदित है, लंबे समय तक सेवा करने के बाद दिया गया मुआवजा है। यह एक कर्मचारी को दिया गया संपत्ति की प्रकृति का एक कठिन लाभ है।"

    पेंशन योजना, 1998 के अनुसार 12 जनवरी 2011 को कर्मचारी की मृत्यु के बाद पेंशनभोगी की विधवा ने अपने पति की पूर्ण मासिक पेंशन से 100 गुना के बराबर राशि का दावा किया। 30 सितंबर 2012 को दिए एक पत्र के अनुसार, उन्होंने कोल माइंस पेंशन स्कीम, 1998 के पैरा 15(2) के साथ पठित पैरा 15(1)(बी) के अनुसरण में एकमुश्त राशि के भुगतान के लिए आवेदन किया।

    उसका प्रतिनिधित्व खारिज हो गया, जिसके बाद उसने एक रिट याचिका दायर करके हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। इस याचिका को हाईकोर्ट ने इस आधार पर खारिज कर दिया कि पटना हाईकोर्ट के क्षेत्रीय अधिकार क्षेत्र के भीतर कोई कारण नहीं बनता है। यह देखा गया कि पेंशनभोगी द्वारा प्रदान की गई सेवाएं पटना हाईकोर्ट के क्षेत्रीय अधिकार क्षेत्र से बाहर थीं और इसलिए पेंशनभोगी की विधवा द्वारा दायर रिट याचिका सुनवाई योग्य नहीं थी।

    पीठ ने अपील में कहा कि कोल माइंस पेंशन स्‍कीम, 1998 को कोयला क्षेत्र में कर्मचारियों के लिए सामाजिक-आर्थिक न्याय सुनिश्चित करने के लिए कोल माइन्स प्रोविडेंट फंड और विविध प्रावधान अधिनियम, 1948 की धारा 3-ई द्वारा प्रदत्त शक्तियों के तहत सामाजिक सुरक्षा के उपाय के रूप में तैयार किया गया था।

    कोर्ट ने कहा, फिर भी एक दशक से अधिक समय तक कर्मचारी की विधवा को पेंशन पाने के लिए मुकदमा लड़ने के लिए मजबूर किया गया।

    कोर्ट ने कहा, "अपीलकर्ता के मामले पर विचार करते समय, हाईकोर्ट ने योग्यता के आधार पर उसके अधिकार पर विचार नहीं किया, लेकिन क्षेत्रीय अधिकार क्षेत्र की कमी का हवाला देते हुए रिट याचिका और एलपीए दोनों को खारिज कर दिया था। प्रतिवादी नियोक्ता के साथ अपीलकर्ता के पति का रोजगार हालांकि विवादित नहीं है। फिर भी, एक दशक से अधिक समय तक कर्मचारी की विधवा को पेंशन का लाभ प्राप्त करने के लिए मुकदमा लड़ने के लिए मजबूर किया गया है"।

    अदालत ने अपील का निस्तारण करते हुए कहा, "इस मामले की उपरोक्त अजीबोगरीब परिस्थितियों में, नियोक्ता द्वारा पेंशन योजना में उक्त प्रावधान को समाप्त करने के निर्णय की वैधता पर टिप्पणी किए बिना, चूंकि पेंशनभोगी समाप्त होने की तिथि पर जीवित नहीं था, हम इस कार्यवाही में ही उसके पक्ष में आवश्यक आदेश पारित करना उचित समझते हैं। परिणामस्वरूप, पेंशन योजना के तहत देय राशि की गणना की जाती है और इसे अपीलकर्ता को वितरित करने का आदेश दिया जाता है। अपीलकर्ता को पहले वापस की गई राशि को प्रेषण प्रक्रिया के दरमियान उपयुक्त रूप से समायोजित किया जाए। प्रतिवादी/नियोक्ता को आज से 8 सप्ताह के भीतर इस आदेश के अनुसार आवश्यक कार्रवाई करनी चाहिए।"

    केस शीर्षक: वीना पांडे बनाम यूनियन ऑफ इंडिया

    सिटेशन: LL 2021 SC 661

    केस नंबर और डेट: सीए 6953 ऑफ 2021| 18 नवंबर 2021

    कोरम: जस्टिस आर सुभाष रेड्डी और हृषिकेश रॉय

    वकील: अपीलकर्ता के लिए एडवोकेट संतोष कुमार, यूनियन ऑफ इंडिया के लिए एएसजी माधवी दीवान


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